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सूचना तंत्र में रिक्तता का भाव

राकेश दुबे राकेश दुबे
Updated Mon , 05 Oct

सार

36.6 प्रतिशत या लगभग 23.5 करोड़ लोगों ने देश पर पिछले 10 वर्षों से शासन कर रही भारतीय जनता पार्टी के पक्ष में वोट डालें..!!

janmat

विस्तार

कुछ अजीब सा लगा जब ये आँकड़े सामने आए, जैसे - भारत निर्वाचन आयोग के अनुसार 2024 के आम चुनाव में 64.2 करोड़ लोगों ने मतदान किया। इनमें 36.6 प्रतिशत या लगभग 23.5 करोड़ लोगों ने देश पर पिछले 10 वर्षों से शासन कर रही भारतीय जनता पार्टी के पक्ष में वोट डालें। यदि आप देश में लगभग 400 समाचार चैनलों में से कई चालू करें तो ऐसा लगेगा कि ये 23.5 करोड़ लोग केवल समाचार ही देखते हैं। 

अगर यह मान लिया जाए कि ये लोग केवल टेलीविजन देखते हैं तो उस सूरत में इनकी संख्या देश में टेलीविजन देखने वाले कुल 90 करोड़ लोगों के एक तिहाई से कम ही होगी। अब समाचार पत्र पर निगाहें - जब आप बड़े राष्ट्रीय समाचार पत्रों, विशेषकर अंग्रेजी और हिंदी, के पन्ने पलटेंगे तो पाएंगे कि इन 23.5 करोड़ लोगों की पसंद-नापसंद एवं उनके विचार प्रमुखता से दिखते हैं। 

इंडियन रीडरशिप सर्वेक्षण के ताजा आंकड़ों के अनुसार यह संख्या समाचार पढ़ने वाले 42.1 करोड़ लोगों की आधी है। कई लोग संभवतः समाचार पत्र पढ़ने के साथ टेलीविजन भी देखते होंगे। इस लिहाज इसे इन आंकड़ों में दोहराव की बात से इनकार नहीं किया जा सकता।

अगर वर्ष 2014 और 2019 के आंकड़ों पर विचार करें तो इनमें भिन्नता दिखती है। मगर मोटे तौर पर लगता है कि समाचार माध्यम केवल एक प्रकार के दर्शकों का ध्यान रखते हैं। यह रुझान स्थिर बना हुआ है। दूसरे दलों के पक्ष में मतदान करने वाले 40.7 करोड़ लोगों की अनदेखी लगभग एक दशक तक क्यों की गई, एक सवाल है। 

अगर आप पूरे देश की आबादी पर विचार करें तो समाचार चैनलों का संकीर्ण दृष्टिकोण कहीं अधिक हतप्रभ करने वाला है और इससे एक सूचना तंत्र में कहीं न कहीं रिक्तता का भाव पैदा हुआ है।

यह सब इस बात का प्रभाव है  कि हमारे पास कैसी खबरें पहुंच रही हैं। मुख्यधारा का मीडिया, जिसकी तगड़ी पहुंच है, ऐसी खबरों का अकेला सबसे बड़ा स्रोत है। विविधताओं से भरे भारत जैसे देश में विभिन्न प्रकार की खबरों के लिए असीमित गुंजाइश रहती है मगर पिछले एक दशक से केवल एक तरह की खबर ही परोसी जा रही है। मुख्यधारा की मीडिया द्वारा दिखाई एवं सुनाई जा रही खबरों पर सवाल उठाने वाली काफी कम खबरें सामने आ पाती हैं।

ग्रामीण क्षेत्र में संकट या रोजगार की कमी जैसी समस्याओं को लेकर मुख्यधारा के मीडिया में काफी कम खबरें आती हैं। किसी तरह लोगों के बीच ऐसी वाजिब खबरें पहुंचती भी हैं तो लोग अक्सर चकित हो जाते हैं या इन पर विश्वास नहीं कर पाते हैं। पिछले कई वर्षों से पूरे देश में केवल एक निश्चित समूह की पसंद के अनुरूप खबरें चलाई जा रही हैं। इससे सूचना के स्तर पर कहीं न कहीं एक रिक्तता की स्थिति बन रही है जो लगातार बढ़ रही हैं। मगर प्रकृति ऐसी रिक्तता को पसंद नहीं करती हैं।

खाली जगह को भरने के लिए ऑनलाइन माध्यम में कई लोग, ब्रांड एवं प्लेटफॉर्म आ चुके हैं। ऑनलाइन माध्यम में प्रवेश करने में टेलीविजन या अखबार जैसी परेशानी या बाधा सामने नहीं आती है। वर्ष 2017 में डेटा या इंटरनेट का शुल्क कम होने से इस प्रक्रिया में तेजी आई। इंटरनेट शुल्क लगातार कम हो रहे हैं जिससे ऑनलाइन माध्यम पर उपलब्ध सामग्री का लोग अधिक से अधिक इस्तेमाल कर रहे हैं।

हालांकि, इनमें ज्यादातर की पहुंच कम ही होती है और उन्हें देखने, सुनने एवं पढ़ने वाले लोगों की संख्या 50 लाख से 2.5 करोड़ के बीच होती है। इन सभी को जोड़ दें तो ऐसा लगता है कि उन्होंने कुछ हद तक सूचनाओं के प्रसार में आए रिक्त स्थान को भर दिया है।

भारत जैसे विविधतापूर्ण देश में जितने विचार आएंगे उतना ही बेहतर रहेगा। समाज, अर्थव्यवस्था, नियमन एवं राजनीति को लेकर हो रही बहस में प्रत्येक समूह का प्रतिनिधित्व होना चाहिए। ये स्वतंत्र विचार लोकतंत्र में मीडिया द्वारा निभाई जाने वाली भूमिका को रेखांकित करते हैं।