Bhopal Gas tragedy: काली रात क्या होती है, यह भोपाल के उन लोगों से पूछो जिन्होंने अपनों को खोया है। सपनों को टूटते देखा। जिसका उजला जीवन हमेशा के लिए अंधकारमय हो गया। उस रात मौत कहर बरपा रही थी। वहां चीख-पुकार मच गई। उस रात भोपाल में इंसान ही नहीं इंसानियत और प्यार भी मर गया। माताएं अपने बच्चों को छोड़ रही थीं और बच्चे अपने बुजुर्ग माता-पिता को छोड़कर भाग रहे थे।
1984 में भोपाल के लोगों के लिए 2 और 3 दिसंबर की आधी रात दुनिया की सबसे अंधेरी रात थी। 40 साल बीत गए, लेकिन भोपाल गैस त्रासदी की उस रात को याद कर लोग आज भी सिहर उठते हैं। वह बात करते-करते ही रोने लगते हैं।
वर्ष 1984 देश के लिए बहुत दुर्भाग्यपूर्ण था। इसी साल अक्टूबर के आखिरी दिन तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या कर दी गई थी। इसके अगले दिन यानी नवंबर के पहले हफ्ते में हजारों सिखों को जिंदा जला दिया गया।
2 दिसंबर की रात भोपाल में जहरीली गैस लीक हो गई, जिससे हजारों लोगों की मौत हो गई। घटना से ढाई साल पहले दी गई थी चेतावनी, दरअसल, पत्रकार राजकुमार केसवानी ने घटना से करीब ढाई साल पहले ही सरकार, प्रशासन और कंपनी को आगाह कर दिया था कि भोपाल में गैस हादसा हो सकता है। केसवानी ने 26 सितंबर 1982 को 'शहर बचाओ, इस शहर को बचाओ' शीर्षक से एक समाचार लिखा था, जिसमें चेतावनी दी गई थी कि रखरखाव और सुरक्षा मानकों की उपेक्षा के कारण यूनियन कार्बाइड संयंत्र में एमआईसी लीक होने की संभावना है।
जब किसी ने इस रिपोर्ट पर ध्यान नहीं दिया, तो केसवानी ने दो अनुवर्ती लेख भी लिखे, जिनका शीर्षक था 'भोपाल ज्वालामुखी के मुहाने पर बैठा है' और 'यदि आप नहीं समझेंगे, तो आप अंततः गायब हो जाएंगे'।
इतना ही नहीं, उन्होंने मध्य प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह को पत्र लिखकर यूनियन कार्बाइड संयंत्र से होने वाली तबाही के बारे में आगाह भी किया था। यूनियन कार्बाइड संयंत्र के खतरों पर केसवानी का आखिरी लेख 'भोपाल आपदा के कगार पर' शीर्षक से जहरीली गैस रिसाव से चार महीने पहले प्रकाशित हुआ था।
एमआईसी गैस के संबंध में बार-बार दी गई चेतावनियों को मध्य प्रदेश सरकार और यूनियन कार्बाइड प्रबंधन दोनों ने नजरअंदाज कर दिया और उन पर ध्यान नहीं दिया। केसवानी की चेतावनी सच साबित हुई।
2 दिसंबर 1984 की रात को भोपाल में यूनियन कार्बाइड कीटाणुनाशक संयंत्र से जहरीली गैस मिथाइल आइसोसाइनाइट (एमआईसी) का रिसाव हुआ। कुल मिलाकर 5 लाख से अधिक लोग एमआईसी के संपर्क में आए।
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, भोपाल गैस त्रासदी में मरने वालों की संख्या 3,787 थी, जबकि सुप्रीम कोर्ट को सौंपी गई एक रिपोर्ट में यह संख्या 15,724 से अधिक बताई गई है। जबकि सामाजिक कार्यकर्ताओं का मानना है कि मरने वालों की संख्या 33 हजार से ज्यादा थी। ये दुनिया की सबसे बड़ी त्रासदी थी।
तब राज्य में कांग्रेस की सरकार थी। 3 दिसंबर की सुबह जब राज्य में जहरीली गैस रिसाव से हजारों लोगों की मौत की खबर सामेन आई। अर्जुन सिंह मुख्यमंत्री थे, जब अर्जुन सिंह को जहरीली गैस के रिसाव और लोगों की मौत की सूचना मिली तो वे तुरंत अपने परिवार को सरकारी विमान से इलाहाबाद (वर्तमान प्रयागराज) ले गये।
इसके लिए अर्जुन सिंह की बहुत आलोचना की गई क्योंकि वह लोगों को मरा हुआ छोड़कर अपनी और अपने परिवार की जान बचाकर भाग गए थे। बाद में अर्जुन सिंह ने अपनी आत्मकथा 'द ग्रेन ऑफ सैंड इन द ऑवरग्लास ऑफ टाइम' में इसका जिक्र किया और लिखा कि वह इलाहाबाद के एक चर्च में प्रार्थना करने गए और उसी शाम भोपाल लौट आए। तब उनकी मौजूदगी में 'ऑपरेशन फेथ' चलाया गया।
जहरीली गैस के रिसाव से हजारों लोगों की मौत हो गई और लाखों लोग अपंग हो गए। कानूनी कार्रवाई के नाम पर सिर्फ दिखावा हुआ। इस घटना के बाद यूनियन कार्बाइड के सीईओ वॉरेन एंडरसन 7 दिसंबर 1984 को भोपाल पहुंचे, जहां उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। गिरफ्तारी ऐसी थी कि आरोपी की भरपूर आवभगत की गई।
तत्कालीन एसपी स्वराज पुरी और डीएम मोती सिंह मुख्य आरोपी एंडरसन को लेने गये थे। फिर उसे सफेद एंबेसेडर में यूनियन कार्बाइड के गेस्ट हाउस में ले गए। यहां उनके रहने की व्यवस्था की गई।
यूनियन कार्बाइड का गेस्ट हाउस सीएम हाउस के बिल्कुल करीब था। वह आलीशान गेस्ट हाउस आज भी श्यामला हिल्स के एक छोर पर खंडहर रूप में देखा जा सकता है।
गिरफ्तारी के अगले दिन, तत्कालीन कलेक्टर मोती सिंह और पुलिस अधीक्षक (एसपी) स्वराज पुरी एंडरसन को सरकारी कार में हवाई अड्डे ले जाया गया। वहां राज्य सरकार का एक विमान तैयार था, जिसमें एंडरसन को दिल्ली भेजा गया।
वह उसी शाम दिल्ली से अमेरिका के लिए रवाना हो गये। भोपाल से निकलते वक्त एंडरसन ने 25,000 रुपये का बांड दिया और सुनवाई के दौरान कोर्ट में मौजूद रहने का वादा भी किया, लेकिन एंडरसन वहां से निकलने के बाद कभी भारत नहीं आए।
भोपाल गैस त्रासदी के दौरान मुख्य आरोपी एंडरसन को भोपाल से दिल्ली तक छुड़ाने वाले तत्कालीन कलेक्टर मोती सिंह ने 2008 में 'अनफोल्डिंग द बिट्रेयल ऑफ भोपाल गैस ट्रेजडी' किताब लिखी थी।
मोती सिंह ने अपने ऊपर लगे आरोपों का जिक्र करते हुए किताब में लिखा- वॉरेन एंडरसन को तत्कालीन सीएम अर्जुन सिंह के आदेश पर रिहा किया गया था। वहां न तो कोई पायलट गाड़ी थी और न ही कोई सुरक्षा गार्ड ताकि किसी को भनक न लग सके।
मोती सिंह ने अपनी गलती मानते हुए लिखा- ''जिस कमरे में एंडरसन को रखा गया था, वहां फोन चालू रखना बहुत बड़ी गलती थी।'' समय की कमी के कारण पुलिस कमरे की ठीक से जांच नहीं कर पाई और टेलीफोन चालू था। डिस्कनेक्ट नहीं किया गया था। एंडरसन ने टेलीफोन का इस्तेमाल कर पूरी बात पलट दी।
अर्जुन सिंह अपनी आत्मकथा 'ए ग्रेन ऑफ सैंड इन द ऑवरग्लास ऑफ टाइम' में एंडरसन पर लगे आरोपों का बचाव करते हुए लिखते हैं- ''4 दिसंबर को उन्हें सूचना मिली कि एंडरसन भोपाल आ रहे हैं, इसलिए उन्होंने उन्हें गिरफ्तार करने का फैसला किया.'' सिंह और स्वराज पुरी को अपने घर बुलाया.
अर्जुन सिंह ने लिखा, “पुरी को एंडरसन को गिरफ्तार करने का लिखित आदेश दिया गया था। आम तौर पर मुख्यमंत्री लिखित निर्देश नहीं देते हैं, लेकिन मामले की गंभीरता को देखते हुए मैंने लिखित आदेश देना उचित समझा, क्योंकि मुझे पता था कि एसपी और कलेक्टर अपने कर्तव्यों का पालन करते समय बहुत दबाव में होंगे।
भोपाल गैस कांड की जांच तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने सीबीआई से कराई। CBI ने घटना की तीन साल तक जांच करने के बाद एंडरसन समेत यूनियन कार्बाइड के 11 अधिकारियों के खिलाफ कोर्ट में चार्जशीट दायर की थी। हालांकि, एंडरसन को कभी भी भारत नहीं लाया जा सका। उसकी अनुपस्थिति में ही सुनवाई हुई।
अदालत ने जून, 2010 में फैसला सुनाया। इसमें यूनियन कार्बाइड की भारतीय सहायक कंपनी और उसके जिम्मेदार अधिकारियों को दोषी ठहराया। यूनियन कार्बाइड के सात अधिकारियों को दो साल जेल की सजा सुनाई और जुर्माना लगाया। दोषी जुर्माना भरकर 14 दिन बाद ही जमानत पर रिहा हो गए। यानी भोपाल के दोषियों ने ज्यादा से ज्यादा 14 दिन ही जेल में काटे। जबकि हजारों पीड़ित आज तक तिल तिल मर रहे हैं। पीड़ितों की कानूनी लड़ाई आज भी जारी है।