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“पत्थर” शराब दुकान पर या अकल पर ? कांग्रेस को उखाड़ने वाली उमा शराब दुकान उखाड़ने पहुंच गई - सरयूसुत मिश्रा 

सार

मध्यप्रदेश में कांग्रेस को उखाड़ कर भाजपा को सत्ता में लाने वाली उमा भारती पत्थर क्यों मारने लगी? हाथ में उठा पत्थर क्या अकल पर पड़ गया है ? शराबबंदी का अभियान जन आंदोलन से सफल होगा या पत्थरबाजी से ? राजनीति में भगवाधारी सफलता का पहला परचम उमा भारती ने मध्यप्रदेश में फहराया था, जो भाजपा का आज ब्रांड बन गया है, लेकिन उमा भारती राजनीतिक वनवास भोग रही हैं|

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विस्तार

ओबीसी पॉलिटिक्स आज देश की मुख्यधारा बन गई है| लेकिन उमा भारती पत्थरबाजी की धारा तक पहुंच गई है| उमा भारती जनता की नेता हैं लेकिन राजनीति के दांव पेंच में वह हमेशा हारती रही हैं| उमा केवल अपनी पार्टी की ही नहीं, बल्कि पार्टी के ऊपर राजनीति में व्याप्त राजनीतिक सामंतवाद का शिकार होती रही हैं| तुनक मिजाजी ही उनकी सबसे बड़ी राजनीतिक दुश्मन बन जाती है| जहां तक शराबबंदी अभियान का सवाल है उमा भारती शायद इसके बहाने सियासत में अपने वजूद को फिर से कायम करने का प्रयास कर रही हैं|

दो-तीन महीने पहले उमा भारती ने मध्यप्रदेश में शराबबंदी के लिए राजनीतिक अभियान शुरू करने की घोषणा की थी| इस बारे में उनकी मुख्यमंत्री शिवराज सिंह से भी चर्चा हुई है| मुख्यमंत्री ने भी ऐलान किया है कि नशाबंदी के लिए सरकार के माध्यम से  जन जागरूकता बढ़ाने का काम करेंगे| फिर उमा भारती इतनी ज्यादा विचलित और आक्रामक क्यों हो गई कि शराब की दुकान पर पहुंचकर पत्थर उठाकर मारने लगीं ? दरअसल शराबबंदी के खिलाफ उनके जन आंदोलन की घोषणा के बाद सरकार ने नए वित्तीय वर्ष के लिए शराब नीति लागू की..! इस नीति से प्रदेश में शराब की दुकानों की संख्या कम होने की बजाय बढ़ गई|

वैसे तो सरकार का दावा है कि प्रदेश में नई शराब की दुकान नहीं खोली जाएगी, लेकिन कम्पोजिट शराब दुकानों के नाम पर ऐसी अवधारणा नई नीति में लागू की गई है| जिससे शराब की उपलब्धता स्थलों की संख्या बढ़ जाएगी| अब इसे नई दुकान माना जाए कि नहीं यह तो सरकार ही बताएगी, लेकिन जनता को तो अभी तक जहां देशी या विदेशी शराब नहीं मिल रही थी, उन नए स्थानों पर भी मिलने लगेगी| इसलिए जनता की दृष्टि से तो शराब की नई दुकानें ही मानी जाएंगी|

वाणिज्यिक कर विभाग के प्रशासनिक प्रतिवेदन के अनुसार 2020-21 में फुटकर विक्रेताओं की देशी मदिरा की दुकानें 2541 हैं, और विदेशी शराब की दुकानें 1070 बताई गई है| नई नीति के निर्णय से देशी और विदेशी दोनों दुकानों पर दोनों तरह की शराब उपभोक्ताओं को मिल सकेगी| इसका मतलब है कि जिन 2541 स्थानों पर पहले विदेशी शराब नहीं मिलती थी वहां भी अब विदेशी शराब मिलने लगेगी| स्पष्ट है कि नई नीति लागू होने के बाद अब प्रदेश में विदेशी शराब 3671 स्थानों पर मिलने लगेगी| मतलब विदेशी शराब की उपलब्धता 1070 स्थानों से बढ़कर अब 3671 हो जाएगी| इसी तरह देशी शराब की उपलब्धता की दुकानें भी बढ़ जाएँगी| नई नीति में तो सरकार ने शराब का होम लाइसेंस देने का भी प्रावधान किया है| ऐसे ही कई प्रावधान नई नीति में किए गए हैं जो निश्चित ही प्रदेश में शराब बंदी को नहीं बल्कि शराबखोरी को बढ़ावा देंगे|

महात्मा गांधी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के गृह राज्य गुजरात में शराबबंदी बहुत पहले से लागू है| अभी कुछ साल पहले बिहार में भी शराबबंदी लागू की गई है| मध्यप्रदेश में शराबबंदी की बात काफी लंबे समय से राजनीतिक दलों द्वारा की जाती रही है| लेकिन शराब व्यवसाय से होने वाली वित्तीय आय किसी भी सरकार के लिए वर्तमान परिस्थितियों में बहुत महत्वपूर्ण है|  आज मध्य प्रदेश को आबकारी से हजारों करोड़ रुपए की आय होती है, जो विकास एवं निर्माण के लिए उपयोग में आती है| शराब, कोई भी खाद्य या पेय पदार्थ, किसी भी व्यक्ति का निजी मामला है| लेकिन भारतीय समाज में अभी भी शराबखोरी को बुरी दृष्टि से देखा जाता है|

नशाखोरी के खिलाफ जन जागरूकता वैसे तो सरकार हमेशा चलाती रहती है, हर साल नशाबंदी दिवस आता है, जिसमें अखबारों में और चैनलों पर विज्ञापन प्रसारित किए जाते हैं| नशाबंदी की जागरूकता के प्रयासों के बावजूद शराब का व्यवसाय और शराब से सरकार की आय लगातार बढ़ती जा रही है| शराब से सरकार के खजाने के अलावा, कुछ और खजाने भरते हैं| इसके बारे में कोई अधिकृत आंकड़े तो नहीं दिये जा सकते, लेकिन जनमानस में अवधारणा को माना जाए तो प्रदेश में शराब व्यवसाय का एक अवैधानिक नेटवर्क भी काम करता है| जहरीली शराब से मौतें ऐसे ही नेटवर्क के कारण होती हैं|

यह बहस का विषय हो सकता है कि प्रदेश में शराबबंदी होना चाहिए या नहीं? कोई व्यक्ति शराबबंदी के समर्थन में हो सकता है तो कोई उसके विरोध में| जनतंत्र में बहुमत के आधार पर ही निर्णय लिए जाते हैं| अगर स्थानीय लोग शराब दुकानों का विरोध करेंगे तो निश्चित ही सरकार उन्हें बंद करने के लिए मजबूर होगी| शराब नीति में भी ऐसा प्रावधान है कि मंदिर, स्कूल आदि के आसपास शराब दुकान नहीं होंगी, और जहां शराब दुकानों का स्थानीय लोग विरोध करेंगे वहां भी ये दुकानें बंद कर दी जाएंगी|

जनतंत्र के तरीके से शराबबंदी लागू करने का प्रावधान मौजूद है तो फिर डेमोक्रेसी की हिमायती उमा भारती पत्थरबाजी पर क्यों उतर गई ? जम्मू कश्मीर में पत्थरबाजी को एक बड़ी त्रासदी के रूप में देश ने भोगा है| मध्य प्रदेश जैसा शांतिप्रिय प्रदेश पत्थरबाजी की राजनीति बर्दाश्त नहीं कर पाएगा| उमा भारती पूर्व मुख्यमंत्री हैं, वे नियमानुसार आज भी शासन की साधन सुविधाएं हासिल कर रही हैं| उमा भारती का राजनीतिक उभार और पतन एक केस स्टडी है| उनकी राजनीतिक जिजीविषा अद्वितीय है|

संघर्ष और टकराहट से वह नहीं घबराती| जब वह मुख्यमंत्री थी तब उनके परिवारजनों ने ही उनके लिए संकट खड़ा किया और वह राजनीति के बियाबान जंगल में पहुंच गई| उसके बाद भी उन्हें संगठन ने मौके दिए यहां तक कि उन्हें केंद्रीय मंत्री भी बनाया गया| उसके बाद भी उन्हें राजनीतिक स्थिरता नहीं मिल सकी| इस सब के पीछे कहीं उनके सोच, विचार और काम में अस्थिरता तो बड़ा कारण नहीं है ? उमा भारती गरीबों का आइकॉन हो सकती हैं| राजनीति के हिमालय पर चढ़ाई पत्थर से नहीं, बल्कि जनसमर्थन से ही संभव है| उमा भारती के भाजपा के शीर्ष नेतृत्व से रिश्तों को लेकर सवाल उठते रहे हैं, सियासत में फिरसे अपने पाँव जमाने के लिए उमा का शराबबंदी आन्दोलन राजनीती की मुख्यधारा में लौटने की कोशिश माना जा रहा है| उमा की नजर और नजरिया मेल नहीं खा रहे हैं| सफलता को असफलता में बदलने के एक उदाहरण के रूप में उमा भारती के राजनीतिक जीवन को देखा जा सकता है|