मध्यप्रदेश: क्यों विख्यात है साँची, क्या ख़ास है साँची में, सांची के दर्शनीय पर्यटन स्थल...


स्टोरी हाइलाइट्स

बौद्ध स्मारकों के लिये प्रसिद्ध सांची स्थित पहाड़ी को प्राचीनकाल में बेदिसगिरि, चेतियागिरि, काकनाथ इत्यादि नामों से पुकारा जाता था।

सांची: सांची बौद्ध धर्म के प्रमुख तीर्थ के तौर पर विख्यात है। सांची को यूनेस्को ने उसके ऐतिहासिक महत्व के कारण विश्व धरोहर के तौर पर मान्यता दी है। सांची में ईसा पूर्व तीसरी शताब्दी में बने स्तूप, प्रमुख आकर्षण के केन्द्र हैं। इन स्तूपों का निर्माण सम्राट अशोक ने बौद्ध धर्म की दीक्षा लेने के पश्चात कराया था। 

सांची भारतीय पर्यटकों के साथ ही अपने धार्मिक महत्व के कारण श्रीलंका, जापान के साथ ही अन्य दूसरे देशों से आने वाले बौद्ध पर्यटकों को बड़ी संख्या में अपनी ओर आकर्षित करता है। सांची में वर्ष 2018 में कुल 328162 पर्यटक आये थे, इनमें 4858 विदेशी थे।

बौद्ध स्मारकों के लिये प्रसिद्ध सांची स्थित पहाड़ी को प्राचीनकाल में बेदिसगिरि, चेतियागिरि, काकनाथ इत्यादि नामों से पुकारा जाता था। यह पहाड़ी 91 मीटर ऊंचाई पर है। सदी के प्रारंभिक अभिलेखों में सांची का नाम काकणाय, काकणाढवोट और सातवीं सदी ईस्वी के अभिलेखों में वोट श्री पर्वत उल्लेखित है। 

साँची में स्तूप बनवाने का श्रेय सम्राट अशोक को जाता है। यहां स्थित स्तूपों, स्तंभ, विहारों, मंदिरों, चैत्यालय का निर्माण काल तृतीय शती ई. पू. से बारहवीं शती ई. है सम्राट अशोक ने विदिशा निवासी अपनी पत्नी के कहने पर ही साँची को बौद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार का केंद्र बनाया। उन्होंने स्तूप क्रमांक-1, स्तंभ, विहार का निर्माण करवाया। उनका मानना था कि बौद्ध धर्म की शिक्षा के लिये एकांत स्थल जरूरी है। विश्व में बौद्ध का सबसे पहले प्रचार सांची से ही शुरू हुआ। सम्राट अशोक के पुत्र महेंद्र और पुत्री संघमित्रा सांची से ही बोधि वृक्ष की शाखा लेकर श्रीलंका गये थे। वे अपनी मां के साथ सांची में निर्मित विहार में ठहरे भी थे। 

पुरातत्व विभाग के महानिदेशक सर अलेक्जेंडर कनिंघम ने अपनी रिपोर्ट में सांची के स्तूपों का उल्लेख किया है। मौर्य काल के बाद शुंग, सातवाहन, काण्व, नाम, गुप्त शासन काल में भी बौद्ध स्थलों का विकास निरंतर जारी रहा। चौदहवीं शती ईस्वी से अट्ठारह सौ अट्ठारह ईस्वी में पुरातत्वविद जनरल टेलर ने इन स्मारकों के संरक्षण की दिशा में पहल की। 

पुरातत्वविद जनरल जॉनसन जनरल कनिंघम, कैप्टन मैसी, मेजर कोल, सर जॉन मार्शल ने सन् 1822 से 1919 तक के मध्य सांची स्थित बौद्ध स्मारकों का उत्खनन और संरक्षण कार्य करवाया। एक लघु संग्रहालय की स्थापना करवायी। सांची के दर्शनीय पर्यटन स्थल है। बौद्ध मंदिर, स्तूप क्र-1, स्तूप क्र-2, स्तूप क्र-3, स्तंभ, चैत्यालय, विहार और संग्रहालय सांची के समीप ही दो अन्य महत्वपूर्ण पुरातात्विक पर्यटन स्थल उदयगिरी की गुफाएं और ग्यारसपुर के पुरातात्विक स्थल स्थित हैं। सामान्यतौर पर सांची आने वाले पर्यटक इन दोनों स्थलों की यात्रा के लिए भी जाते है|