योग दिवस विशेष - योग का शारीरिक महत्व - शारीरिक स्वास्थ्य में महत्वर्पूण भूमिका
स्टोरी हाइलाइट्स
वही हठयोग के अभ्यास षट्कर्मो के द्वारा शरीर में व्याप्त मल बाहर निकलते है। शरीर शुद्ध होता है। कुपित हुआ वात, पित्त, कफ सन्तुलित होता है।
योग साधना का शारीरिक महत्व - योग साधना का शारीरिक स्वास्थ्य में महत्वर्पूण भूमिका है।
शारीरिक महत्व - योग साधना का शारीरिक स्वास्थ्य में महत्वर्पू ण भूमिका है।
योग के आठ अंगों में तीसरा, चैथा अंग आसन व प्राणायाम से शारीरिक स्वास्थ्य प्राप्त होता है। योगासनो से शारीरिक शक्तियों को विकसित किया जाता है। जिससे शरीर ह्नष्ट - पुष्ट बनता है। उससे अंग प्रत्यंग की कार्यक्षमता में वृद्धि होती है, तथा शरीर स्वस्थ व निरोग बनता है। आसन व प्रा णायाम के द्वारा सभी अंग सुचारू रूप से कार्य करने लगते है, तथा अंतस्रावी तन्त्र प्रभावित होता हैं, तथा ग्रन्थियो के स्राव सन्तुलित होते है। जिससे शरीर स्वस्थ होता है। योग एक स्वस्थ जीवन जीने की कला है। जिसे अपनाने से सुव्यव्स्थित जीवन हो जाता है व शरीरिक स्वास्थ्य प्राप्त होता है।
वही हठयोग के अभ्यास षट्कर्मो के द्वारा शरीर में व्याप्त मल बाहर निकलते है। शरीर शुद्ध होता है। कुपित हुआ वात, पित्त, कफ सन्तुलित होता है। वमन से कफ की निवृत्ति होती है। व पित्त की निवृत्ति होती है। वस्ति क्रिया से वात की निवृत्ति होती है। इस प्रकार तीनों दोषों की समअवस्था प्राप्त होती हैं। यही साम्यावस्था ही पूर्ण स्वास्थ्य है। जिसे आयुर्वेद में भी मान्यता दी गयी है।
प्राणायाम के अभ्यास से वायु का शुद्ध सात्विक अंश ज्यादा से ज्यादा प्रवेश करता है। जिससे जीवनी शक्ति में वृद्धि होती है, तथा प्रश्वास के द्वारा अधिक से अधिक मात्रा में विजातीय द्रव्य बाहर निकलते है। रक्त शुद्ध होता हैं, तथा मन एकाग्र तथा शरीर को स्थिरता प्राप्त होती है। इस प्रकार योग साधना से रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है। शरीर में स्फूर्ति, मन में उल्लास, बहुमुखी प्रतिभा का उदय व विकास होने लगता है।
योग के अनुष्ठान करने से वर्तमान में फैल रहे मनोदैहिक रोगो पर विजय प्राप्त की जा सकती है। योग एक ऐसी सुव्यवस्थित व वैज्ञानिक जीवन शैली है। जिसे अपनाकर अनेको प्रा णघातक रोगो से बचा जा सकता है। आज विश्व स्वास्थ्य संगठन भी इस बात को मान्यता देता है कि वर्तमान में व्याप्त शारीरिक व मानसिक रोगो के उपचारार्थ योग एक अचूक चिकित्सा विधि है। जिसके द्वारा शारीरिक क्षमता में वृद्धि कर शारीरिक स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है। श्वेताश्वतर उपनिषद में योग का शारीरिक महत्व इस प्रकार वर्णन किया गया है -
‘‘न तस्य रोगो न जरा न मृत्युः
प्राप्तस्य योगाग्निमयं शरीरम्।।’’ - 2/12
अर्थात् जिसने योग रुपी अग्नि में अपने शरीर को तपा लिया उस मनुष्य के शरीर में न तो कोई रोग होता है, और न ही उसमे बुढ़ापे के लक्षण प्रकट होते है, और न ही असमय उसकी मृत्यु होती है। ब्रहम विद्योपनिषद में कहा गया है -
योग के अभ्यासो के द्वारा जो भी श्रम या तप किया जाता है, वह कभी भी निरर्थक नहीं जाता है। सत्कारपूर्वक यत्नपूर्वक की हुयी साधना मनुष्य को तीनों तापो (दुःखों) से मुक्त करती है।