क्या भीष्म पितामह भी अभिमन्यु वध में शामिल होते? -दिनेश मालवीय


स्टोरी हाइलाइट्स

महान लोगों के चरित्र बहुत जटिल होते हैं. उनके व्यक्तित्व की परतों पर परतें उघाड़ते जाइए, लेकिन नयी-नयी परतें खुलती जाती हैं.

क्या भीष्म पितामह भी अभिमन्यु वध में शामिल होते? पितामह के युद्ध से हटने का कहीं यह कारण तो नहीं है -दिनेश मालवीय महान लोगों के चरित्र बहुत जटिल होते हैं. उनके व्यक्तित्व की परतों पर परतें उघाड़ते जाइए, लेकिन नयी-नयी परतें खुलती जाती हैं. महाभारत में श्रीकृष्ण के बाद सबसे महत्वपूर्ण और सम्मानजनक चरित्र भीष्म पितामह का ही है. [caption id="attachment_42331" align="alignnone" width="640"] भीष्म पितामह[/caption] कल महाभारत का एक प्रसंग सामने आया. भीष्म पितामह अर्जुन के हाथों घायल होकर वाणों की शैया पर पड़े थे. कौरवों ने अर्जुन-पुत्र अभिमन्यु को छल से बहुत अनीतिपूर्वक मार दिया था. इससे दुखी होकर दौपदी और अभिमन्यु की माता सुभद्रा पितामह के पास सांत्वना पाने जाती हैं. बड़ी अजीब बात है कि द्रौपदी के कौरव सभा में अपमान के समय जो पितामह मौन रहे, वह अभिमन्यु के वध के बाद उनसे सांत्वना पाने क्यों गयी! यही पितामह की महानता है कि इस सब के बाबजूद पाण्डवों अरु द्रौपदी के मन में उनके प्रति कोई मैल नहीं था. वे जानते थे कि पितामह अपनी प्रतीज्ञा से बंधे थे. खैर यह बात अपनी जगह, आश्चर्य तो तब हुआ जब द्रौपदी और सुभद्रा ने कहा कि, पितामह यदि आप चक्रव्यूह में उपस्थति होते तो अभिमन्यु का इस तरह छल से वध नहीं होने देते और न इस कायराना कार्य में शामिल होते. उनके इस विश्वास का न जाने क्या आधार था! शायद उनके मन में यह तथ्य रहा हो कि पितामह ने कौरव सेनापति बनते समय ही दुर्योधन से साफ़ कह दिया था कि वह पाण्डवों का वध नहीं करेंगे. हालाकि बाद में दुर्योधन ने जब उन्हने उन्हें अपमानित कर पूरी ताक़त से नहीं लड़ने के साथ-साथ देशद्रोह का आरोप लगाया, तो उन्होंने पाण्डवों का वध करने की प्रतीज्ञा कर ली थी. द्रौपदी ने चतुराई से अपना परिचय छुपाकर उनसे अपने पतियों का जीवनदान मांग लिया. पितामह ने भी बता दिया कि उनका वध करने के लिए उनके सामने शिखंडी को युद्ध करने के लिए खड़ा कर दिया जाए. वह स्त्री पर हाथ नहीं उठाते. इस तरह जब वह शस्त्र नीचे रख देंगे तो अर्जुन उनका वध कर सकता है. यह बात भी शायद इन भद्र महिलाओं के दिमाग में रही हो. इसके अलावा, युद्धभूमि में पितामह से अभिमन्यु ने द्वंद्व युद्ध भी किया था. उन्होंने अभिमन्यु के रणकौशल की खुलकर सराहना की थी. वह चाहते तो उसे आसानी से मार सकते थे, लेकिन उन्होंने सिर्फ उसे घायल करके छोड़ दिया. शायद इन्हीं कारणों से इन महिलाओं ने पितामह से यह बात कही हो. पितामह के युद्ध से हटने का प्रमुख कारण मुझे यह समझ में आया, जब उन्होंने द्रौपदी और सुभद्रा से कहा कि अभिमन्यु का जन्म होते ही ज्योतिषियों ने उन्हें बता दिया था कि उसका वध इस प्रकार होगा. शायद पितामह इस अनीतिपूर्ण युद्ध और बालक के वध में शामिल होना नहीं चाहते थे. हो सकता है इसीलिए उन्होंने अपने वध का रहस्य बताकर युद्धभूमि अलग हो जाना चाहा हो. सवाल यह उठता है कि पितामह तो हस्तिनापुर की राजसिंहासन के प्रति निष्ठा बंधे थे. कौरवों का युवराज दुर्योधन था. वह राजा का प्रतिनिधि था. उसीने द्रोणाचार्य, कृपाचार्य, कर्ण, शकुनी, अस्वत्त्थामा आदि को आदेश दिया था कि सब मिलकर एक साथ अभिमन्यु पर आक्रमण करें और उसका वध कर दें. क्या वह पितामह को भी आज्ञा देते तो क्या वह नहीं मानते? युद्ध से पहले यह नियम निर्धारित हुआ था कि योद्धा एक से एक और अपनी बराबरी के योद्धा के साथ ही युद्ध करेंगे. अभिमन्यु के वध में इस नियम को पूरी तरह तोड़ दिया गया. इसीके साथ एक के बाद एक युद्ध के नियम टूटते चले गए. सूर्य ढलने के बाद युद्ध बंद करने का नियम भी टूट गया और अंतिम दिनों में रात को भी युद्ध हुआ. और भी कई नियम टूटे. पितामह का असली नाम देवव्रत था. उन्होंने आजीवन ब्रह्मचारी रहने की भीष्म प्रतिज्ञा की थी, जिसके कारण उन्हें भीष्म और कुरुकुल में सबसे बड़े होने के नाते पितामह कहा गया. उनके चरित्र को जो लोग समझते हैं, वह जानते हैं कि पितामह के लिए अपनी प्रतीज्ञा से अधिक मूल्यवान कुछ भी नहीं था. हस्तिनापुर सम्राट के प्रति निष्ठा के चलते ही वह द्रौपदी के अपमान के समय नहीं बोले थे. युवराज दुर्योधन राजा का ही प्रतिरूप था. यदि पितामह चक्रव्यूह में उन्हें अभिमन्यु का वध करने वाले योद्धाओं में शामिल होने को कहते, तो ऐसा लगता है कि वह मना नहीं कर पाते. भले ही वे ऐसा अनिच्छा से करते लेकिन अपनी प्रतीज्ञा के पालन के लिए उन्हें ऐसा करना ही पड़ता. इसलिए उक्त स्त्रियों को भले ही यह विश्वास रहा हो कि यदि भीष्म पितामह वहाँ होते तो वे ऐसा बिल्कुल नहीं होने देते. लेकिन पितामह की अपनी प्रतीज्ञा के प्रति गहरी प्रतिबद्धता को देखें तो यही कहा जा सकता है कि वह मजबूरी और अनिच्छा से ही सही, लेकिन अभिमन्यु के वध में शामिल होते.