स्टोरी हाइलाइट्स
कोरकू जनजाति के उत्पत्ति संबंधी मिथकपहली मान्यताकोरकू जनजाति में दैवीय उत्पत्ति संबंधी कई प्रकार के मिथक सुनने को मिलते हैं
कोरकू जनजाति के उत्पत्ति संबंधी मिथक
पहली मान्यता
कोरकू जनजाति में दैवीय उत्पत्ति संबंधी कई प्रकार के मिथक सुनने को मिलते हैं एक मान्यता के मुताबिक कोरकू नजाति सगे भाई बहनों की संतान हैं, मसलन-
कोरकू जनजति में सबसे पहले सिर्फ एक डोकरा और एक डोकरी ही थे। उनके सात लड़के और सात ही लड़की थी।
भगवान ने सोचा कि इस जाति का आगे क्या होगा? इनका जाति करने के लिए गए थे। बहुत जोर से आँधी चली और पानी गिरने लगा, चारों ओर बिजली कड़कने लगी। सातों भाई और सातों बहने घबराकर इधर-उधर, जिसको जहाँ भी जगह मिली वहाँ पर छुप गए। आँधी तूफान इतना भयानक था कि सोचा अपनी वंश कैसे बढ़ेगा? यह सोचकर भगवान ने एक दिन चमत्कार दिखाया। उस दिन सातों भाई और सातों बहने जंगल में काम याददाश्त खो बैठे। फिर जो जिस जगह छुपा था, उस जगह के आधार पर उसका गोत्र बन गया। जैसे जो मिट्टी और पानी वाली जगह पर छिपा उसका गोत्र कास-डा, अर्थात् मिट्टी, पानी (कास का अर्थ कोरकू भाषा में मिट्टी होता है और डा का पर्याय पानी है) हो गया। इसी प्रकार जिसने छुपने की जगह पत्तों में तलाशी उसका गोत्र साकोम हो गया। जो जामुन के पेड़ पर छुपा वह जम्बू हो गया। जो मछली के पास छिपा था वह ढिकार गोत्र का हो गया। ऐसे ही बैठे, टाखेर, दरसिंमा, सीलू, भुसुम, अखंडी, मोरराना, सुथार आदि कुल गोत्र हो गये भगवान ने बाद में इन्हीं सातों भाई और बहनों का विवाह करवा दिया और कहा कि आज से एक ही गोत्र में विवाह करना पाप होगा।
दूसरी मान्यता
इसके विषय में बताया जाता है कि एक बार भगवान शव ने सभी कोरकुओं को एक पंगत में बिठाया और सबको भोजन में एक से एक स्वादिष्ट मिष्ठान परोसे। इतने में पंगत के बीच एक खरगोश दौड़ता दिखा। सभी कोरकू अपना भोजन छोड़ उसका शिकार करने के लिए उसकी तरफ दौड़ पड़े। वे कोरकू जंगल-जंगल उस खरगोश की तरफ दौड़े। तब भगवान शंकर ने कहा कि अब तुम आगे से ऐसे ही जंगल-जंगल शिकार के लिए दौड़ते रहोगे और माँस खाते रहोगे ।
तीसरी मान्यता
कोरकू जनजाति के बुजुर्ग लोगों से एक और कथा सुनने को मिलती है जिसके अनुसार- भगवान ने नौ खंड धरती और नौ खंड आसमान की रचना की । इसके बाद भगवान ने सारे देवी बनाये। ये मानव की जीवन भर रखवाली करेंगे। फिर भगवान ब्रह्मा ने कुत्ते की रचना कर दी। कुत्ता सबकी रखवाली करने लगा। विमाता द्वारा सभी मानव का लेख लिख दिया गया। इनका नाम रुमाजी कोरकू और धनाय बाई कोरकू रखा गया। इसके बाद उनकी सात लड़की और सात लड़के पैदा हुए। जब ये चौदह बच्चे बड़े हुए तो इनके विवाह की समस्या सामने आई। भगवान शंकर-पार्वती ने इसका समाधान किया। उन्होंने एक दिन ऐसा आँधी तूफान चलाया कि सारे लड़के-लड़कियाँ तूफान में घिर गए और अपनी याददाश्त खो दी। जो जिस जगह छुपा था, वही उसका कुल देवता और कुल नाम हो गया। भगवान ने इनकी शादी करवा दी। कोरकू जाति इनकी ही संतान कहलायी ।
चौथी मान्यता
इस मान्यता के अनुसार किसी समय बरार नागपुर में कोरम नाम का एक राजा राज्य करता था। उसने अपना सारा राजा पाट छोड़कर संन्यास ले लिया। वह जंगल-जंगल भटकने लगा । किन्तु एक कोरकू लड़की ने उसकी परीक्षा ली और राजा की तपस्या भंग हो गई। दोनों ने विवाह कर लिया। उस स्त्री की संतान ही कोरकू कहलाई। इस कथा को कहीं-कहीं छोटा नागपुर से जोड़कर भी सुनाया जाता है।
पाँचवी मान्यता
इस मान्यता के मुताबिक विश्वास किया जाता है कि नर्मदा नदी के किनारे बसे गाँव बड़केश्वर के पास स्थित चाँदगढ़ में राजा कनवर का राज्य था। कौरव वंश की एक महिला राजा के देवताओं को बनाया। तीन युग बीतने के बाद कलियुग बनाया । कलियुग लगते ही भगवान ने एक सभा बुलाई। सभा में ब्रह्मा , विष्णु, महेश और तीनों सती देवियों को भी बुलाया और विचार कर धरती पर मानव बनाने का फैसला किया। सब भगवानों ने नारद को आज्ञा दी की धरती पर मानव बनाने के लिए मिट्टी लाओ। नारद ने काकभुसुंडी से कहा की जल्दी से नदी पर जाओ और मिट्टी लेकर आओ। काकभुसुंडी नदी पर गया और केकड़े के दर (घर) की मिट्टी चोंच में भर ली। अपने दर की मिट्टी ले जाते देख केकड़े ने काकभुसुंडी की गर्दन पकड़ ली। काकभुसुंडी घबरा गया, और रोने चिल्लाने लगा। गिड़गिड़ाते हुए अपने किए के लिए क्षमा माँगने लगा। उसने केकड़े से कहा कि मैं अपने स्वार्थ के लिए यह मिट्टी नहीं ले जा रहा था । मैं तो नारदजी की आज्ञा से यहाँ आया था। मुझे तुम छोड़ दो। इतना सुनकर केकड़े ने कहा कि मैं तुम्हें छोड़ भी रहा हूँ और मिट्टी भी ले जाने दूँगा किन्तु एक शर्त रहेगी। इस मिट्टी से मानव बनेगा फिर संसार बनेगा। किन्तु मेरी यह मिट्टी लौटाना भी होगी। काकभुसुंडी ने सब बातें मान ली और मिट्टी ले जाकर भगवान के दरबार में रख दी। उसने सारी बातें उनको बताई। भगवान मिट्टी पाकर बहुत खुश हुए। भगवान ब्रह्मा ने मानव का जीवन बनाना शुरु किया।
एक नर्तकी राजा के दरबार में नाचने जाती थी चाँदगढ़ का राजा उस नर्तकी से प्रेम करने लगा। उनका एक लड़का हुआ उस लड़के का नाम कोरकू था। इसी लड़के की संतान बाद में बीजागढ़, फतेहगढ़, चौरागढ़, जोगागढ़, वाशीगढ़, भंवरगढ़ और सावलीगढ़ में बस गई। यही कोरकू बाद में चाँदगढ़ देव के नाम से विख्यात हुआ। और इसने ग्राम रत्नापुर के पास ताप्ती नदी के भीतर पानी में अपना स्थान बनाया इस देव में इतनी शक्ति का विश्वास किया जाता है कि पड़िहार अगर आरती में दीपक लेकर पानी के भीतर जाता है तो भी आरती बुझती नहीं । इस विश्वास के मुताबिक कोरकू जाति कौरव और पांडवों की रिश्तेदार है इसी विश्वास में यह भी बताया गया कि इसी कोरकू लड़के के बाद वाली पीढ़ी में आल्हा और उदल का जन्म हुआ । इनकी राखी और भुजरिया पर बड़ी लड़ाई होती थी । इस कारण आज भी कोरकू जाति में राखी और भुजरिया नहीं मनाई जाती ।
कुछ अन्य विश्वास
कहीं-कहीं कोरकू अपने को पांडवों से संबंधित भी मानते हैं। उनकी यह भी मान्यता है कि वे भीम के पुत्र मुठवा देव की संतानें हैं। इसी कारण वे मुठवा देव को अपना सबसे आराध्य देव मानते हैं।
एक चर्चित भुमका से यह पूछने पर की कोरकू जनजाति कहाँ से उत्पन्न हुई तो उसने अपने शरीर में धारण देव के माध्यम से बताया कि उसके पूर्वज पहले आसाम देश के प्रतापगढ़ नाम की जगह पर रहते थे। वहाँ पर उनकी खेती बाड़ी सब कुछ थी। किन्तु एक दिन उन्होंने अपने घर पर अनाज से भरी कोठियों पर दीपक जलाये और वहाँ से चल दिए। पहले इलाहाबाद आये।
फिर वहाँ से नाव से पार उतरे। इसके बाद हरदा आये फिर सुखरास गये, फिर सावलीगढ़ गये, फिर जंगल-जंगल भटकते हुए सेमल्या आये। यह बात बहुत अटपटी प्रतीत होती है किन्तु यह भी कम आश्चर्य जनक नहीं है कि कोरकू जिस मुंडा प्रजाति के माने जाते हैं उसके विषय में भी यह स्वीकार किया जाता है कि यह जाति पूर्व से आई है।