चलो चंद्रमा को बर्बाद करें -दिनेश मालवीय


स्टोरी हाइलाइट्स

चलो चंद्रमा को बर्बाद करें -दिनेश मालवीय चलिए, ख़ुशी की बात है कि अमेरिकी अन्तरिक्ष खोज एजेन्सी (नासा) ने इस बात की पुष्टि कर ही दी कि चंद्रमा पर पानी है. हालाकि 2009 में भारत के चंद्रयान ने यह बात पता कर ली थी और इसे ज़ाहिर भी कर दिया था, लेकिन जब तक अमेरिका या कोई दूसरा पश्चिमी देश किसी बात की तसदीक न कर दे, तब तक हम कहाँ मानने वाले हैं! हम हर चीज़ की पुष्टि के लिए पश्चिम की तरफ देखते हैं. कवी रवीन्द्र की ‘गीतांजलि’ को अगर पश्चिम मान्यता नहीं देता और उसे नोबेल पुरस्स्कार नहीं मिलता, तो क्या हम उन्हें महान कवि मान लेते? अजी राम भजो! स्वामी विवेकानंद को यदि अमेरिका में मान्यता नहीं मिलती तो वह हमारे लिए ‘कायस्थ का लड़का नरेंद्र’ ही बने रहते. इसी तरह के अनेक प्रसंग हैं, कहाँ तक याद करें. लेकिन बात तो मैं कुछ और ही कर रहा था. अब ‘नासा’ ने चंद्रमा पर पानी की बात कह दी है, तो अनेक लोग वहाँ जाकर बसने का ख़्वाब देखने लगे हैं. अनेक लोग तो पहले से ही यह ख़्वाब देख रहे थे, बस पानी होने की पुष्टि का इंतज़ार था. धरती को तो हमने पहले ही रहने लायक नहीं छोड़ा है. पानी को दूषित कर दिया, हवा को ज़हरीला बना दिया, रासायनिक उर्वरक डाल-डाल कर मिट्टी की उर्वरकता लगभग ख़त्म करने के बहुत करीब हैं. विश्वव्यापी युद्धोन्माद के चलते ज़मीन के चप्पे-चप्पे में बारूद बिछा ही दी गयी है. बस विस्फोट का इंतज़ार है, जो किसी भी क्षण हो सकता है. अब तो अगर युद्ध हुआ तो इसके लिए ज़मीन भी छोटी पड़ जाने वाली है. भयानक और हज़ारों किलोमीटर तक मार करने वाली मिसाइलें क्या ज़मीन पर चलाएँगे? इस तरह अब तो युद्ध आकाश में ही होना है. लेकिन इसका असर तो पृथ्वी पर ही होना है. जितने विनाशक हथियार बनाए गये हैं, उनसे यह बेचारी धरती माता तो पहले ही बहुत डरी हुयी है. इसपर जो अत्याचार हो रहे हैं, उन्हें अब और सहन करने की इसमें शक्ति कहाँ बची है? पहले तो बेचारी पृथ्वी गौ का रूप धारण कर और कभी-कभी देवताओं को साथ लेकर ब्रहमाजी या विष्णुजी के पास चली जाती थी और वे लोग इसको अत्याचारों से मुक्त कराने का आश्वासन भी दे देते थे. यहाँ तक कि ईश्वर अपने एक अंश को एक अवतार के रूप में भेजकर पृथ्वी को पापियों से मुक्त करा देते थे. हालाकि तब भी पापी और राक्षस पूरी तरह कहाँ ख़त्म होते थे! कहीं न कहीं उनकी कोई ब्रांच बची ही रह जाती थी. अब ऐसी संभावना भी शायद नहीं रह गयी है. अगर रह गयी हो तो बहुत अच्छी बात है. भगवान करे ऐसा ही हो. लेकिन अब गौ भक्षक इतने बढ़ गए हैं, कि उसे गौ के रूप में पहुँचने भी देंगे या नहीं, इसमें शंका है. फिर भी हमें ईश्वरीय सत्ता पर विश्वास रखना चाहिए. हरे को हरि नाम. अब मैं फिर बात को कहाँ से कहाँ ले गया. मैं यह कह रहा था कि धरती को रहने लायक न छोड़कर लोग चाँद पर बसने की तैयारी करने में जुट गये हैं. यानी उसकी भी ऐसी की तैसी कर के ही रहेंगे. पहले ही मानव ने चंद्रमा पर कितना कचरा बिखराकर रखा है. कितने ही रॉकेट यहाँ-वहाँ ध्वस्त हो गये. कितने देशों के वहाँ स्पेस स्टेशन बन गये. कई ख़त्म होकर मलवे के रूप में पड़े हैं. अपने ही चंद्रयान-2 का कुछ पता ही नहीं. लूना को गुमे हुए भी कई दशक बीत गये. बेचारे का आजतक कोई नामोनिशान नहीं मिला है. चंद्रमा पर जाने और वहाँ अपनी गतिविधियाँ करने की होड़ क्या वैसे ही है? क्या इसके लिए अरबों डॉलर खर्च करने वाले देश शेखचिल्ली हैं? जी, बिल्कुल नहीं. वे सब वहाँ यह संभावना तलाशने की ही कोशिश करते रहे हैं, कि जिन मूढ़ताओं को उन्होंने पृथ्वी पर किया है, वही वहाँ पर भी कर सकें. इसमें कुछ दशक तो निकल ही जाएँगे. फिर निपटाने के लिए कोई दूसरा ग्रह खोज लेंगे. कुछ धर्म मानते हैं कि चन्द्रमा पर देवताओं का निवास है. जब वे ऐसा कह रहे हैं तो होना नामुमकिन भी  नहीं है. उनके शास्त्रों में कुछ तो सोचकर लिखा गया होगा. हो सकता है कि वे मनुष्यों को वहाँ टिकने ही न दें. हालाकि जो लोग चंद्रमा से होकर लौटे हैं, उन्होंने वहाँ देवताओं के निवास होने की बात नहीं कही. लेकिन ये सभी लोग भौतिक ज्ञान वाले थे. चंद्रमा पर देवताओं के निवास और स्वयं उन्हें देखने की आध्यात्मिक शक्ति उनके पास कहाँ थी! इसीलिए वे उन्हें नहीं देख सके. ईश्वर करे ऐसा ही हो. हम लोग तो स्वयं चंद्रमा को ही देवता मानते हैं. वह और वहाँ रहने वाले उनके देवता साथी मनुष्य को वहाँ नहीं रहने दें तो बेहतर है, वरना चंद्रमा और उनके चंद्रलोक का क्या होगा? हमारे कवियों के प्रिय चंद्रमा और हमारे बच्चों के प्रिय चंदा मामा का न जाने क्या क्या हाल बनाएँगे ये लोग! अपुन जैसे फटीचर और गरीब लोगों को तो वहाँ जाने और रहने का मौका कभी मिलेगा इसकी दूर-दूर तक संभावना नहीं है. ‘जीना यहाँ मरना यहाँ ’ की तर्ज पर यहीं भोगते रहेंगे. ग़रीबों को तो यहीं, इसी ज़हरीली बना दी गयीं पृथ्वी पर ही जीना-मरना है. वहाँ तो पैसे वाले लोग ही जाएँगे और अगर ‘देवताओं’ ने रहने दिया तो बस भी जाएँगे. हो सकता है, ऐसे लोगों को मेरी बातों में ईर्ष्या का भाव नज़र आये. वे सोचें कि मैं या मेरे जैसे कंगले उनसे जलकर ऐसा कह रहे हैं. लेकिन उन्होंने तो सोच ही लिया है कि चले चंद्रमा पर रहेंगे - यानी से उसे भी बर्बाद करें.