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अमरीकी अदालत के कठघरे में अडाणी ?

राकेश दुबे राकेश दुबे
Updated Mon , 28 Nov

सार

अमरीकी निवेशकों, एजेंसियों और बैंकों को गुमराह करने, बेईमानी करने, धोखा देने और भारत में करीब 2200 करोड़ रुपए की घूसखोरी को छिपाने सरीखे गंभीर आरोप अडाणी समूह पर हैं..!!

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विस्तार

बड़ी खबर है कि न्यूयॉर्क फेडरल कोर्ट ने भारत के शीर्षस्थ उद्योगपति गौतम अडाणी और 7 अन्य आरोपितों के खिलाफ गिरफ्तारी के वारंट जारी किए हैं। अमरीकी निवेशकों, एजेंसियों और बैंकों को गुमराह करने, बेईमानी करने, धोखा देने और भारत में करीब 2200 करोड़ रुपए की घूसखोरी को छिपाने सरीखे गंभीर आरोप अडाणी समूह पर हैं। हालांकि समूह ने आरोपों को गलत और बेबुनियाद करार दिया है, लेकिन यही पर्याप्त नहीं है। 

अमरीकी कानून और न्यूयॉर्क स्टॉक एक्सचेंज के नियमानुसार ये बेहद गंभीर अपराध हैं। अडाणी समूह की कुछ कंपनियां न्यूयॉर्क स्टॉक एक्सचेंज में भी सूचीबद्ध हैं। चूंकि सौर ऊर्जा के भारत सरकार के अनुबंध के लिए अडाणी समूह ने अमरीकी बाजार और बैंकों से करीब 25,000 करोड़ रुपए जुटाए थे। उसी में से 26.5 करोड़ डॉलर (करीब 2200 करोड़ रुपए) आंध्रप्रदेश, ओडिशा, तमिलनाडु, छत्तीसगढ़ और जम्मू-कश्मीर के अधिकारियों को कथित रूप से घूस दी गई, ताकि इन राज्य सरकारों से सौर ऊर्जा के अनुबंध हासिल किए जा सकें। 

रिश्वत और ठेकेदारी के इस खेल में अडाणी ग्रीन एनर्जी लिमिटेड के साथ मॉरीशस की भी एक कंपनी थी, जिन्हें ‘सोलर एनर्जी कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया’ (सेकी) का 12 गीगावॉट अर्थात 12,000 मेगावॉट सौर ऊर्जा का ठेका मिला था। चूंकि ऊर्जा महंगी थी, लिहाजा राज्य सरकारें उसे खरीद नहीं पा रही थीं। सौदेबाजी के लिए घूस दी गई, यह आरोप है। 

समूह के अध्यक्ष गौतम अडाणी ने 2021 में आंध्रप्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री जगनमोहन रेड्डी से मुलाकात की थी और राज्य सरकार 7000 मेगावॉट बिजली खरीदने को राजी हुई थी। ओडिशा ने भी 500 मेगावॉट बिजली खरीदी थी। जिन सरकारों के साथ अडाणी समूह ने करार किए थे, वहां तब विपक्ष की सरकारें थीं। सिर्फ जम्मू-कश्मीर में राष्ट्रपति शासन था, लेकिन तब भी उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ही थे।

अब अडाणी को अमरीकी अदालत के कठघरे में पहुंच कर अथवा अपने वकीलों के जरिए अपना पक्ष रखना होगा। अदालत से जमानत या मामला खत्म करने की गुहार लगानी होगी। यह ऐसी कोर्ट है, जिसमें निर्वाचित अमरीकी राष्ट्रपति ट्रम्प तक को भी हाजिर होना पड़ा था। यदि अडाणी को फेडरल कोर्ट में राहत नहीं मिलती है, तो आरोपित वहां की सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे सकते हैं। अलबत्ता कोर्ट के मुताबिक, अभी अडाणी और अन्य आरोपित ‘दोषी’ नहीं हैं। 

मामला अमरीकी अदालत में है, लेकिन यह खबर सामने आते ही भारतीय शेयर बाजार और राजनीति में ‘भूचाल’ आ गया। एक ही दिन में निवेशकों के 5.35 लाख करोड़ रुपए डूब गए और अडाणी समूह को भी करीब 2.20 लाख करोड़ रुपए का नुकसान हुआ। अमीरों की वैश्विक सूची में गौतम अडाणी 25वें स्थान तक लुढक़ गए। यह जनवरी, 2023 में हिंडनबर्ग रपट के बाद हुए घाटे से तिगुना नुकसान है। अडाणी समूह के लिए यह सबसे बड़ा अंतरराष्ट्रीय झटका है कि केन्या ने 700 मिलियन डॉलर (करीब 6000 करोड़ रुपए) के ऊर्जा करार रद्द कर दिए। वहां के राष्ट्रपति विलियम रुतो ने नैरोबी एयरपोर्ट की लीज डील भी खारिज कर दी। अडाणी समूह को ऐसे और भी झटके लग सकते हैं। 

भारत में सियासत में उबाल यहां तक आया है कि लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने गौतम अडाणी को तुरंत गिरफ्तार करने की मांग की है। यही नहीं, विपक्ष ने संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) गठित करने का भी आग्रह किया है। अब 25 नवंबर से संसद का शीतकालीन सत्र आरंभ हो रहा है, लिहाजा स्वाभाविक है कि विपक्ष इस मुद्दे पर शोर मचाएगा। 

सदन में हंगामा भी मच सकता है। बुनियादी तौर पर देखा जाए, तो अडाणी पर भारत में ही घूसखोरी के आरोप हैं, लिहाजा न्याय के लिए सरकार को हरेक कदम उठाने चाहिए। सवाल यह है कि राहुल गांधी ने इस मामले में भी अडाणी के साथ प्रधानमंत्री मोदी का भी नाम जोड़ दिया है। वह मोदी-अडाणी जोड़ी की राजनीति अक्सर करते रहे हैं। उन्होंने यहां तक भी दावा किया है कि प्रधानमंत्री अडाणी को गिरफ्तार नहीं करने देंगे। राहुल गांधी की यह राजनीति अनैतिक है। वह खुद जमानत पर हैं। वह देश की प्रतिष्ठा और छवि को भी कलंकित कर रहे हैं। यदि उनके पास मोदी-अडाणी मिलीभगत के कोई ठोस प्रमाण हैं, तो वह अदालत में जा सकते हैं।