आदिम जाति, मध्यप्रदेश की आदिम जाति जनसंख्या, विकास और परंपराएं...


स्टोरी हाइलाइट्स

जनजातियों का वनों के साथ अद्भुत और अटूट नाता है। इस कारण राज्य के उन ग्रामीण व वन क्षेत्रों में आज भी आदिवासी आबादी का बाहुल्य है।

जनजातीय आबादी के संदर्भ में मध्यप्रदेश को आदिवासी राज्य कहा जाए तो यह कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। मध्यप्रदेश में देश की सबसे ज्यादा जनजातीय जनसंख्या (14.70 प्रतिशत) निवास करती है। 2011 की जनगणना के अनुसार राज्य की कुल जनजातीय आबादी 1 करोड़ 53 लाख 16 हजार 784 है। इसमें पुरुषों की संख्या 77 लाख 19 हजार 404 और महिलाओं की संख्या 75 लाख 97 हजार 380 है। इसमें से करीब 1 करोड़ 42 लाख 76 हजार 874 आबादी ग्रामीण क्षेत्रों और 10 लाख 39 हजार 910 आबादी शहरों क्षेत्रों निवास करती है। 

अनुसूचित जनजातियां पद सर्वप्रथम भारत के संविधान में प्रकट हुआ। अनुच्छेद 366 (25) में अनुसूचित जनजातियों को ऐसी आदिवासी जाति या आदिवासी समुदाय या इन आदिवासी समुदाय का भाग या उनके समूह के रूप में, जिन्हें इस संविधान के उद्देश्य के लिए अनुच्छेद (342) में अनुसूचित जनजातियां माना गया है, परिभाषित किया गया है। भारतीय संविधान अनुच्छेद 275 (1) तथा 339 (2) में अनुसूचित क्षेत्रों के प्रशासन की व्यवस्था की गई है।

जनजातियों का वनों के साथ अद्भुत और अटूट नाता है। इस कारण राज्य के उन ग्रामीण व वन क्षेत्रों में आज भी आदिवासी आबादी का बाहुल्य है। जहां वन बचे हुए हैं। घटते जंगलों और नगरीकरण के बढ़ते प्रभाव के कारण आज अधिकांश आदिवासी प्राचीन काल की तरह ठेठ वनों में तो नहीं रहते है लेकिन वन आज भी उनकी आजीविका और जीवन का बड़ा आधार है। 

मध्यप्रदेश के जनजातीय क्षेत्रों को मुख्यत: तीन क्षेत्रों में विभक्त किया जा सकता है। यह क्षेत्र हैं मध्य क्षेत्र, चंबल क्षेत्र और पश्चिम क्षेत्र। 

(1) मध्य क्षेत्र मध्य क्षेत्र के तहत होशंगाबाद, बैतूल, छिंदवाड़ा, सिवनी, बालाघाट, मंडला, डिंडौरी, रायसेन आदि जिलों में गोंड, बैगा, कोल, कोरकू परधान, भारिया और मुरिया निवास करते हैं।

(2) पश्चिम क्षेत्र अपने नाम के अनुरूप ही राज्य के पश्चिमी क्षेत्र में स्थित झाबुआ, धार, खरगोन, बड़वानी व रतलाम जिलों में भील, भिलाला, परितवा, बारेला, तड़नी का बसेरा है।

(3) चंबल क्षेत्र राज्य के ग्वालियर, भिंड, मुरैना, ग्वालियर, गुना, श्योपुर और शिवपुरी को समेटने वाले इस क्षेत्र में विशेष पिछड़ी सहरिया जनजाति का निवास है। सामान्य तौर पर जनजातीय समूह जंगलों में निवास करते हैं, पर जंगलों के विनाश के चलते वे अब मैदानी इलाकों में भी निवास करने लगे हैं। 

इसके बावजूद भी राज्य की अधिकांश जनजातीय आबादी जंगलों व सुदूर क्षेत्रों में ही निवास करती है। कौन-सा समुदाय अनुसूचित जनजाति की श्रेणी में आता है और कौन सा समुदाय अनुसूचित जनजाति की श्रेणी में नहीं आता है, इसका निर्धारण संविधान के अनुच्छेद 342 के तहत भारत के राष्ट्रपति के द्वारा किया जाता है। 

किसी राज्य या संघ के संबंध में उन जातियों, मूलवंशों या जनजातियों अथवा जातियों के भागों या उनके समूहों को भारत के राष्ट्रपति के द्वारा विनिर्दिष्ट किया जाता है। इन्हें इस संविधान के प्रयोजन के लिए उस राज्य या संघ राज्य के संबंध में अनुसूचित जनजातियां समझा जाता है।

मध्य प्रदेश की अनुसूचित जनजातियां: 

भारत के राष्ट्रपति के द्वारा मध्यप्रदेश के लिए जारी अनुसूचित जनजातियों की सूची संशोधन (1976) में इन्हें 46 समुदाय के अंतर्गत सूचीबद्ध किया गया था। भारत सरकार की अधिसूचना दिनांक 8 जनवरी 2003 द्वारा मध्य प्रदेश की अनुसूचित जनजातियों की सूची में अंकित क्रमश: कौर, मौना एवं पारधी जनजातियों को सूची से विलोपित किया गया है। इस प्रकार मध्य प्रदेश में कुल 43 अनुसूचित जनजाति समूह अधिसूचित है। नीचे दी जा रही सूची संपूर्ण 46 समुदायों को है:

1. अगरिया  2. आन्ध  3. बैगा  4. भैना  5. भारिया, भूमिया, भुइहार, भूमिया, भूमिआ, भारिया, पालिहा, पांडो  6. भत्तरा  7. भील, भिलाला, बारेला, पटेलिया  8. भील मीना  9. भुजिया  10. बिआर, बियार  11. बिंझवार  12. बिरहुल, बिरहोर  13. डामोर, डामरिया  14. धनवार  15. गदाबा, गदबा  16. गोंड, अरख, अराख, अगरिया, असुर, बड़ी मारिया, बड़ा मारिया, भटोला, भिम्मा, भूता, कोईलाभूता, कोलियाभूती, भार, बायसनहर्हान, मारिया, छोटा मारिया, दंडामी मारिया, धुरू, धुरवा, धोबा, धुलिया, दोरला, गायकी, गत्ता, गत्ती, गैता, गोंड, गावारी, हिल मारिया, कंडरा, कलंगा, खटोला, कोइतर, कोया, खिरवार, खिरवारा, कुचा, मारिया, कुचकी, मारिया, माडिया, मारिया, मन्नेवार, मोध्या, मोगिया, मोध्या, मुड़िया, मुरिया, नगारची, नागवंशी, ओझा, राजगोंड, सोन्झारी, झरेका, थाटिया, थोटया, बड़े मारिया, बड़ेमाडिया, दरोई।

17. हलबा, हलबी  18. कमार  19. कोरकू  20. कबर, कंवर, कौर, चेरवा, राठिया, तंवर, छत्री  21. कोर (भोपाल, रायसेन और सीहोर जिलों में)  22. खैरवार, कोंदर 23. खारिया  24. कॉथ, खोड, कंध  25. कोल  26. कोलम  27. कोरकू, बोपची, मोआसी, निहाल, नाहुल, बोधी, बोदेया  28. कारवा, कोडाकू  29. माझी  30. मझवार  31. मवासी  32. मोना (विदिशा जिले के सिरॉज उपखंड में)  33. मुंडा  34. नगेसिया, नगासिया  35. उराव, धनका, धनगड़  36 पनिका (1) छतरपुर, पन्ना, रीवा, सतना, शहडोल, उमरिया, सीधी और टीकमगढ़ जिलों और (2) दतिया जिले के सेवड़ा एवं दतिया तहसीलों में)  37. पाव  38. परधान, पठारी, सरोती  39. पारधी (भोपाल, रायसेन और सीहोर जिलों में),  

40. पारधी, बहेलिया, बहेलिया, चिता पारधी, लंगोली, पारधी, फांस पारधी, शिकारी, टकनकर, टाकिया. 

(1) छिंदवाड़ा, मंडला, डिंडोरी एवं सिवनी जिलों में. 

(2) बालाघाट जिले की बैहर तहसील. 

(3) बैतूल जिले के बैतूल, भैंसदेही एवं शाहपुर तहसीलों में.

(4) जबलपुर जिले की पाटन तहसील एवं सिहोरा और मझौली ब्लाक. 

(5) कटनी जिले की कटनी (मुरवारा) और विजयराघवगढ़ तहसीलों एवं बहोरीबंद और ढीमरखेड़ा ब्लाक. 

(6) होशंगाबाद जिले की होशंगाबाद, बाबई, सोहागपुर, पिपरिया और बनखेड़ी तहसीलों तथा केसला ब्लाक नरसिंहपुर जिला. 

(7) खंडवा (पूर्वी निमाड़) जिले की हरसूद तहसील में).  

41. परजा  42. सहारिया, सहरिया, सहरिया, सहरिया, सोसिया, सोर  43, साओंता, सौता  44. सौर  45. सांवर, सावरा  46. सॉर (स्रोत: आदिम जाति कल्याण विभाग, मध्यप्रदेश शासन, प्रशासकीय प्रतिवेदन 2018-19, पृष्ठ क्रमांक 238, 239) विशेष पिछड़ी जनजातियां प्रदेश में तीन विशेष पिछड़ी जनजातियां, सहरिया, बैगा और भारिया निवास करती हैं। इनकी कुल जनसंख्या 550608 है। 

इन जनजातियों के लिए ग्यारह विशेष पिछड़ी जनजाति विकास प्राधिकरणों का गठन किया गया है। राज्य की विशेष पिछड़ी जनजातियां इस प्रकार हैं:

सहरिया: मध्यप्रदेश में निवास करने वाली तीनों विशेष पिछड़ी जनजातियों में से एक सहरिया है। यह आर्थिक विकास की दौड़ में सर्वाधिक पिछड़े हुए हैं। राज्य एवं केन्द्र सरकार के द्वारा सहरिया जनजाति के विकास के लिए अनेक विकास योजनाएं प्रारंभ की गई है। यह योजनाएं स्वास्थ्य, खाद्य, पेयजल एवं रोजगार से जुड़ी हुई हैं। इसके लिए विशेष अभिकरण भी गठित किए गए हैं।

सहरिया अपनी आजीविका के लिए वनोपज संग्रह, जड़ी-बूटियों की खेती और मजदूरी पर निर्भर रहते हैं। ये जड़ी-बूटियों के गुण-दोष को पहचान कर इलाज भी करते हैं। शिकार उनका शौक है। वे कला-संस्कृति की दृष्टि से भी संपन्न हैं। सहारिया जनजाति की उत्पत्ति के बारे में कोई स्पष्ट उल्लेख नहीं है। सहरिया खुद अपने आपको खुटिया पटेल कहते हैं। यह रोलापितान प्रजाति की संपूर्ण पहचान रखने वाली आदिम जनजाति है। 

कुछ लोगों का मानना है कि सहारिया शब्द की उत्पत्ति फारसी के सहा शहर से हुई है। जिसका मतलब वन होता है। सहरियों की बसाहट को सहराना कहते हैं। सहराना का मुखिया पटेल होता है। वह पीढ़ी दर पीढ़ी राज करता है। सहरिया पितृसत्तात्मक समाज है। इसमें पुरुष का दर्जा स्त्री से ऊपर माना गया है। सहरिया जनजाति के विकास के लिए विकास अभिकरण अभियान गठित किए गए हैं। राज्य में सहरिया सबसे बड़ी पिछड़ी जनजाति समूह है प्रदेश में इनकी कुल आबादी 417171 है। सहरिया राज्य के 8 जिलों ग्वालियर, दतिया, शिवपुरी, गुना, अशोकनगर, श्योपुर, भिंड़ और मुरैना के 126 विकासखंड़ो के 1159 ग्रामों में निवास करते है।

बैगा बैगा जनजाति मुख्यतः राज्य के मंडला, बालाघाट, शहडोल, डिंडोरी, अनूपपुर, उमरिया जिलों में निवास करती है। सतपुड़ा और मैकल पर्वत श्रृंखला के बीच बैगा आबादी की भरपूर बसाहट है। राज्य में बैगा आबादी का संकेन्द्रण मंडला जिले और उसके आसपास है। मंडला जिले में बैगाओं के अस्सी से ज्यादा गांव हैं। इन्हें बैगा चक कहा जाता है। इन बैगा गांवों तक आवागमन के सहज साधन उपलब्ध नहीं है।

बैगा जनजाति के लोगों के जंगलों में निवास करने के कारण इनका रहन-सहन सादा है। वे अल्प संसाधनों में अपना जीवन यापन करने के लिए पहचाने जाते हैं। वे बहुत कम वस्त्र पहनते हैं। पुरुष प्राय: उघाड़े बदन रहते हैं। शरीर के निचले हिस्से पर एक कपड़ा होता है। जिसे वे लंगोट कहते हैं। विशेष अवसरों पर पुरुष धोती व जैकेट भी धारण करते हैं। स्त्रियां धोती (साड़ी पहनती हैं। छोटे बच्चे अक्सर निर्वस्त्र रहते हैं। बैगा, सहरियाओं के समान ही पुरुष व पितृ सत्तात्मक समुदाय है। 

स्त्रियों की सामाजिक स्थिति, पुरुषों के बाद आती है। बैगा समाज में पुरुषों के द्वारा बनाए गए कानून व सामाजिक मान्यताएं प्रभावी रहती हैं। सामाजिक मामलों के निपटारे के लिए बैगाओं की अपनी परंपरा होती है। इसमें पांच पंच होते हैं:- 1.मुकदम, 2. दीवान, 3. समरथ, 4. कोटवार 5. एक अन्य।

बैगा अपनी आजीविका के लिए जंगल, उसके उत्पादों, खेती-किसानी और मजदूरी पर निर्भर रहते हैं। बैगा जनजाति के विकास के लिए राज्य सरकार द्वारा छह बैगा विकास अभिकरण मंडला, शहडोल, बालाघाट, उमरिया, डिंडोरी और अनूपपुर जिलों में गठित किए गए हैं। यह अभिकरण बैगाओं के समन्वित व संपर्क सम्यक विकास के लिए कार्य करते हैं। 

आदिवासी लोककला अकादमी मध्यप्रदेश संस्कृति परिषद के प्रकाशन सम्पदा के अनुसार रसेल और हीरालाल के अनुसार ' प्रारंभ में भगवान ने नागा बैगा और नागी बैगिन को बनाया। नागा बैगा और नागा बैंगिन जंगल में रहने लगे। थोड़े दिन बाद उनकी दो संताने हुई। पहली संतान बैगा और दूसरी गोंड। दोनों संतानों ने अपनी दोनों बहनों से विवाह कर लिया। आगे चलकर मनुष्य जाति की उत्पत्ति इन्हीं दो युगलों से हुई। पहले युगल से बैगा हुए और दूसरे युगल से गॉड उत्पन्न हुए।'

राज्य में बैगा दूसरा सबसे बड़ा पिछड़ी जनजाति समूह है। प्रदेश में उनकी कुल आबादी 131425 है।

राज्य के 6 जिलों डिंडोरी, उमरिया, शहडोल, अनूपपुर, मंडला और बालाघ के 25 विकासखंड़ो के 1143 ग्रामों में निवास करते है।

भारिया: भारिया मुख्यत: राज्य के छिंदवाड़ा जिलों में निवास करते हैं। उनकी कुछ आबादी जबलपुर जिले में भी है। अनुमान के अनुसार यहाँ उनकी आबादी डेढ़ दो लाख के आसपास होगी। भारिया जनजाति के लोग एकांत और सुदूर इलाके में रहना पसंद करते हैं। इस जाति के लोग जहां बसे होते हैं उसे वे ढाना कहते हैं। एक ढ़ाना में दो से लगाकर पच्चीस घर होते हैं। एक ढ़ाने से दूसरे ढ़ाने की दूरी तीन से पांच किलोमीटर तक हो सकती है। 

दो चार ढ़ाना मिलाकर इस जनजाति के लोगों का एक गांव बन जाता है। इस जाति के लोगों की खासियत यह भी है कि ये अपने मकान खुद बनाते हैं। इनके मकान लकड़ी, घास-भूस के होते हैं। घर में एक बड़ा कमरा होता है, उसी में एक तरफ रसोई की खोली होती है। मिट्टी की बनी कोठियों से खोली का पार्टीशन कर लिया जाता है। घर के सामने लकड़ी की बनी सार होती है, जिसमें मवेशी रखे जाते हैं। घर के आंगन में चार मोटो लकड़ियों का एक मढ़ा होता है जिसके ऊपर महुआ, गुली और आम की गुठलियां सुखाए जाते हैं।

छिंदवाड़ा जिले में तामिया विकासखंड के पातालकोट इलाके में इनकी आबादी का पर्याप्त संकेन्द्रण है। पातालकोट जाने के लिए सामान्य धरातल से उतरकर पहाड़ियों के बीच में काफी नीचे तक जाना होता है। इसलिए इस इलाके को पाताल से तुलना करते हुए पातालकोट कहा जाता है। 

एक जमाने में यह इलाका काफी अल्प विकसित था, लेकिन आज यहां विकास की रोशनी पहुंच गई है। भारिया समतामूलक समाज है। इसमें स्त्री पुरुषों का दर्जा बराबर का होता है। आजीविका के लिए भारिया वनोपज, जड़ी-बूटियां, घाट के झाड़ बनाने, काष्ठ कला पर निर्भर रहते हैं। भारिया, सगोत्री विवाह नहीं करते हैं। भारिया जनजाति में विवाह वयस होने ही होते हैं। विवाह का प्रस्ताव लड़के के पिता की ओर से जाता है, परन्तु कन्या के पिता तक विवाह का प्रस्ताव लड़के के पिता की ओर से कुछ मित्रों द्वारा भेजने की परंपरा है। 

अगर मंगनी पक्की करनी हो तो वधू का पिता, दूल्हा के पिता और उसके मित्रों को भोजन के लिए आमंत्रित करता है। वर का पिता, वधू के लिए भेंट स्वरूप गले का हार और टिकली लाता है। लेकिन ये वस्तुएं वधू पक्ष के रिश्तेदारों को सौंपी जाती है। रंग गुलाल, गालों पर मलने की प्रथा है और गालों को पकड़ने की भी। भरिया जाति में विवाह की तारीख ब्राह्मण ही तय करता है। भारियाओं में विवाह की चार पद्धतियां हैं। यह हैं: 1. मंगनी विवाह, 2. लमसेना, 3. राजीबाजी का विवाह, 4. विधवा विवाह।

हिन्दू धर्म में आस्था रखने वाले भारिया के अपने लोक देवता- बूढ़ा देव, दूल्हा देव, नागदेव और बरूआ है। वे होली, दीवाली, बिरही पूजा, नवाखानी जैसे त्यौहार मनाते हैं। भारियाओं में मृत्यु पर शव दफनाने का रिवाज है। इस मौके पर गमी रोटी के आयोजन की परंपरा है। राज्य शासन द्वारा भारिया जनजाति के विकास के लिए भारिया विकास अभिकरण का गठन किया गया है। इसका मुख्यालय छिंदवाड़ा जिले का तामिया है।

भारिया राज्य का तीसरा और सबसे छोटा विशेष पिछड़ी जनजाति समूह है। प्रदेश में उनकी कुल आबादी महज 2012 है। भारिया राज्य के 1 जिले छिंदवाड़ा के पातालकोट क्षेत्र में निवास करते हैं। भारिया 12 गांव में निवास करते हैं। यह सभी गांव एक ही विकासखंड के तहत आते है।