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आख़िर कब तक रेवडिय़ां बांटी जाती रहेंगी?

राकेश दुबे राकेश दुबे
Updated Tue , 12 Mar

सार

जब यह योजना लागू हो जाएगी, तो करीब 17 लाख महिलाओं को फायदा मिलने का अनुमान है। दिल्ली में करीब 72 लाख महिलाएं हैं, जिनमें से करीब 45 प्रतिशत ने भाजपा के पक्ष में वोट दिया था..!!

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विस्तार

चुनाव के पहले और चुनाव के बाद राजनीतिक दल अपने वादों की पूर्ति के लिए कुछ भी करने पर आमादा है। बीते कल अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस, पर दिल्ली कैबिनेट ने ‘महिला समृद्धि योजना’ पर मुहर लगाई और गरीबी-रेखा के तले (बीपीएल) वाली महिलाओं को 2500 रुपए प्रति माह देने की घोषणा की।

जब यह योजना लागू हो जाएगी, तो करीब 17 लाख महिलाओं को फायदा मिलने का अनुमान है। दिल्ली में करीब 72 लाख महिलाएं हैं, जिनमें से करीब 45 प्रतिशत ने भाजपा के पक्ष में वोट दिया था। चुनाव-प्रचार के दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने सार्वजनिक मंच से वायदा किया था कि दिल्ली में भाजपा सरकार बनी, तो पहली कैबिनेट बैठक में ही महिलाओं को 2500 रुपए देने का प्रस्ताव पारित किया जाएगा और उसके बाद सभी महिलाओं की समृद्धि की योजना लागू कर दी जाएगी। 

यूँ तो प्रधानमंत्री ने ‘सभी’ महिलाओं को आश्वस्त किया था, लेकिन अब 72 लाख में से 17 लाख महिलाओं के खाते में ही 2500 रुपए जमा कराए जाएंगे। पात्रता के मानदंड, शर्तें और आधार चुनाव संपन्न होने से पहले ही तय किए जाने चाहिए थे, लिहाजा अब ‘महिला समृद्धि योजना’ महज एक छलावा लगती है। चुनावी वायदे का यह एक अर्धसत्य भी है। दिल्ली मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता की अध्यक्षता में मंत्रियों की एक समिति की घोषणा जरूर की गई है। उसकी रपट कब सामने आएगी, पात्रता के मानदंड क्या होंगे, ये भी यक्ष-प्रश्न हैं।

बेशक 5100 करोड़ रुपए के बजटीय प्रावधान की भी घोषणा की गई है। विपक्ष के तौर पर आम आदमी पार्टी (आप) को एक गरम और संवेदनशील मुद्दा हाथ लग गया है। दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री आतिशी कह रही हैं कि ‘आप’ सरकार ने महिलाओं को नकदी मुहैया कराने का जो ब्लूप्रिंट तैयार किया था, उससे करीब 38 लाख महिलाएं लाभान्वित होतीं! अब ‘आप’ ने ‘2500 रुपए कब’ की रट लगा रखी है और प्रधानमंत्री की गारंटी को ‘जुमला’ करार दिया जा रहा है।

एक और ख़बर छन कर आ रही है कि भाजपा ‘मुफ़्त की रेवडिय़ों’ से इतना परेशान हो चुकी है कि पार्टी के भीतर ‘वैकल्पिक मॉडल’ पर विमर्श किया जा रहा है। यह विचार तभी कौंधा था, जब दिल्ली चुनाव के ‘संकल्प-पत्र’ पर रणनीति तैयार की जा रही थी, लेकिन केजरीवाल की ‘रेवड़ी राजनीति’ ने देश के सभी प्रमुख राजनीतिक दलों को ‘मुफ्तखोरी’ परोसने को बाध्य किया है। भाजपा को भी दिल्ली चुनाव में मजबूरन करना पड़ा। 

अब भाजपा 2026 में असम चुनाव के साथ ही रेवडिय़ों के बजाय आर्थिक, व्यावसायिक मदद के वैकल्पिक मॉडल पेश करना चाहती है। देश के प्रमुख 7 राज्यों-मप्र, तमिलनाडु, कर्नाटक, पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र, झारखंड, गुजरात-में 8.1 करोड़ महिलाओं को करीब 1.24 लाख करोड़ रुपए बांटने पड़ रहे हैं। यह राशि राज्यों के कुल बजट की 12 प्रतिशत है। मुफ्तखोरी की रेवडिय़ों ने राज्यों और देश की आर्थिक हालत को बुरी तरह प्रभावित किया है। राज्यों पर 2.5 लाख करोड़ से 9 लाख करोड़ रुपए का कर्ज है। 

भाजपा जहां पहले रेवडिय़ों की घोषणा कर चुकी है और उसकी सरकार है, वहां चुनावी वायदे के मुताबिक रेवडिय़ां बांटी जाती रहेंगी, लेकिन 2028 के बाद भाजपा शासित सभी राज्यों में ‘वैकल्पिक व्यवस्था’ होगी। सवाल है कि क्या नया वैकल्पिक मॉडल महिलाओं या स्वयं सहायता समूहों पर ही लागू होगा? भाजपा के भीतरी सूत्रों ने खुलासा किया है कि छोटे दुकानदार, रेस्तरां वाले, निम्न आय वर्ग के परिवार, पिछड़े, दलित और समाज के जरूरतमंद लोगों को सरकार सालाना एकमुश्त राशि देगी। बैंकों के जरिए यह राशि फिर दोगुनी की जाएगी। 

सवाल यह भी है कि मुफ्त की रेवडिय़ां जितने वोटों को आकर्षित कर सकती हैं, क्या वैकल्पिक मॉडल से संभव होगा? यदि अर्थव्यवस्था की चिंता है, तो इस मुद्दे पर सभी दलों में सहमति होना अनिवार्य है। क्या ऐसी सर्वदलीय सहमति भी संभव होगी?