कृष्ण के ससुर की हत्या क्यों-----------------श्रीकृष्णार्पणमस्तु-21


स्टोरी हाइलाइट्स

भरी हुई यादव सभा में सत्राजित ने भारी शर्मिंदगी पूर्वक स्यमंतक मणि के साथ ही अपनी प्रिय पुत्री सत्यभामा को कृष्ण को भेंट करना चाहा।

कृष्ण के ससुर की हत्या क्यों
                                                     श्रीकृष्णार्पणमस्तु-21
रमेश तिवारी
भरी हुई यादव सभा में सत्राजित ने भारी शर्मिंदगी पूर्वक स्यमंतक मणि के साथ ही अपनी प्रिय पुत्री सत्यभामा को कृष्ण को भेंट करना चाहा। परन्तु कृष्ण ने दो रत्नों, स्त्री और मणिरत्न में से मात्र स्त्री रत्न ही स्वीकार किया। मणिरत्न सत्राजित को लौटा दिया। यहां फिर एक और घटना ने जन्म लिया। यह सामान्य घटना नहीं,थी। यह घटना मानवीय दुर्बलताओं और वैमनस्य की थी। जो सर्वाधिक उल्लेखनीय बनने वाली थी।


कृष्ण के बुद्धि, चातुर्य और कौशल की परीक्षा थी। यादवोँ में आपस में अविश्वास उत्पन्न करने वाली,यह घटना ने न केवल कृष्ण की काका अक्रूर के प्रति दृढ़ श्रद्धा को डगमगा दिया। बल्कि कृष्ण को प्राणों से अधिक प्रेम और सदैव संरक्षण देने वाले अग्रज दाऊ को भी कुछ समय के लिए अलग कर दिया। यादव समाज भी प्रगति से बाधित और कलह से व्यथित हो गया। 'बिपरीत परिस्थितियों को मार्ग पर लाने की कृष्ण नीति और कला क्या थी..? कृष्ण के महान चरित्र से प्रेरणा लेने और विपरीत परिस्थितियों में भी धैर्य धरकर किस प्रकार कार्य सिद्ध किया जाता है। इस रोचक कथा को बहुत गंभीरता से सुने।
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कृष्ण हस्तिनापुर में थे। रुक्मणी के प्रासाद में विचलित और कष्ट से विगलित रो रो कर विह्वल हुई सत्यभामा ने रुक्मिणी के प्रासाद में प्रवेश किया। सौन्दर्य की देवी। कृष्ण की इस प्रिय रानी को अमर्यादित विलाप करते देख महाराज्ञी रुक्मणी भागती पहुंची। भामा को झकझोरते हुए पूछा -बहन हुआ क्या। परन्तु उत्तर ने रुक्मणी को भी शिथिल कर दिया। दीदी...! दीदी...! रात्रि किसी ने मेरे पिताजी की हत्या करदी। और स्यमनक मणि भी चुराकर ले गया। और फिर ..! से सत्यभामा जोर जोर से विलाप करने लगी। अरे..! किसी को मणि ही चुरानी थी तो चुरा ले जाता। पिताजी की हत्या क्यों की..? विलाप करती, पिता की स्मृतियों को ताजा करती सत्यभामा कृष्ण से मिलने और उन्हें हस्तिनापुर से लौटा लाने के लिये,,अभी और इसी समय स्वयं ही जाना चाहती थी। उसने महाराज्ञी रुक्मणी से अनुमति मांगी। भामा के ही क्या, रुक्मणी के भी पिता तुल्य सत्राजित की हत्या और मणि चोरी की घटना ने महारज्ञी को भी विचलित कर दिया। पूरा प्रासाद ही अव्यवस्थित हो गया था। भामा के आग्रह पर रुक्मणी ने अमात्य विपृथु के साथ उसको हस्तिनापुर जाने कि अनुमति दे दी । भामा जाते जाते कह रही थी। दीदी ..! अंतिम संस्कार की सभी व्यवस्थायें आप ही कर लेना। अपने कृष्ण पर अपार विश्वास की दृष्टि से वह हस्तिनापुर भागी जा रही है ताकि श्रीकृष्ण शीघ्र आयें और आरोपी को दंडित करें।
कृष्ण आ गये और उन्होंने सत्याजित प्रकरण में पूछताछ और खोजबीन प्रारंभ करदी।कृष्ण का मानना था कि पहले तो यह ज्ञात हो कि यह सब कौन और क्योंकर सकता है। क्या प्रकरण के पीछे ईर्ष्या है। शत्रुता है अथवा प्रतिशोध। अपने प्रकार की सूक्ष्म तरह से की जा रही खोज में कृष्ण को एक सूत्र की जानकारी प्राप्त हुई। सत्राजित की हत्या और मणि चोरी का कारण कहीं सत्यभामा ही तो नहीँ। ऐसी दबी जुबान में कृष्ण को एक सूत्र हाथ लगा।



द्वारिका में ह्रदीक नामक एक सम्पन्न यादव रहता था । उसके कृतवर्मा और शतधन्वा नामक दो पुत्र थे । कृतकर्मा द्वारिका में था। शतधन्वा शूरसेन,प्रदेश ( जिसमें मध्यदेश,-उत्तर प्रदेश और बिहार का संयुक्त प्रांत आता था) में रहता था। उसने महान सौन्दर्य शाली सत्यभामा की प्रशंसा सुन रखी थी। वह एक बार सत्राजित के पास भामा का हाथ मांगने आया भी था। परन्तु निराश होकर लौट गया था। तब सत्राजित ने उससे कह दिया था। अभी मेरी पुत्री की शादी लायक उम्र नहीं है। जब उम्र ब्याह लायक हो जायेगी, तब सोचेंगे..! सत्यभामा के सौन्दर्य की सुगंध संपूर्ण शूरसेन देश में फैल चुकी थी। अपने अनुपम सौन्दर्य के कारण सत्यभामा चर्चित थी । 

इसी आकर्षण में शतधन्वा सत्राजित के पास आया था। सत्राजित के कहने को कि..! देखेँगे - को शतधन्वा ने भविष्य का आश्वासन मान लिया। इस मध्य मणि चोरी और कृष्ण सत्यभामा विवाह की घटना भी घट गयी। इस सूत्र को पकड़ कर अपराध की तह में जाने की युक्ति ने कृष्ण अपराध का मार्ग सुझाया। कृष्ण ने शतधन्वा के भाई कृतवर्मा को बुलाया। प्रेम पूर्वक चर्चा की। उससे कहा -मान लो इस प्रकरण की खोजवीन का कार्य यादव सभा (यादवों की सभा को सुधर्मा सभा कहते थे) तुम्हीं को सौंप दे तो...! तुम क्या करोगे। कृतवर्मा सकपका गया। उसके मुख का रंग फीका पड़ गया। उसने कृष्ण को सब कुछ बता दिया। , ,, उसने कहा -मेरे भाई शतधन्वा ने ही मणि चुराई है। सत्राजित की हत्या भी मेरे भाई ने ही की है। परन्तु वह मणि को मंत्री अक्रूर को सौंप कर शूरसेन देश वापस लौट चुका है। कृष्ण अक्रूर काका का नाम आते ही विचलित हो गये। वह अक्रूर काका जो कंस के धनुर्यज्ञ में मुझ कृष्ण और दाऊ को लेकर गये थे,कंस से हमको सतर्क करते हुए। संरक्षण देते हुए। वह काका...! ऐसा कृत्य कर सकते हैं..!
अब कृष्ण अक्रूर के पिता श्वफलक और माता गांदनी से मिलने उनके घर पहुंचे। उन्होने भी अक्रूर के पास मणि रखी होने की पुष्टि करदी। हां, सर्वाधिक पुष्टि तो तब स्वत: हो गयी जब यह भनक लगते ही कि बात कृष्ण तक पहुंच गयी है,अक्रूर भी द्वारिका छोड़कर भाग गये। प्रश्न और जटिल होता जा रहा था। अब शतधन्वा को दंडित करने और अक्रूर काका को ढूंढ कर मणि प्राप्त करने का महत्वपूर्ण काम शेष था।
कृष्ण का उद्देश्य रहता था कि दोषी को दंड तो मिलना ही चाहिये किंतु उनकी नीति थी कि किसी को भी बिना जांच के, आरोपी नहीं समझना चाहिए। कृष्ण शतधन्वा और अक्रूर काका को कैसे, कहां और कब तक ढूंढ पायेंगे । ?और उनका दंड क्या होगा ..! आज की कथा बस यहीं तक। तो मिलते हैं कल प्रातः। तब तक विदा।