कृष्ण अर्थात जीवन
श्रीकृष्णार्पणमस्तु-24
रमेश तिवारी
उत्साह, उमंग, आशा विश्वास, सकारात्मक सोच और जीवन का नाम ही कृष्ण था। आज हम एक ऐसी महत्वपूर्ण घटना का वर्णन करेंगे, जिसमें कि गंगा में डूबकर आत्महत्या करने जा रहे ऐसे पुरुष की कथा है, जो था तो स्त्री किंतु रहता पुरुष भेष में था!
उसके आत्म हत्या करने का कारण तो और भी विचित्र था! क्योंकि जिस स्त्री से उसका व्याह हुआ था, वह पत्नी अब इसी पुरुष रूपी स्त्री के पास रहने आ रही थी! मामला, बहुत ही कठिन था। युवक के सामने प्रश्न था कि एक स्त्री अपनी पत्नी स्त्री का सामना कैसे कर सकेगी। इसलिए वह व्याकुल था।
आत्महत्या करना चाहता था। किंतु इस स्त्री रुपी पुरुष की भेंट जैसे ही श्रीकृष्ण से हुई! कृष्ण ने उसकी समस्या को सुलझाने का ऐसा मार्ग बताया कि उसने आत्महत्या की जिद ही छोड़ दी। निराश से निराश व्यक्ति भी श्रीकृष्ण केे संपर्क में आते ही, नवजीवन के प्रति आशान्वित हो जाता था। कृष्ण सम्मोहन थे। जीवंतता और ऊर्जा थे।
अभी वह किशोर, जो स्त्री थी, मात्र सोलह वर्ष का ही था। उसके जीवन में भूचाल आ गया था। उसके पौरूष और सम्मान पर खतरा मंडरा रहा था। काशीराजा का नाती वह युवक महाभारत का प्रमुख योद्घा और काम्पिल्य का राजकुमार था। महाबली और बहुचर्चित शिखंडी'।
इस पूरी समस्या में उसका रत्ती भर भी दोष नहीं था। वह तो किन्ही दूसरों के दोष का 'प्रायश्चित' आत्महत्या करके करना चाह रहा था। शिखंडी अभी मात्र 16 वर्ष का एक कोमल और भावुक युवक था।
महाराज द्रुपद और कृष्ण अभी अभी द्रोपदी के स्वयंवर पर गंभीर मंत्रणा करके निपटे ही थे कि प्रासाद के एक कोने में दुबका, सहमा राजपुत्र शिखंडी गंगा के पवित्र जल में प्राणांत करने की फिराक में था। कृष्ण को जब यह सब ज्ञात हुआ।
वे शिखंडी के कंधे पर स्नेहिल हाथ रखकर उसको एकांत में ले गये। उसकी समस्या जानी। और फिर शिखंडी से पूछते हैं-"आत्महत्या ही क्यों करना चाहते हो?" मरना भी साहस का काम है। कायरता से मरना भी क्या मरना।"
वे शिखंडी से पूछते हैं- तुम मरना ही क्यों चाहते हो? के उत्तर में अनुभव हीन और अपरिपक्व राजकुमार का उत्तर सुनकर कृष्ण उसको कहते है- जब तक धर्म मार्ग पर चलते हुए जीवित रहने का अवसर हो तब तक मरने की बात कभी न सोचो।
मैं तुम्हें मरने का मार्ग भी सिखाऊंगा परन्तु वह मार्ग होगा साहसपूर्ण। कार्यरता का नहीं! द्रुपद के इस पुत्र की समस्या प्रारंभ कैसे हुई! देखते हैं। काशीराज का यह नाती, उसकी (मृतक माता) और ननिहाल के अतिशय प्रेम और एक असत्य के कारण पुरुष वेश में ही रहता रहा।
जन्म से वह कन्या था। किंतु जन्मते ही माता ने उसका भेष पुत्र की तरह बना दिया। 10 वर्ष की आयु तक वह बालक काम्पिल्य में आया ही नहीं। तो पिता द्रुपद को अभी भी यह पता नहीं चल सका कि शिखंडी पुरुष नहीं है।
इस बीच उसका विवाह दर्शाण देश, जिसकी सीमा में विदिशा और सागर क्षेत्र की धसान नदी तक क्षेत्र आता था और जिसे भोपाल के समीप नांदूर ग्राम भी कहा है, के राजा हिरण्य वर्मा की पुत्री से हो चुका था।
मामले की पोल तब खुली जब हिरण्यवर्मा ने द्रुपद को कठोर संदेश भेजा कि अब शीध्र ही अपनी बहू को ले जाइये। अन्यथा युद्ध का सामना करना होगा। परन्तु जब कन्या के पिता की धमकी आई, सबसे पहले तो शिखंडी के पांव कांपने लगे। कैसे सामना करे- कैसे कहे कि उसको पुरुष बताकर असत्य मार्ग से कन्या से कन्या का विवाह करवा दिया गया था।
वह तो निर्दोष था। कन्या था। द्रुपद तो आज तक भी अनभिज्ञ थे। इस विकट परिस्थिति में से निकलने का मार्ग दिखाया कृष्ण ने। वे कहते हैं- और पूरे आत्म विश्वास से कि, मैं तुम्हें जीने का मार्ग दिखाता हूं।
उन्होंने कहा- शिखंडी तुम आर्यावर्त के सर्वोत्तम आचार्य द्रोणाचार्य के पास चले जाओ। परन्तु एक बात बताओ। क्या तुम पुरुष बन कर जीना चाहते हो। महान योद्धा, धनुर्धर और रणनीति कुशल बनने का तुम्हारा संकल्प निश्चित है।
यदि है तो मैं तुमको साहस पूर्ण मरने का मार्ग दिखाता हूं। तुम द्रोणाचार्य के पास चले जाओ। कृष्ण की जानकारी में यह राजकुमार रात्रि के अंधेरे में नौका द्वारा द्रोणाचार्य के आश्रम में पहुंच गया। जीवन की उत्कट अभिलाषा ले कर।
आचार्य द्रोणाचार्य अपने आसन पर विराजित हैं। उनका मुख्य शस्त्र शास्त्री शंख उनके समीप खडा़ है। नवागंतुक राजकुमारों का परिचय करवा रहा है। गेरुआ रेशमी वस्त्र में उपस्थित शिखंडी का क्रम आते ही वह ठिठकते हुए बोला- गुरुदेव एक राजकुमार परसों से आश्रम में अन्न ग्रहण किए बिना, इस हठ पर अडा़ है कि वह तब तक अन्न ग्रहण नहीं करेगा जब तक कि आचार्य उसको अपना शिष्य नहीं बना लेते।
किंतु.! आचार्य जी, उसकी चाल, चेहरा और आवाज तो स्त्रियों जैसी है। आचार्य ने कहा शंख- हम स्त्रियों को आश्रम में न तो रखते हैं और न ही शस्त्र शिक्षा देते। परन्तु गुरुदेव वह तो हठ पर अडिग है। शंख ने आचार्य को स्पस्ट किया। अंततः शिखंडी को प्रस्तुत किया गया।
द्रोणाचार्य ने शिखंडी से भेंट की। किंतु शिखंडी के कुल, गोत्र और पिता का द्रुपद नाम सुनते ही, वे चौंक पड़े। मेरे चिर परिचित शत्रु द्रुपद का पुत्र। सुना था कि तुम तो स्त्री हो? फिर यहां कैसे आये? शिखंडी ने पूरा घटना क्रम बताया।
यह भी बताया कि वह मरना क्यों चाहता था और कृष्ण ने आपके पास उसको क्यों भेजा है। शिखंडी ने आचार्य को बताया- कृष्ण ने कहा था- ब्राह्मण किसी से भेदभाव नहीं करता। द्रोणाचार्य महान आचार्य हैं। वे किसी शिष्य को निराश नहीं करते।
आश्चर्य में डूबे द्रोण ने पूछा! कृष्ण ने यह कहा- वह भी मेरे संबंध में। आश्चर्य। यह कृष्ण भी क्या है? सब कुछ जानते हुए भी, मेरे पास भेज दिया। शिखंडी ने कहा- गुरुदेव कृष्ण ने कहा था- गुरु से कुछ भी नहीं छिपाना। सच सच बता देना। वे तुम्हें अप्रितिम योद्धा बना देंगे। द्रोणाचार्य ने चिंतन किया। कृष्ण की यह कोई गुप्त चाल तो नहीं!
आज की कथा बस यहीं तक। तो मिलते हैं। तब तक विदा।
धन्यवाद।