ज्योतिष और आयुर्वेद का है गहरा नाता ... औषधि से भी ठीक हो जाते हैं गृह नक्षत्र


स्टोरी हाइलाइट्स

ज्योतिष और आयुर्वेद आयुर्वेद अत्यन्त प्राचीन शास्त्र है। भारतीय संस्कृति के आधार स्तम्भ वेदों में ऋग्वेद सर्वप्रथम परिगणित है। इसके अन्तर्गत ज्योतिष एवं चिकित्सा-विज्ञान का भी सांगोपांग वर्णन किया गया है। दोनों एक-दूसरे के पूरक एवं एक-दूसरे पर निर्भर हैं। जन्म लग्न के द्वारा यह ज्ञात हो सकता है कि व्यक्तिमें किन आधारभूत तत्वों की कमी रह गयी, इसी ज्ञानके बल पर ज्योतिष पहले ही भविष्यवाणी कर देता है कि इस व्यक्ति को अमुक अवस्थामें अमुक रोग होगा। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार विभिन्न ग्रह निम्न शरीर रचनाओंको नियन्त्रित करते हैं १-सूर्य-अस्थि, जैव-विद्युत्, श्वसन तंत्र, नेत्र। २-चन्द्रमा-रक्त, जल, अन्तःस्रावी ग्रन्थियाँ (हार्मोन्स), मन। ३-मंगल-यकृत्, रक्त कणिकाएं, पाचन तंत्र। ४-बुध-अंग-प्रत्यंग-स्थित तंत्रिका तंत्र, त्वचा। ५-बृहस्पति-नाडीतन्त्र, स्मृति, बुद्धि। ६-शुक्र-वीर्य, रज, कफ, गुप्तांग। ७-शनि-केन्द्रीय नाडी तन्त्र। ८-अपानवायु। ९-राहु-केतु-शरीर अन्दर आकाश एवं | ग्रह दोष के अनुसार ही विभिन्न वनौषधियाँ ग्रह बाधा का निवारण करती हैं तथा औषधि मिश्रित जल से स्नान करनेसे भी ग्रह दोष दूर होते हैं। विभिन्न रत्नों को धारण करने से भी ग्रह बाधाएं नष्ट होती हैं। शरीर में वात-पित्त एवं कफ की मात्रक समन्वय रहने पर शरीर साधारण तया स्वस्थ बना रहता है। इनकी न्यूनाधिक मात्रा शरीर में रोग उत्पन्न करती है। सूर्य पित्तदोष, चन्द्रमा कफ व वात दोष, मंगल-पित्त दोष, बुध त्रिदोष, बृहस्पति कफ दोष एवं शनि वात दोष उत्पन्न करता है। मानव जीवन की अपनी विशेषता है। इसके आधारभूत धर्म, अर्थ, काम एवं मोक्ष-इन चार पुरुषार्थों की प्राप्ति का मुख्य साधन मनुष्य का शरीर है। इसे निरामय एवं कार्यक्षम रखना व्यक्ति का प्रथम कर्तव्य है। जन्मपत्री पूर्वार्जित कर्म को जानने की कुंजी है। पूर्वकृत किस कर्मविपाक से मनुष्य को कौन-सी व्याधि होती, इसका ज्ञान मनुष्य को ज्योतिष विद्या से ही प्राप्त होता है। ज्योतिष में रोगों की जानकारी प्रायः जातक की जन्मकुंडली से होती है। इसके अतिरिक्त हाथ की रेखाएं हाथ के पर्वत एवं नाखूनों के अध्ययन से भी रोग-ज्ञान हो जाता है। अनेक शताब्दियों से ज्योतिष विद्या औषधियों के साथ सम्बन्ध माना गया है। पूर्वकाल में किसी भी वैद्यके लिये यह आवश्यक था कि वह ज्योतिषी भी हो। सम्प्रति यह प्रसन्नता का विषय है कि विकसित देश भी ज्योतिष विद्या का उपयोग चिकित्सा में करने लगे हैं।