एनीमिया विटामिन की कमी के कारण होता है| Megaloblastic Anemia Treatment & Management
एनीमिया विटामिन की कमी के कारण होता है|
मेगेलोब्लास्टिक एनीमिया: कारण लक्षण और उपचार|
Megaloblastic Anemia Treatment & Management
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विटामिनहीनता जनित मेगेलोब्लास्टिक एनीमिया (Vitamin Deficiency Megaloblastic Anaemias):-
मेगालोब्लास्टिक एनीमिया एनीमिया का एक रूप है एनीमिया ब्लड विकार है जो तब होता है जब शरीर में सामान्य से कम रेड ब्लड कोशिकाएं होती हैं। रेड ब्लड कोशिकाएं हीमोग्लोबिन नामक प्रोटीन का उपयोग करके पूरे शरीर में ऑक्सीजन ले जाती हैं।
रेड ब्लड कणिकाओं के विकास के लिये जिन न्यूक्लिओप्रोटीन्स की ज़रूरत होती है उनके संश्लेषण (Synthesis) के लिये विटामिन B, व फोलिक एसिड की ज़रूरत होती है। विटामिन C आयरन तत्व के अवशोषण को भी बढ़ाता है। अतः उपरोक्त तीनों विटामिन्स की कमी से एनीमिया देखा जाता है।
(I) फोलिक एसिड की कमी से होने वाला एनीमिया:-
यह एनीमिया ट्रॉपिकल स्प्रु के साथ तथा कुछ गर्भवती महिलाओं में व उनसे उत्पन्न शिशुओं में दिखाई देता है। फॉलिक एसिड देने पर नाटकीय सुधार दिखाई देता है। भोजन लेने की गलत आदते या दोषपूर्ण अवशोषण इस तरह के एनीमिया के लिये उत्तरदायी हो सकता है। यदि भोजन में पर्याप्त फोलिक एसिड न हो तो दो से चार महीने के भीतर शरीर में फोलिक एसिड की कमी से उत्पन्न होने वाला एनीमिया देखा जाता है।
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इस तरह के एनीमिया में ब्लड में अपरिपक्व व बड़े आकार की रेड ब्लड कणिकाएँ जिन्हें मेगेलोब्लास्ट कहते हैं दिखाई देते हैं। ब्लड में फोलिक एसिड का स्तर काफी गिर जाता है जबकि विटामिन B12 स्तर में हल सी ही गिरावट आती है। कमजोरी, थकावट, साँस फूलना या हांफना दस्त, चिड़चिड़ापन, स्मरण शक्ति का क्षीण होना, भूख न लगना, सिर में दर्द, हृदय की धड़कन का बढ़ जाना, आदि लक्षण आरम्भिक अवस्था में दिखाई देते हैं।
उपचार के लिये पहले इसे पहचानना आवश्यक रहता है। फिर दो से तीन हफ्तों तक 1 मि.ग्राम फोलिक एसिड प्रतिदिन मुँह के द्वारा दिया जाना चाहिए। इसके अतिरिक्त फोलिक एसिड की अधिकता वाले खाद्य पदार्थ भी लिये जायें।
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इनमें प्रमुख हैं- संतरे का रस, अंडा, यकृत, यीस्ट, पालक, अन्य हरी सब्जियाँ, प्याज, मशरूम, गोभी, पत्तागोभी, चुकन्दर, अखरोट, बादाम, तिल, काजू, दालें, बीन्स, गेहूँ का चोकर, गेहूँ का अंकुर आदि। फोलिक एसिड गर्मी पाकर नष्ट हो जाता है। अतः बिना पकाए हुए रूप में नट्स, फलों व सलाद के रूप में इसे लेना बेहतर रहता है।
(ii) विटामिन C की कमी से होने वाला एनीमिया:-
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विटामिन C की कमी से होने वाले रोग स्कवों में भी मेक्रोसाइटिक प्रकार का एनीमिया देखा जाता है क्योंकि विटामिन C फोलिक एसिड का परिवर्तन फोलिनिक एसिड में करता है। अत: इस प्रकार के एनीमिया में विटामिन C के साथ-साथ फोलिक एसिड व प्रोटीन की अधिकता वाला डाईट दिया जाना चाहिए।
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(III) विटामिन B12 की कमी से होने वाला एनीमिया:-
इसे परनिशियस एनीमिया भी कहते हैं। यह एक मेक्रोसाइटिक मैगेलोब्लास्टिक प्रकार का एनीमिया है। इसके होने का एक प्रमुख कारण है। विशुद्ध शाकाहारी भोजन लेना जिसमें दूध भी अनुपस्थित रहता है। विटामिन B12 केवल प्राणिज खाद्य पदार्थ में ही उपस्थित रहता है। अतः जब विशुद्ध शाकाहारी भोजन लिया जाता है तो इस विटामिन की प्राप्ति नहीं हो पाती। है।
इसके अतिरिक्त यदि शरीर में “इन्ट्रिसिक फैक्टर” (Intrinsic factor) की कमी होने पर भी परनिशियस एनीमिया देखा जाता है। यह फैक्टर एक तरह का ग्लाइकोप्रोटीन होता है जो कि अमाशयिक रस में पाया जाता है तथा इसकी उपस्थिति में ही विटामिन Bip अवशोषित होता है। जब क्रिया कर अमाशय आंशिक रूप से या पूर्णतः निकाल दिया जाता है (Partial or total gastrectomy) तब भी इस विटामिन की कमी हो सकती है।
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इस तरह के एनीमिया में रेड ब्लड कणिकाओं का आकार बड़ा हो जाता है तथा अपरिपक्व रेड ब्लड कणिकाएँ ब्लड प्रवाह में दिखाई देती हैं। इस एनीमिया में पाचन तत्र के अतिरिक्त तन्त्रिका तन्त्र भी प्रभावित होता है। लक्षणों में प्रमुख है हाथों व पैरो में झुनझुनी (Tingling sensation), संवेदनशून्यता, स्मरण शक्ति का क्षीण होना आदि।
यदि इसके उपरान्त भी विटामिन B12 की कमी बनी रहें तो लक्षण और अधिक तीव्र व अपरिवर्तनीय प्रकार का दिखाई देते हैं। अक्सर व्यक्ति में कब्ज बना रहता है। रक्तदाब सामान्य से कम होने लगता है तथा ब्लड में विटामिन B12 का स्तर सामान्य से कम रहता है। तंत्रिकाओं (Nerves) में परिवर्तन आने लगते हैं। विटामिन B12 की कमी के कारण फोलिक एसिड की कमी के लक्षण भी कई बार दिखाई देते हैं।
उपचार के लिये आजकल विटामिन B12 के इन्ट्रामस्क्यूलर या सबक्युटेनियस इंजेक्शन लगाये जाते हैं। पहले लीवर के एक्स्ट्रेक्ट देकर भी उपचार किया जाता था। उपचार करने के कुछ उपरान्त ही ब्लड की संरचना में सुधार दिखाई देने लगता है। अन्य लक्षण भी धीरे-धीरे ठीक होने लगते हैं परन्तु तंत्रिका तन्त्र से सम्बन्धित लक्षणों को ठीक होने में छह माह से भी अधिक का समय लग सकता है।
डाईटीय उपचार में डाईट में प्रोटीन, आयरन तत्व, विटामिन B12 फोलिक एसिड' व अन्य विटामिन्स की ओर ध्यान देना जरूरी रहता है। करीब 1.5 ग्राम प्रोटीन प्रति किलोग्राम शारीरिक भार के हिसाब से दिया जा सकता है। डाईट में मांसल खाद्य पदार्थ अण्डा, दूध, दूध से बने पदार्थ, लीवर, लीवर, एक्स्ट्रेक्ट, हरी पत्तेदार भाजियाँ अवश्य सम्मिलित की जानी चाहिए।
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