छब्बीस साल से भोपाल का मास्टर प्लान रुकना क्या षड्यंत्र है: सरयूसूत मिश्र


स्टोरी हाइलाइट्स

भोपाल का मास्टर प्लान 26 सालों से नहीं बना है. यह कितनी अजीब बात है कि जिस शहर को स्मार्ट बनाने के लिए करोड़ों रुपए खर्च किए जा रहे हैं.....

छब्बीस साल से भोपाल का मास्टर प्लान रुकना क्या षड्यंत्र है सरयूसूत मिश्र भोपाल का मास्टर प्लान 26 सालों से नहीं बना है. यह कितनी अजीब बात है कि जिस शहर को स्मार्ट बनाने के लिए करोड़ों रुपए खर्च किए जा रहे हैं, उस शहर में बिना मास्टर प्लान के बेतरतीब विकास होता जा रहा है. शासन-प्रशासन पहले अनियमित गतिविधियों पर आंख मूंदे रहते हैं और बाद में कार्यवाही करते हैं. कालोनियों को अवैध घोषित करते हैं, फिर सरकार वोट की राजनीति में उन्हें नियमित करने की घोषणा करती है . वर्षों तक घोषणा पर वोट की फसल काटी जाती है और फिर स्थिति जहां की तहां बनी रहती है. मास्टर प्लान किसी भी शहर की जान होती है. शहरी विकास बहुत तेजी से हो रहा है. शहरों पर जनसंख्या का दबाव बढ़ रहा है. हर दिन नए लोग शहर में आते हैं. उन्हें अपने रहने का ठिकाना तलाशना होता है, क्योंकि कोई विकास की योजना नहीं है. इसलिए जहां भी खाली जमीन दिखती है वेअपना घरौंदा बनाकर रहने लगते हैं. धीरे-धीरे बस्तियों का जाल बन जाता है. जब एक बड़ी समस्या खड़ी हो जाती है तब सरकार समाधान की बात शुरू करटी है.   जब कोई प्लानिंग ही नहीं है, मास्टर प्लान ही नहीं है कि कहां किस तरह का विकास होना है,कहां रहवासी इलाके होंगे, कहां सार्वजनिक क्षेत्र होगा और कहां जन जीवन की सुरक्षा की दृष्टि से निर्माण या विकास प्रतिबंधित होंगे. इसका कोई प्लान ही नहीं है. तो तदर्थ ढंग से सब चीजें चल रही हैं. ऐसे तदर्थ विकास में शहर उसी तरह का होगा जो भी तकलीफ होंगी वे बढ़ती ही जाएँगी और बढती जा रही हैं. इसी कारण  कई शहर मौत के मुहाने पर खड़े हुए हैं. राजधानी भोपाल का मास्टर 26 साल पहले  बना था. इस दौरान कितनी जनसंख्या बढ़ गई, कितनी झुग्गी बस्तियां बस गईं. बड़े तालाब और  छोटे तालाब के आसपास कितने नए काम हो गए जो तालाब के जीवन को नुकसान पहुंचा रहे हैं. सवाल यह है कि  नियमित अंतराल के बाद मास्टर प्लान क्यों नहीं बनता. ऐसा लगता है यह सुनियोजित प्लान होता है कि मास्टर प्लान नहीं बने. सहर के बिल्डर माफिया हों, है शहर के धन्ना सेठ हों, ब्यूरोक्रेट हों या राजनेता. उनका एक समूह शहर में विकास गतिविधियों और जमीनों से मालामाल होने की तरकीब में लगा रहता है. सरकार के पास पूरी मास्टर प्लान नहीं होता तो अपने प्रभाव से कालोनियों के विकास की अनुमतियां प्राप्त कर ली जातीहैं. शहर के कुछ क्षेत्रों में पंचायतों के नाम पर अनुमति ली ले ली जाती है और फिर बड़ा निवेश करके ओने पौने में खरीदी गई जमीनों को करोड़ों में बेचा जाता है. ऐसे समूह का जब काम हो जाता है, तब वह नए इलाके की तरफ कूच कर जाता है. फिर ऐसा माहौल बनाया जाता है कि वास्तव में जो निर्माण हो चुके हैं उनके हिसाब से अब मास्टर प्लान बनाया जाए. छब्बीस साल बाद जो मास्टर प्लान का प्रारूप  बनाया गया और  जिस पर दावे और आपत्तियां ली गयीं वह कमलनाथ सरकार के समय हुआ था. उनकी सरकार जाने के बाद जब नई सरकार सत्ता में आई तो उसने मास्टर प्लान और फिर से दावे आपत्तियां बुलाने का तय किया. इस बीच में कई ऐसे गंभीर प्रकरण प्रकाश में आए जिनमें सीनियर नौकरशाहों ने  नियमों के विरुद्ध बनाए गए अपने आरामगाहों को वैधानिक करने के लिए मास्टर प्लान में ऐसे प्रावधान किए, जो शहरी विकास के नियमों के विरुद्ध थे.  लो डेंसिटी एरिया में जहां कुल जमीन पर केवल 10% ही निर्माण हो सकता है वहां 70- 80% निर्माण कर लिया गया है और प्रस्तावित मास्टर प्लान में उस इलाके को लो डेंसिटी से हटाने का प्रस्ताव किया गया है. यह तो एक मामला है. ऐसे अनेक मामले प्रस्तावित मास्टर प्लान में देखने को मिल रहे हैं, जहां ऐसे लोगों को संरक्षण देने के लिए मास्टर प्लान में प्रस्ताव किए गए हैं. नवंबर 1956 में मध्य प्रदेश के गठन के साथ भोपाल राजधानी बनी थी. भोपाल शहर का विकास उस समय बहुत सुंदर और सुनियोजित ढंग से किया गया था. अब भोपाल का विकास सुनियोजित नहीं, स्वार्थ नियोजित ढंग से किया जा किया जा रहा है. भोपाल का तालाब भोपाल की जान है. भोपाल की खूबसूरती पूरे देश में एक मिसाल है. अगर भोपाल के तालाब की जिंदगी में कभी ऐसा वक्त आता है कि वह अपना अस्तित्व खो दे, तो भोपाल भी अपना अस्तित्व खो देगा. चाहे होशंगाबाद रोड देखें, चाहे कोलार रोड, चाहे इंदौर रोड, चाहे भदभदा से सीहोर रोड, चाहे विदिशा-रायसेन की रोड देखें, हर तरफ विकास तो तेज गति से हो रहा है ,लेकिन प्लानिंग के साथ नहीं हो रहा है. भोपाल की खूबसूरती मन मोह लेती है, लेकिन ऐसी खूबसूरती इस शहर में आगे भी बनी रहेगी इसमें संदेह है. भोपाल देश में एक ऐसी राजधानी है, जिसमें कोई भी व्यक्ति 10 से 15 किलोमीटर किसी भी रोड पर शहर से बाहर चला जाए और जंगल के बीच पहुंच जाएगा. ऐसा देश में कोई शहर नहीं है. मध्यप्रदेश के लिए, खासकर की राजधानी के लिए यह  गौरव की बात है. लेकिन डर लगता है कि यह गौरव कब खो जाएगा. जंगलों के भीतर राजस्व भूमि के नाम पर कब्जे हो रहे हैं. कब्जे करने वालों की यह मजबूरी है कि उन्हें अपना जीवन चलाना है, लेकिन जंगल अगर नहीं बचे तो किसी का भी जीवन नहीं चल पाएगा. सारा जीवन संकट में फंस जाएगा. जंगलों में वन्य प्राणियों के रहवासों पर इंसानों के दखल से से वन्य प्राणी अक्सर शहर में आ जाते हैं. मैरिज गार्डन और  फार्म हाउसेस बेतरतीब ढंग से ऐसे बन रहे हैं, जो भोपाल ताल को समाप्त करने का कारण बन रहे हैं. जरा सोचिए, कोई शहर, वह भी राजधानी 26 सालों से बिना मास्टर प्लान के है और उसे स्मार्ट बनाने के लिए करोड़ों रुपए खर्च हो रहे हैं. थोड़ा बहुत भोपाल स्मार्ट बन रहा है, लेकिन यह सब केवल दिखावे जैसा है. सुनियोजित विकास का सबसे पहला आधार मास्टर  प्लान जिस शहर में नहीं है, वह किस तरह से स्मार्ट बन सकता है? कई बार ऐसा लगता है कि इसमें चाहे बिल्डर माफिया हो, प्रशासन का माफिया हो, राजनेताओं का माफिया हो, सब मिले हुए हैं और जानबूझकर एक सुनियोजित योजना के तहत मास्टर प्लान को रोका जाता है. अभी-अभी सरकार ने ऐसा कहा है कि मास्टर प्लान पर पुन: दावे और आपत्तियां बुलाई जाएंगी और उसके बाद इसे बहुत जल्दी  लागू किया जाएगा. ऐसा लगता है कि यह प्रतिबद्धता एक बार फिर इसलिए बताई जा रही है कि नगरीय निकाय चुनाव आने वाले हैं. जनता मास्टर प्लान की अनदेखी के विरोध में ना हो जाए, इसलिए यह बात कह कर जनता को संतुष्ट करने का प्रयास किया जा रहा है. फिर भी जनता के सामने केवल सरकार की बात मानने के अलावा कोई रास्ता नहीं है. इसलिए उम्मीद करते हैं कि सरकार इस बार वास्तव में मास्टर प्लान लाएगी और शहर के विकास को सुनियोजित  ढंग से नई ऊंचाइयों पर पहुंचाएगी.