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किसान कानून के बाद CAA एनआरसी वापस लेने की मांग, क्या यहीं पर था मोदी शाह का निशाना।

अतुल विनोद अतुल विनोद
Updated Mon , 31 Oct

सार

क्या मोदी शाह की टीम को इस बात का अंदाजा नहीं होगा कि कृषि कानून वापस लेने के बाद CAA-एनआरसी वापस लेने की मांग भी उठेगी?  जैंसा बीजेपी चाहती होगी शायद तीर निशाने पर लग गया है? कृषि कानून वापस लेने के ऐलान के बाद ओवैसी ने ऐलान कर दिया, CAA-एनआरसी वापस नहीं लिए गए तो उत्तर प्रदेश की सड़कों को “शाहीन बाग” बना देंगे।

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विस्तार

देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जब कृषि कानून वापस लेने की घोषणा की तो राजनीतिक विश्लेषक हैरत में पड़ गए। दरअसल प्रधानमंत्री का यह ऐलान उनके व्यक्तित्व से मेल नहीं खाता। लेकिन जो दिखता है वह होता नहीं। कृषि कानून वापस लेने के पीछे क्या कोई और एजेंडा है? नरेंद्र मोदी के इस ऐलान के बाद यह सवाल उठने लगा है कि किसान कानून वापस लेने के बाद एनआरसी वापस लेने की मांग भी उठेगी, यानी नरेंद्र मोदी के सामने एक नई मुसीबत आने जा रही है। 

लेकिन शायद यह मुसीबत जानबूझकर मोल ली गई है। इससे यूपी सहित अन्य राज्यों में होने वाले चुनाव में बीजेपी को खासा फायदा मिल सकता है।

चुनाव से ठीक पहले तीन कृषि कानूनों को वापस लेना जितना जरूरी बताया जा रहा है उतना जरूरी था “नहीं”। क्योंकि इन कानूनों का विरोध हरियाणा और पंजाब में सबसे ज्यादा हो रहा था और कानून का विरोध धीरे-धीरे ठंडा भी पढ़ता जा रहा था।

लेकिन अचानक ऐसा क्या हुआ कि नरेंद्र मोदी ने कानून वापस लेने का ऐलान कर दिया।

इस निर्णय के पीछे क्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के निशाने दो थे तीर एक था| कहा यह जा रहा है कि कृषि कानून लागू करते समय भी मोदी सरकार ने मंथन नहीं किया और लेते वक्त भी जल्दबाजी कर दी।

लेकिन यह जल्दबाजी में लिया गया फैसला नहीं लगता, चुनाव लड़ने की अपनी एक नीति होती है, इसमें साम,दाम,दंड,भेद सब चलता है। इसमें सत्ता पर काबिज होना सबसे महत्वपूर्ण बन जाता है।

टाइमिंग का खेल है, किसान आन्दोलन पर पानी फिर गया यदि इसकी आड़ में CAA-NRC वापास लेने की मांग उठती है तो फायेदा बीजेपी को ही होगा|  

हुआ भी यही फिर से CAA-NRC को भी वापास लेने की मांग उठने लगी! क्या बीजेपी यही चाहती थी? 

चुनाव में जीत वोटर्स के उन्माद, चुनावी लहर और मुद्दों पर सवार होकर तय होती है। इसके लिए वोटर्स का एकतरफा समर्थन जरूरी होता है।

उत्तर प्रदेश में सत्ता पर काबिज होने के लिए भारतीय जनता पार्टी को एकतरफा हिंदू वोटों की “सख्त” जरूरत थी। मुस्लिम वोट शायद ही उसकी सत्ता की राह आसान करते। 

इसलिए कृषि कानून वापस लेने से यदि एनआरसी की आग भड़कती है तो उसे क्या ऐतराज़ होगा? क्या मोदी शाह की टीम को इस बात का अंदाजा नहीं होगा कि कृषि कानून वापस लेने के बाद CAA-एनआरसी वापस लेने की मांग भी उठेगी? 

जैंसा बीजेपी चाहती होगी शायद तीर निशाने पर लग गया है? 

कृषि कानून वापास लेने के ऐलान के बाद ओवैसी ने ऐलान कर दिया, CAA-एनआरसी वापस नहीं लिए गए तो उत्तर प्रदेश की सड़कों को “शाहीन बाग” बना देंगे।

 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा तीन किसान कानूनों को निरस्त करने के तीन दिन बाद, ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने डिमांड की कि नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) और नागरिकों के राष्ट्रीय रजिस्टर (NRC-NPR) के फैसले को भी वापस लिया जाना चाहिए. असदुद्दीन ओवैसी (Asaduddin Owaisi) ने वार्निंग दी कि अगर सीएए और एनआरसी को वापस नहीं किया गया तो प्रदर्शनकारी “सड़कों पर उतरेंगे और इसे शाहीन बाग में बदल देंगे”.

 

कुछ मुस्लिम संगठनों ने बैठक कर CAA-एनआरसी को वापस लेने की मांग उठाई है।

जाहिर है आने वाले समय में कृषि कानून की तरह CAA एनआरसी वापस लेने के लिए फिर से आंदोलन खड़ा हो सकता है, और यहीं से बीजेपी को फायदा मिलना शुरू होगा।

देश में फिर दो सियासी ध्रुव खड़े होंगे, एक CAA एनआरसी के पक्ष में होगा तो दूसरा इसका विरोध में।

इस मुद्दे के उठने के साथ ही धारा 370, तीन तलाक जैसे अन्य मुद्दे भी फिर से जीवित हो जाएंगे और भारतीय जनता पार्टी को इसका फायदा मिलेगा।