मुख्यमंत्री को क्यों हर बैठक में यह कहना पड़ता है कि अफसर बंगले से निकले और मैदान में जाएं। आखिर मध्य प्रदेश के अफसर मैदान में जाने को तैयार क्यों नहीं हैं? मुख्यमंत्री की हिदायतें सिर्फ बैठकों तक सीमित क्यों है?
क्यों नहीं सुधरते अफ़सर? CM को कब तक एक्शन मोड़ में रहना होगा।
ऐसा लगता है मुख्यमंत्री की हिदायतें बैठक तक सीमित रहती हैं। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान समय समय पर प्रदेश की प्रशासनिक व्यवस्थाओं को चाक-चौबंद करने, सरकार की योजनाओं के सफल क्रियान्वयन और जनता की शिकायतें दूर करने के लिए मैराथन बैठकें करते हैं। यह सिलसिला आज से नहीं वर्षों से चला आ रहा है। ये आवश्यक भी है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की बैठकों में आमतौर पर अफसर अलग-अलग वजहों से उनके निशाने पर रहते हैं।
मुख्यमंत्री के सामने अफसरों की टालमटोली, फाइलें लटकाने और आलस भरी मानसिकता एक बड़ी चुनौती होती है।
मुख्यमंत्री इन बैठकों में अफसरों को सख्त ताकीद देते हुए नजर आते हैं। आत्मनिर्भर मध्य प्रदेश के रोड मैप के हिसाब से काम करने और सेवा की भावना में सुधार करने पर जोर देते हैं। बार-बार वह समीक्षा करते हैं, अफसरों को फटकार लगाते हैं। लेकिन आम जनमानस में ये धारणा बन रही है कि CM की इन हिदायतों को अफसर सुनते नहीं।
CM यह भी कहते हैं कि अब ऐसा नहीं चलेगा, लेकिन अगली बैठक में फिर वही दोहराने पर मजबूर हो जाते हैं।
पुलिस की फिटनेस आज से खराब नहीं है, पुलिस की फिटनेस पर कई बार विभिन्न जांच रिपोर्ट के माध्यम से सरकार को बताया गया है। राजस्व संग्रहण में हीला हवाली और लेटलतीफी आज का विषय नहीं है, यह भी लंबे समय से एक समस्या बनी हुई है। टैक्स चोरी रोकने और राजस्व बढ़ाने का मुद्दा हर बैठक में सामने आता है।
आनंद विभाग हमेशा से और ज्यादा ध्यान देने की बाट जोहता दिखाई देता है।
सरकारी अफसरों की कार्यप्रणाली का सबसे बड़ा उदाहरण Vidisha के सिरोंज में देखने को मिला। यहां पर कोरोनावायरस के दौर में सरकारी योजना से 6 हजार विवाह हो गए। इसमे 30 करोड़ खर्च कर दिए गए।
अब सीएम पूछ रहे हैं कि कैसे यह 6000 विवाह हो गए। न सिर्फ सिरोंज में बल्कि पूरे प्रदेश में इस बात की जांच कराने की जरूरत है कि ऐसे कितने विवाह कागजों पर संपन्न करा दिए गए।
मुख्यमंत्री को क्यों हर बैठक में यह कहना पड़ता है कि अफसर बंगले से निकले और मैदान में जाएं।
आखिर मध्य प्रदेश के अफसर मैदान में जाने को तैयार क्यों नहीं हैं? मुख्यमंत्री की हिदायतें सिर्फ बैठकों तक सीमित क्यों है?
अधिकारी अपने केबिन से बाहर क्यों नहीं निकलना चाहते और निकलते हैं तो खानापूर्ति करने के लिए क्यों?
मुख्यमंत्री को यह क्यों कहना पड़ता है कि क्या सारे काम के मुख्यमंत्री ही करेगा?
मध्यप्रदेश में तमाम व्यवस्थाओं पर मुख्यमंत्री को ही क्यों निगरानी रखनी पड़ती है। जहां से मुख्यमंत्री की नजर हटती है वहीं एक गड्ढा बन जाता है।
इकोनॉमी पर मुख्यमंत्री ध्यान ना दें तो वो पीछे होने लगती है।
अपनी महत्वाकांक्षी योजनाओं की प्रगति पर नजर न बनाएं तो वह आगे नहीं बढ़ती। जो योजनाएं अमल में आ चुकी है वो धीमी पड़ने लगती हैं। जिन महत्वाकांक्षी कार्यों को मुख्यमंत्री शुरू करते हैं वह कुछ दिन तक ठीक चलते हैं बाद में ठंडे पड़ जाते हैं।
वृक्षारोपण अभियान हो, आनंद उत्सव हो, विभिन्न योजनाओं का क्रियान्वयन हो, आखिर मुख्यमंत्री किस किस पर नजर रखेगा?