एक ऐसा पद जो खुशी से ज्यादा देता है गम, एक दशक में रहे मुख्य सचिवों के आने-जाने के किस्से.. सरयूसुत मिश्रा


स्टोरी हाइलाइट्स

मध्यप्रदेश में मुख्य सचिव का पद कभी खुशी, कभी गम का पद बन गया है. एक दशक के अनुभव तो इसी तरफ इशारा कर रहे हैं....

एक ऐसा पद जो खुशी से ज्यादा देता है गम, एक दशक में रहे मुख्य सचिवों के आने-जाने के किस्से.. सरयूसुत मिश्रा मध्यप्रदेश में मुख्य सचिव का पद कभी खुशी, कभी गम का पद बन गया है. एक दशक के अनुभव तो इसी तरफ इशारा कर रहे हैं. एक दशक के दौरान जो नौकरशाह मुख्य सचिव के पद पर रहे हैं, उनका जीवन पद से हटने के बाद सामान्य नहीं रह पाया. जिस सरकार के प्रशासन के वह कभी मुखिया हुआ करते थे, उसी सरकार ने उन्हें पद से हटने के बाद जांच, भ्रष्टाचार, अथवा पद देने और लेने के ऐसे खेल खेले हैं कि सेवानिवृत्ति के बाद इन सबसे बड़े नौकरशाहों का अमन चैन गुम हो गया. मुख्य सचिव का पद आजकल राजनीतिक सौदेबाजी का पद हो गया है. मुख्य सचिव की नियुक्ति न तो योग्यता और न ही वरीयता के आधार पर की जाती है. योग्यता का तो कोई वास्तविक पैमाना नहीं है, लेकिन वरिष्ठता तो निश्चित ही बड़ा आधार है. योग्यता सह वरिष्ठता के पद ऐसे होते हैं, जहाँ योग्यता के लिए गोपनीय चरित्रावली में सर्वोत्कृष्ट प्लस “क” श्रेणी आधार बनती है. एकमात्र मुख्य सचिव का पद है, जिसकी कोई पदोन्नति समिति की बैठक नहीं होती. अपर मुख्य सचिव का पद मुख्य सचिव वेतनमान का ही पद होता है. उसी केडर से मुख्यमंत्री अपनी पसंद के किसी भी नौकरशाह को मुख्य सचिव बना देता है. यह पद राजनेताओं की मर्जी पर क्यों छोड़ा गया है? इसके पीछे निश्चित ही कोई आधारभूत सोच होगी. मुख्य सचिव का पद पाने के लिए राजनीतिक जोड़-तोड़ और प्रतिस्पर्धा की संभावनाओं को धूमिल करने का खुला खेल खेला जाता है. जब भी मुख्य सचिव बनाने का फैसला लिया जाता है, तो सबसे बड़े नौकरशाह का झुकाव बदल जाता है. मध्यप्रदेश के एक दशक के प्रशासनिक अनुभव तो मुख्य सचिव के पद को लेकर ऐसा ही कह रहे हैं. मध्यप्रदेश में 2004 के बाद मुख्य सचिव की पदस्थापना को देखा जाए तो केवल राकेश साहनी ऐसे मुख्य सचिव रहे हैं, जिन्होंने 4 साल का कार्यकाल पूरा किया है. उनकी नियुक्ति भी एक अप्रत्याशित घटनाक्रम के तहत हुई थी. लगभग डेढ़ साल पहले मुख्य सचिव बनाए गए विजय सिंह को अप्रत्याशित ढंग से पद से हटा दिया गया था. उस समय हुए घटनाक्रम के मुताबिक मुख्य सचिव विजय सिंह को तत्कालीन मुख्यमंत्री के साथ राजकीय विमान से एक कार्यक्रम में जाना था. विमानतल पर उन्हें विमान में चढ़ने से रोक दिया गया और 2 घंटे के भीतर उनकी मुख्य सचिव पद से विदाई हो गई. राकेश साहनी को नया मुख्य सचिव बनाया गया. राकेश साहनी 4 साल मुख्य सचिव के पद पर रहे. उसके बात अवनी वैश्य 2 साल 2 माह, आर. परशुराम 16 महीने, एंटोनी जेसी डिसा 3 साल, बसंत प्रताव सिंह 2 साल 1 माह, सुधी रंजन मोहंती 14 महीने और एम गोपाल रेड्डी महज 8 दिन मुख्य सचिव पद पर रहे. वर्तमान मुख्य सचिव इकबाल सिंह बैंस भी लगभग ढाई साल इस पद पर रहेंगे. यह समय उनकी सेवानिवृत्ति तिथि के अनुसार है. जो भी नौकरशाह मुख्य सचिव बने हैं और पद से रिटायर होने पर सरकार ने उन्हें नए पद पर पुनर्वास कर दिया है, उन सभी को बाद में अपमानजनक परिस्थितियों से गुजरना पड़ा है. जिस सरकार ने साहब को उपकृत किया उसी सरकार ने बेइज्जत कर पुनर्वास वाले पद से हटाया. एंटोनी डिसा रेरा के पहले अध्यक्ष बनाए गए. जिस सरकार ने उन्हें अध्यक्ष बनाया, उसी सरकार ने बाद में रेरा अध्यक्ष के निर्धारित कार्यकाल को कम करके उन्हें पद से हटाया. उनके मामले में प्रशासनिक हलकों में ऐसा माना जाता है कि 2018 में चुनाव के समय रेरा अध्यक्ष रहते हुए उन्होंने कांग्रेस और कमलनाथ का सहयोग किया. पंद्रह महीने की कमलनाथ सरकार में नौकरशाहों की पदस्थापनाओं  में भी उनकी भूमिका मानी जा रही थी. कमलनाथ सरकार में पदस्थापनाओं से पीड़ित नौकरशाहों और फिर से भाजपा की सरकार बनने के बाद डीसा को अपमानजनक ढंग से रेरा अध्यक्ष पद से जाना पड़ा. उन्होंने तो मीडिया में अपनी नाराजगी का भी इजहार किया था. इसी प्रकार आर. परशुराम मुख्य सचिव के पद से रिटायर होने के बाद राज्य निर्वाचन आयुक्त और फिर अटलबिहारी सुशासन संस्थान में अध्यक्ष बनाए गए. उन्हें भी अचानक बैठक में इस्तीफा देने के लिए मजबूर होना पड़ा. इन दोनों मामलों में सबसे आश्चर्यजनक यह रहा जिस सरकार के जिस मुख्यमंत्री ने उन्हें मुख्य सचिव के बाद उपकृत किया था उन्ही के द्वारा इन दोनों को हटाया गया. इसके बाद मुख्य सचिव बनाए गए बसंत प्रताप सिंह भी राज्य निर्वाचन आयोग में अध्यक्ष बनाए गए. उनके लिए भी परिस्थितियां अनुकूल नहीं बताई जा रही हैं. फिर जो नौकरशाह मुख्य सचिव बने, उन्होंने तो प्रशासनिक इतिहास रचा है. एसआर मोहंती के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप जांच एजेंसियों में चल रहे थे. उन्हें प्रमुख सचिव और अपर मुख्य सचिव  के पद पर पदोन्नति सशर्त दी गई थी. उनकी पदोन्नति को न्यायालय के आदेशों के अधीन रखा गया था.  फिर 2018 में प्रदेश में राजनीतिक बदलाव के बाद जो सरकार बनी, उसके मुख्यमंत्री कमलनाथ ने न्यायालय से प्रकरण वापस लेकर उन्हें मुख्य सचिव बना दिया. दुर्भाग्य से जब फिर सरकार बदली तो केस वापस लेने का यह निर्णय सरकार ने वापस ले लिया. फिर से जांच खोली गई, लेकिन अंततः वह भी ठंडे बस्ते में चली गई. उसके बाद एम. गोपाल रेड्डी को मुख्य सचिव के पद का हस्तांतरण किया गया. हस्तांतरण इसलिए क्योंकि मोहंती रिटायर नहीं हो रहे थे. लेकिन उसके पहले वे स्वयं दूसरे पद पर पदस्थ हो गए और मुख्य सचिव का पद रेड्डी को दे दिया गया. जैसे ही कमलनाथ सरकार गई, रेड्डी को भी जाना पड़ा और नई सरकार के मुख्य सचिव इकबाल सिंह बैंस बने. पिछले चार मुख्य सचिव पद से हटने के बाद चैन से नहीं रह पाए. किसी की जांच खुल गई, तो किसी के यहां भ्रष्टाचार के आरोप में आईटी के छापे तक पड़े. दो पूर्व मुख्य सचिव, जिनका महत्वपूर्ण पदों पर पुनर्वास किया गया था, उनको मजबूरन हटना पड़ा. इन परिस्थितियों को देखते हुए प्रशासनिक हलकों में ऐसा परसेप्शन है कि, जैसे मुख्य सचिव का पद अभिशप्त हो गया है. सबसे बड़े नौकर शाह को निशाना जानबूझकर बनाया जाता है या नियुक्ति सोच समझकर नहीं की गई थी? जो पद सर्वाधिक सम्मान का होना चाहिए उस पद पर रहे व्यक्ति की बेकद्री प्रशासन के दर्द और कमजोरियों को उजागर करता है. कुछ दर्द ऐसे होते हैं जिनकी आवाज नहीं होती. राज्य के मुख्य सचिव का पद ऐसा ही बन गया है, जिसमें पद रहने की जितनी खुशी नहीं होती, उससे ज्यादा पद से हटने के बाद दर्द पूरी उम्र झेलना पड़ता है.