सबसे पहले तुलसी का पौधा भगवान् विष्णु ने रोपा -दिनेश मालवीय सनातन धर्म में तुलसी को परम पवित्र पौधों में माना गया है. इसका महत्त्व इसी एक बात से प्रतिपादित होता है कि पद्ममहापुराण के श्रृष्टिखण्ड में सकंद और ईश्वर संवाद में कहा गया है कि तुलसी का सबसे पहला पौधा भगवान् विष्णु ने रोपा था. तुलसी उन्हें लक्ष्मी की तरह ही प्रिय हैं. ईश्वर कहते हैं कि सभी पत्रों और पुष्पों में तुलसी सर्वश्रेष्ठ कल्याणप्रद है. वह सभी कामनाओं को पूर्ण करने वाली, शुद्ध, वैष्णवी और भगवान् विष्णु को प्रिय है. सभी लोकों में सर्वाधिक कल्याणप्रद भोग और मोक्ष को प्रदान करने वाली है. उसीको अपनाकर श्रेष्ठ मुनिगण अक्षय स्वर्ग को प्राप्त करते हैं. तुलसी का सबसे पहले रोपण भगवान् विष्णु ने रोपा था. तुलसी का एक पत्ता सौ सुवर्ण मुद्रा का फल प्रदान करने वाला है. मंदिरों में दिए जाने वाले चरणामृत में तुलसी दल डले होते हैं. यह तन-मन के स्वास्थ्य के लिए बहुत गुणकारी है. भगवान् का भोग भी बिना तुलसी के पूर्ण नहीं होगा. तुलसी की पवित्रता और महत्त्व को प्रतिपादित करने के लिए हमारे पुराणों में अनेक कथाएं मिलती हैं. तुलसी भरपूर विटामिन और खनिज से भरपूर एक मेडिसिनल प्लांट है. इसमें कई तरह की बीमारियों को ठीक करने की क्षमता है. जीवन के लिए अनेक महत्वपूर्ण चीजों की तरह तुलसी को भी धर्म से जोड़ा गया है. इसे हर घर के आँगन में लगाने का उपदेश दिया गया है. तुलसी को जल देने और उसकी पूजा को बहुत महत्त्व दिया गया है. वैसे तो तुलसी की अनेक प्रजातियाँ हैं, लेकिन सफैद और श्याम तुलसी प्रमुख हैं. इन्हें क्रमश: राम तुलसी और कृष्ण तुलसी भी कहते हैं. आयुर्वेद के सबसे प्रमुख ग्रंथों चरक संहिता और सुश्रुत संहिता में तुलसी के गुणों को बहुत विस्तार से बताया गया है. तमिल भाषा में इसे तुलशी, तेलुगू में गग्गेर चेटटू, संस्कृत में तुलसी, सुरसा, देवदुन्दुभि, अपेतराक्षसी, सुलभा, बहुमंजरी, गौरी, भूतध्नी, वृंदा आदि अनके नाम हैं. कन्नड़ में तुलसी को एरेड तुलसी, मराठी में तुलस अरु अरबी में दोहष कहते हैं. तुलसी की पत्तियां बहुत गुणकारी होती हैं. इन्हें सीधे पौधे से तोड़कर खाया जा सकता है. इसके बीज और पत्तियों का चूर्ण बनाकर भी प्रयोग किया जा सकता है. इससे कफ, वात और पित्त दोष दूर होते हैं. साथ ही पाचन शक्ति ठीक होती है और भूख बढ़ती है. खून को साफ़ करने में भी तुलसी बहुत उपयोगी है. बुखार को ठीक करने, दिल से सम्बंधित बीमारियों, पेट से जुड़े रोगों में भी तुलसी के उपयोग से राहत मिलती ही. दिमाग के लिए भी तुलसी बहुत प्रभावी होती है. रोज़ाना इसके सेवन याददाश्त बढ़ती है. इसके लिए हर रोज़ तुलसी की 4-5 पत्तियां पानी के साथ निगलना चाहिए. तुलसी के तेल की कुछ बूँदें नाक में डालने पर सिरदर्द में आराम मिलता है. कान में तुलसी की कुछ बूँदें डालने से कान के दर्द में आराम मिलता है. दांत दर्द में भी तुलसी लाभकारी है. इसके लिए काली मिर्च और तुलसी के पत्तों की गोली बनाकर दांत के नीचे रखा जाना चाहिए. सर्दी-जुकाम और गले में खराश जैसी समस्याओं में तुलसी बहुत फायदेमंद होती है. गले में खराश होने पर तुलसी के रस को हलके गुनगुने पानी में मिलाकर कुल्ला करना चाहिए. तुलसी के रस वाले पानी में हल्दी और सेंधा नमक मिलाकर कुल्ला करने से मुँह, दांत और गले के विकार दूर होते हैं. पीलिया रोग में भी तुलसी बहुत अच्छी औषधि का काम करती है. एक-दो ग्राम तुलसी पत्तों को पीसकर छाछ के साथ मिलाकर पीने से पीलिया में लाभ होता है. तुलसी का काढ़ा बनाकर पीने से भी पीलिया में आराम मिलता है. तुलसी में शरीर को रोगों से लड़ने की ताकत बढ़ाने की बहुत क्षमता होती है. आयुर्वेद की विधियों के अनुसार इसके सेवन से रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है. इसके अलावा, मलेरिया और मोतीझरा में राहत के लिए भी तुलसी के बहुत अच्छे उपयोग बताये गये हैं. तुलसी को घर के आँगन में उगाया जा सकता है. इसके लिए किसी ख़ास तरह की जलवायु की ज़रूरत नहीं होती. बहरहाल, तुलसी के पौधे का ठीक रखरखाव नहीं होने या इसके आसपास गंदगी होने से यह मुरझा जाता है. तुलसी का काढ़ा इम्युनिटी बढाने में बहुत कारगर होता है. इसके लिए दो कप पानी में तुलसी की कुछ पत्तियां डालकर करीब पन्द्रह मिनट तक उबाला जाए. जब एक चौथाई पानी रह जाए तो इसे कुछ ठंडा हो जाने पर पी लिया जाए. इससे सर्दी-जुकाम दूर करने में मदद मिलेगी. कोरोना के इलाज में भी इसे प्रभावी बताया जा रहा है. उपरोक्त बातें अपनी जहग हैं, लेकिन एक बहुत साधारण बात यह समझी जानी चाहिए कि युगों-युगों से अगर हमारे पूर्वजों ने इस पौधे को इतना पवित्र और महत्वपूर्ण माना है, तो इसके पीछे उनका कोई अनुभव होगा ही. आख़िरकार उन्हीं लोगों ने तो आयुर्वेद जैसे सटीक विज्ञान का विकास किया था. लिहाजा, अपनी-अपनी परिस्थितियों के अनुसार घर-आँगन में तुलसी का पौधा अवश्य लगाएं. यदि घर में ऎसी व्यवस्था नहीं हो तो आसपास कैन उचित जगह पर इसे लगाया जा सकता है. जैसे भी हो सुबह-शाम में कभी भी थोड़े समय इस चमत्कारी पौधे के नजदीक रहने का प्रयास करें. इसके संरक्षण और संवर्धन में सहयोग करें.