भोपाल में मास्टर प्लान के नाम से फिर छलावा? केंद्र की गाइडलाइन को दरकिनार कर राजधानी का विवादित मास्टर प्लान लागू करने में जल्दबाजी क्यों?


स्टोरी हाइलाइट्स

प्रदेश के 28 शहरों के मास्टर प्लान 2035 को ध्यान में रखकर बनाए जाएंगे,वो भी केंद्र की गाइड लाइन के हिसाब से, मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल का यह दुर्भाग्य होगा कि भोपाल का मास्टर प्लान तमाम गड़बड़ियों और कमियों के बावजूद  जस का तस लागू हो जाएगा। 

मध्य प्रदेश में इंदौर सहित 28 शहरों में 2035 के हिसाब से मास्टर प्लान लागू होंगे, लेकिन भोपाल में वह मास्टर प्लान (Draft) लागू होगा, जिसे मध्य प्रदेश की सरकार गड़बड़ मानकर चल रही थी। 16 साल पुराने मास्टर प्लान के हिसाब से अभी तक इसका विकास नहीं हो सका और जो नया मास्टर प्लान ((Draft) ) लागू किया जा रहा है वह अपने आप में कई खामियां लिए हुए है। 

कांग्रेस की सरकार के कार्यकाल में तैयार हुए प्रस्तावित मास्टर प्लान 2031 के ड्राफ्ट को सरकार लागू करने जा रही है। इस प्लान को बनाने की तैयारी 9 साल से चल रही थी, लेकिन यह लागू नहीं हो सका, क्योंकि अधिकारियों पर रसूखदारों के हिसाब से इसमें भारी हेरफेर करने के आरोप लगे| 

केंद्र सरकार ने अमृत योजना में शामिल सभी शहरों के मास्टर प्लान 2035 के हिसाब से बनाने की गाइडलाइन दी थी, लेकिन MP सरकार ने कहा है कि Bhopal को छोड़कर बाकी सभी शहरों के मास्टर प्लान 2035 के हिसाब से बनाए जाएंगे। 

मध्य प्रदेश के नगरीय प्रशासन मंत्री भूपेंद्र सिंह ने कहा था कि भोपाल के प्रस्तावित मास्टर प्लान में गड़बड़ियां हैं| भूपेंद्र सिंह ने यहां तक कहा था कि मास्टर प्लान में निजी हितों के कारण नियमों को दरकिनार कर हेरफेर करने वाले अधिकारियों की जांच करके कार्यवाही की जाएगी| सिंह ने कहा था कि उन्हें 2021 के हिसाब से बने मास्टर प्लान के ड्राफ्ट में, प्रथम दृष्टया भोपाल की हरियाली के साथ समझौता होता हुआ दिख रहा है, उन्होंने कहा था कि कई जगहों पर ग्रीन बेल्ट को खत्म किया गया है, जिससे भोपाल की ग्रीनरी कम हो जाएगी। लो डेंसिटी एरिया और कैचमेंट एरिया के निर्धारण में भी बड़ी गडबडियों की बात नगरीय प्रशासन, आवास और पर्यावरण मंत्री ने कही थी| आखिर ऐसा क्या हुआ जिस ड्राफ्ट में सरकार को इतनी कमियां और घोटाले दिखे उसे ही लागू किया जा रहा है| 

 

 

फिलहाल भोपाल का विकास 2005 के मास्टर प्लान के आधार पर हो रहा है, भोपाल में पिछले एक दशक में मास्टर प्लान बनाने में इतनी गड़बड़ियां हुई कि जब भी मास्टर प्लान का मसौदा तैयार हुआ उसे रद्दी की टोकरी में डालना पड़ा|

मास्टर प्लान की सड़कों पर बने  अवैध निर्माणों को बचाने की कवायद की गई या प्लान इस तरह से बनाया गया जिससे रसूखदारों की जमीनों की कीमतें आसमान छूने लगें।

केंद्र की गाइडलाइन के हिसाब से अन्य शहरों में 14 साल तक के लिए लागू होने वाले मास्टर प्लान में लैंड यूज़, पाइपलाइन, सीवरेज, टेलीफोन लाइन और बैंक एटीएम जैसी सुविधाओं को शामिल करना होगा। 

भोपाल के मास्टर प्लान में ऐसी कई खामियां होंगी जो केंद्र की गाइडलाइन के हिसाब से नहीं होंगी। 

केंद्र ने यह भी कहा था कि मास्टर प्लान जनगणना के हिसाब से बनाए जाएं। केंद्र की गाइडलाइन कहती है कि आबादी और क्षेत्र के हिसाब से फैसिलिटी का स्टैंडर्ड निर्धारित किया जाए।

केंद्र के हिसाब से नए प्लान में हॉस्पिटल, स्कूल, स्पोर्ट्स, ग्राउंड, कॉलेज, पुलिस थाना, पार्किंग, सीवरेज, पेयजल, सड़क के लिए स्टैंडर्ड और योजना शामिल होना  चाहिए। लेकिन भोपाल अभागा है जिसका अगले दस साल का प्लान पुराने ढर्रे पर बना होगा।

मास्टर प्लान को लेकर सरकारें कितनी संजीदा रही है इसका अंदाजा इस बात से लगता है कि 1995 में भोपाल के मास्टर प्लान में 241 किलोमीटर सड़कें प्रस्तावित की गई थी लेकिन इनमें से सिर्फ 52 किलोमीटर सड़कें ही बन पाई।

नए मास्टर प्लान में 795 किलोमीटर  सड़कें प्रस्तावित की गई हैं जिन्हें बनने में शायद एक सदी लग जाए।

एक तरफ भोपाल में सीपीए को बंद करने की प्रक्रिया शुरू हो गई है दूसरी तरफ नया मास्टर प्लान लागू हो रहा है।

विकास की रफ्तार इतनी धीमी है कि इस साल बजट में घोषित 264 करोड़ के चार ROB और एक फ्लाईओवर का काम शुरू नहीं हो सका है।

होशंगाबाद रोड के समानांतर रेलवे ट्रैक के दूसरी ओर बावड़िया कला के तरफ एक रोड बनाई जानी थी। यह सड़क पिछले एक दशक से प्रस्तावित है लेकिन आज तक इस सड़क का काम नहीं हो सका।

आशिमा मॉल के सामने प्रस्तावित रेलवे ओवरब्रिज भी कई साल से अपने निर्माण की राह देख रहा है।

प्रदेश की राजधानी की बड़ी सड़कें ओवरलोडेड हैं, लेकिन नई सड़कें नहीं बन रही हैं। मास्टर प्लान की सड़कों की बात बहुत दूर की बात है। जो महत्वपूर्ण सड़कें और वह ओवर ब्रिज बनने हैं बजट में नहीं आ सके हैं।

मास्टर प्लान बनाने का मकसद लोगों को दिखाने और अपनों को उपकृत करने तक सीमित दिखाई देता है, ऐसे में मध्य प्रदेश की राजधानी के सुनियोजित विकास की कल्पना शायद कर अपना ही रह जाए।