अतुल विनोद क्रिया योग को लेकर लोगों में बहुत उत्सुकता है, आखिर यह क्रिया योग क्या है ? और यह कहां से निकला ? क्या यह कोई अलग प्रकार का योग है ? या योग में से निकली कोई एक विधि ? कुछ कहते हैं कि लगातार भस्त्रिका प्राणायाम करते रहो क्रिया योग सिद्ध हो जाएगा, कुछ लोग कहते हैं कि कपालभाति करते रहो यही क्रिया योग है, इसी को कुछ लोग डायनेमिक मेडिटेशन कहते हैं, कुछ लोग एकाग्रता के अभ्यास को क्रिया योग कहते हैं, कुछ लोग श्वास पर ध्यान लगाने को क्रियायोग कहते हैं| लेकिन क्या इन विधियों से आप ध्यान की गहराई में उतर सकते हैं ? क्या आपके अंदर की शक्ति जागृत हो सकती है ? वास्तव में क्रिया योग एक ऐसी योग पद्धति है जिसमें 32 से अधिक योग क्रियाओं को शामिल किया गया है ? और इन क्रियाओं का लगातार और स्टेप बाय स्टेप अभ्यास व्यक्ति को अध्यात्म में आगे ले जा सकता है| क्रिया योग की क्रियाओं का असर सबसे पहले साधक के स्थूल शरीर पर देखा जाता है, स्थूल शरीर के बाद यह सूक्ष्म और कारण शरीर पर असर करना शुरु करता है, इसके बाद व्यक्ति इससे भी आगे के शरीर ब्रह्म शरीर तक पहुँच जाता है | क्रिया योग के अभ्यास से व्यक्ति की कॉन्शसनेस, अनकॉन्शसनेस और सबकॉन्शसनेस अवस्थाएं ठीक होने लगती हैं | क्रिया योग में हठयोग और राजयोग को खास तौर पर शामिल किया गया है, क्रिया योग में योग वशिष्ठ, घेरंड संहिता, पतंजलि योग सूत्र, गोरक्ष संहिता, योग-तत्व-उपनिषद जैसे कई ग्रंथों से योगासन, बंध, मुद्रा, प्राणायाम की विधियां ली गई है | क्रिया योग में व्यक्ति आसनों के अभ्यास से अपने शरीर को दृढ़ करता है , प्राणायाम के अभ्यास से श्वास पर नियंत्रण स्थापित करता है और संकल्प शक्ति को प्रबल करता है, इसमें चित्त की प्रवत्तियों को साधा जाता है, योगी अपने स्थूल शरीर को साधने के साथ साथ अपनी ज्ञानेंद्रियों को सहज बनाने का अभ्यास करता है, हर परिस्थिति में अपने आपको अनुकूल रखने की कला सीखता है | इंद्रियों पर विजय प्राप्त करने के बाद योगी अंतर में प्रवेश करता है और आंतरिक शक्तियों को जागृत करता हुआ उन शक्तियों के सहयोग से योग में उच्चता हासिल करता है | क्रिया योग की क्रियाएं साधक के स्थूल, सूक्ष्म और आत्मिक शरीर पर कार्य करती हैं| क्रिया योग के अभ्यास से योगी की स्मरण, बौद्धिक और सृजनात्मक क्षमता बढ़ती है | इसके लगातार अभ्यास से वह आनंद से मग्न रहने लगता है, ऐसा व्यक्ति चाहे गृहस्थ में रहे या सन्यास में, सुख पूर्वक अपना जीवन व्यतीत करता है, प्रकृति उसकी जरूरतें पूरी करती है, जैसे-जैसे साधना का स्तर बढ़ता जाता है, उसे उच्च स्तरीय अनुभूतियां होने लगती हैं | ऐसे साधक को योग स्वयं होने लगते हैं, उनकी कुंडलिनी जागृत हो जाती है, सूक्ष्म जगत से उसे अनेक तरह के मार्गदर्शन मिलते हैं| क्रिया योग साधक अपने चेतन, अवचेतन, अति-चेतन, आत्म-चेतन और ब्रह्म-चेतन के साथ एकाकार होने लगता है, उसे आत्मसाक्षात्कार हो जाता है | भले ही क्रिया-योगी की स्थूल देह सामान्य नजर आए, लेकिन उसकी चेतना का विस्तार असीम तक हो जाता है, उसे अलौकिक अनुभव होते हैं, व्यक्ति लगातार प्रयास के जरिए सबसे पहले अपने शरीर को निरोगी बनाता है, फिट करता है, इसके बाद वह अपनी ज्ञानेंद्रियों और कर्मेंद्रियों को मजबूत करता है, धीरे-धीरे वह अपने संपूर्ण अस्तित्व पर नियंत्रण स्थापित कर लेता है, ऐसे योगी की उम्र बढ़ जाती है, वह अधिक उम्र में भी कम उम्र का दिखाई देता है, उसके अंदर अद्भुत क्षमताएं पैदा हो जाती हैं, ऐसे व्यक्ति के सामाजिक संबंध, पारिवारिक और घरेलू संबंध और मधुर हो जाते हैं | वह विश्वसनीय व्यक्ति बन जाता है, अपने कर्तव्य व अपने कार्य को बहुत अच्छे ढंग से संपन्न कर पाता है| झूठ, फरेब, ईर्ष्या, लालच, घमंड, धीरे-धीरे दूर हो जाते हैं, उसका आचरण शुद्ध हो जाता है, हर व्यक्ति के अंदर अनंत संभावनाएं बीज रूप में मौजूद है, क्रिया योग से वह संभावनाएं अंकुरित होने लगती है, और यदि उन्हें अनुकूल परिस्थितियां खाद और पानी मिलता रहे तो वह बीज रूपी संभावनाएं, वृक्ष के रूप में परिणित होने के लिए निकल पड़ती है| हम जानते हैं कि व्यक्ति का चेतन-मन यदि सक्रिय रहे तो व्यक्ति वर्तमान में बहुत अच्छा प्रदर्शन कर सकता है, इसी तरह से अवचेतना के स्तर पर व्यक्ति अज्ञात ज्ञान के पुंज के साथ संपर्क में आ सकता है, इससे आगे यदि व्यक्ति बढ़ता है तो अति-चेतना की अवस्था आती है, यहां उसे पूर्व जन्म की घटनाओं की याद आने लगती है, उसकी स्मरण शक्ति बढ़ जाती है, इसी तरह से आत्म-चेतना में उसके जन्म जन्मांतर के संस्कार उसके सामने आ जाते हैं, वह अतीत-काल का ज्ञाता बन जाता है, उसकी बौद्धिक क्षमता विकसित हो जाती है, आत्म-चेतना के स्तर पर व्यक्ति कई जन्मों के संस्कारों से परिचित होकर जीवन के वास्तविक अर्थ को समझ जाता है, झूठी बातों से मोहित होना छोड़ देता है, इसके बाद ब्रह्म चेतना की अवस्था आती है, ब्रह्म चेतना की अवस्था में व्यक्ति आत्म-साक्षात्कार प्राप्त करता है, इसे ही मोक्ष कहा गया है | ऐसा व्यक्ति इस संसार के साथ सामंजस्य बना लेता है, पूरा संसार उसे परमात्मा का विस्तार नजर आता है, और मानव कल्याण को ही वह व्यक्ति परमात्मा की सेवा मानता है, ऐसा व्यक्ति प्रकृति का अंश बनकर जीता है, क्योंकि उसे लगता है कि प्रकृति स्वयं परमात्मा का स्वरुप है, ऐसे व्यक्ति में समाधि का भाव स्वतः ही जागृत हो जाता है |
क्रिया-योग रहस्य : संभावनाओं का द्वार है ये महायोग
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