डेमोक्रेटिक सरकारें कल्याणकारी राज्य की परिकल्पना पर आधारित होती हैं. डेमोक्रेसी की न्याय प्रणाली बेगुनाही साबित करने के सर्वोत्तम अवसर देने की बुनियादी सिद्धांतों पर टिकी हुई है. पिछले कुछ समय से गुड गवर्नेंस के नाम पर ऐसे ऐसे कारनामे हो रहे हैं, जो ये सोचने पर मजबूर कर रहे हैं कि राज्य सरकारें क्या अलोकतांत्रिक हो रही हैं..!
देश के किसी भी राज्य की सरकारों को देखें तो उनका कामकाज अनडेमोक्रेटिक होता जा रहा है| पॉलिटिकल गवर्नेंस सिस्टम पक्ष विपक्ष के बीच गला काट प्रतिस्पर्धा तक पहुंच गया है| तमिलनाडु की मुख्यमंत्री रही जयललिता पर बनी फिल्म थलावी अनडेमोक्रेटिक गवर्नेंस का ऐसा दृश्य दिखाती है जो दिल को झकझोरता है| अभी हाल ही में कश्मीर फाइल्स फिल्म ने जम्मू कश्मीर में हुए अनडेमोक्रेटिक गवर्नेंस को सामने लाने में सफलता प्राप्त की है|
पश्चिम बंगाल में जिस तरह की घटनाएं प्रकाश में आ रही है वह शासन और प्रशासन के अलोकतांत्रिक होने का नमूना प्रदर्शित कर रही हैं| राजनीतिक प्रतिद्वंदिता इस सीमा तक बढ़ गई है कि मुख्यमंत्रियों को धरने पर बैठने के डेमोक्रेटिक राईट का दुरुपयोग करना पड़ रहा है| उत्तर प्रदेश में बुलडोजर बाबा की चुनावी सफलता को देखते हुए राज्यों में बुलडोजर प्रशासन का एक नया दौर शुरू हुआ है| डिक्शनरी में बुलडोजर का मतलब जमीन को समतल करने वाली मशीन के रूप में बताया गया है|
डिक्शनरी में बुलडोजर को डराने वाला यंत्र भी कहा गया है| बुलडोजर शब्द ही डेमोक्रेटिक नहीं है| नियम कायदों से काम हो, यह शासन प्रशासन की बेसिक रिस्पांसिबिलिटी है| किसी भी शासन को यदि किसी भी निर्माण को बुलडोज़ करने की आवश्यकता पड़ रही है, इसका मतलब है कि वह निर्माण नियम कानूनों के विरुद्ध हुआ है|
सबसे पहला प्रश्न कि जब यह निर्माण हो रहे थे तब प्रशासन ने अवैध निर्माण को क्यों होने दिया? अगर प्रशासन अपना दायित्व निभाता तो शायद बुलडोजर चलाने की जरूरत नहीं पड़ती| दूसरा प्रश्न कि जिस भी निर्माण को गिराया जा रहा है उसके ओनर को क्या पूरे कानूनी अवसर का उपयोग करने के लिए पर्याप्त समय दिया गया है? जो भी निर्माण गिराया जा रहा है क्या न्यायिक प्रक्रिया पूर्ण कर उसे अवैध मान लिया गया है?
एक और ट्रेंड चल पड़ा है कि अपराध के आरोपी के घर गिरा दिए जाएं, मध्य प्रदेश में इस तरह की कई घटनाएं हुई हैं, रीवा में एक कथित महंत द्वारा दुष्कर्म के आरोप में पुलिस द्वारा उसके खिलाफ कानूनी कार्यवाही और गिरफ्तारी के बाद उसके घर को बुलडोजर से गिराने की घटना प्रकाश में आई है| इस घटना में एक तथ्य यह भी सामने आया था कि यह मकान कथित महंत के पिता के नाम था| महंत वहां रहता था, लेकिन मकान उसका नहीं था| मकान पर पिता का अधिकार था और वह अपने परिवार के साथ वहां रहते थे| महंत के अपराध पर जब उनका मकान गिरा दिया तब वह बेघर होकर इधर-उधर भटकने के लिए मजबूर हो गए| इसे क्या कहा जाएगा?
ऐसी और भी घटनाएं हो रही हैं जहां प्रशासन आरोप के आधार पर ही बुलडोजर का उपयोग कर सजा दे देता है| जबकि कानून के राज में आरोपी के अपराध को सिद्ध करने का अधिकार न्यायालय के पास होता है| जब तक न्यायालय द्वारा कोई दोष सिद्ध नहीं होता तब तक उसे प्रशासन कैसे दोषी मान सकता है?
भारत में तो ऐसे अनेक उदाहरण हैं जब दुर्दांत आतंकवादियों को भी अपनी बेगुनाही साबित करने का अवसर दिया गया है| मुंबई आतंकवादी हमले के आरोपी अजमल कसाब को भी विधिक सहायता उपलब्ध कराई गई थी| अदालत के सामने आरोपी अपना पक्ष मजबूती से रख सके| शायद विधिक सहायता की प्रक्रिया इसलिए की गई है कि जो लोग आर्थिक रूप से सक्षम नहीं हैं उन्हें भी अपनी बेगुनाही साबित करने के लिए विधिक सहायता के अभाव में अपना पक्ष रखने से वंचित ना होना पड़े|
बुलडोजर प्रशासन आरोपी को यह अवसर भी नहीं देता| सीधी जिले में पत्रकारों के एक समूह को थाने में निर्वस्त्र करने के चित्र सार्वजनिक हुए हैं पत्रकार प्रदर्शन कर रहे थे? किसी के खिलाफ भी अनर्गल समाचार छाप रहे थे? अगर वह कोई अपराध कर रहे थे तो उनके खिलाफ कार्यवाही होना आवश्यक है| लेकिन कौन से कानून के तहत उन्हें निर्वस्त्र कर अपमानित करने की व्यवस्था या अधिकार प्रशासन को मिल जाता है?
कोई भी किसी प्रकार का कानून तोड़ रहा है तो उसके लिए कार्रवाई जरूर होनी चाहिए, लेकिन नागरिक गरिमा और सम्मान जैसे मूलभूत अधिकारों को समाप्त करने का अधिकार प्रशासन को कैसे मिल सकता है ? कोई अखबार यदि कोई खबर नियम विरुद्ध प्रकाशित कर रहा है तो उसके लिए भी प्रक्रिया निर्धारित है| लेकिन प्रशासन अखबार की कमर तोड़ने के लिए लीगल प्रोसेस की बजाए आर्थिक रीढ़ तोड़ने का अनडेमोक्रेटिक रास्ता अपनाते हैं|
यह किसी एक राज्य में नहीं हो रहा है सभी राज्यों में प्रशासन कंस्ट्रक्शन से ज्यादा डिस्ट्रक्शन की ओर लगा हुआ है| चाहे कोई आरोपी हो या अन्य, सरकारी डिस्ट्रक्शन से उसको जो दर्द हो रहा है वह तो सबके लिए समान है| अपने आशियाने और जड़ों से उजड़ने का दर्द हिंदू मुसलमान को एक जैसा ही होता है| जब कश्मीरी पंडितों के दर्द से देश आंदोलित है तो बाकी कहीं भी किसी को उजाड़ने की कोशिशों को कैसे जायज ठहराया जा सकता है?
किसी का घर तोड़ देना सजा के रूप में तभी जायज होगा जब न्यायिक प्रक्रिया में उसे दोषी सिद्ध कर दिया गया हो| जब न्यायालय दोषी ठहराता है तब समुचित दंड भी दिया जाता है| न्यायालय द्वारा निर्धारित दंड के अलावा कोई भी दंड उसे कैसे दिया जा सकता है| जहाँ तक सरकारी ज़मीन पर अतिक्रमण का मामला है वो तो सामान्य रूप से हटाया जाना चाहिए ये प्रशासन की मूलभूत जिम्म्मेदारी है| इसके लिए किसी का आरोपी बनना ज़रूरी नहीं है| वैसे तो अवैध निर्माणों को भी वैध करने का कानून डेमोक्रेसी में बनाया जाता है| राजदंड हमेशा कल्याण के लिए होता है राजदंड विनाश के लिए नहीं हो सकता|
किसी को भी नेस्तनाबूद करने का प्रशासन को अधिकार देना डेमोक्रेसी के लिए घातक है| “गिरा दो” “मिटा दो” “नेस्तनाबूद कर दो” इस तरह के शब्द क्या डेमोक्रेटिक माने जाएंगे? क्या दर्द का भी हिंदू मुस्लिम बंटवारा किया जा सकता है? प्रशासन का विलेन वाला स्वरूप तात्कालिक रूप से भले ही प्रासंगिक दिखता हो, लेकिन इतिहास में इसे प्रगतिशील नजरिए से नहीं देखा जाएगा, इतिहास में जो भी नकारात्मक हुआ है उसे आज हिकारत की नजर से ही देखा जाता है|
अपराधी को कुचलना सरकार का धर्म है लेकिन अपराध सिद्ध होने के बाद ही न्यायालीन व्यवस्था के अंतर्गत यह अधिकार मिलता है| डंडे की ताकत से यह अधिकार लेना अनडेमोक्रेटिक ही माना जाएगा| प्रशासन में भी नियम कानूनों का डर होना चाहिए| डेमोक्रेटिक लीडर्स पर यह बहुत बड़ी जिम्मेदारी है कि संतुलन के साथ प्रशासन और जन भावनाओं का सम्मान हो|
यदि प्रशासन इमानदारी से अपना काम करेगा तो उसके मौन की भी बहुत बड़ी ताकत होती है| प्रशासन को कानून का डर पैदा करने के लिए डंडा चलाने से ज्यादा अपने दायित्वों के प्रति ओनेस्ट और प्रोएक्टिव होने की ज़रूरत हैं| सरकारों को प्रशासन की लापरवाही पर सख्त करवाई करने की ज़रूरत है अगर मिलीभगत और लापरवाही नहीं होती लोगों में प्रशासन पर भरोसा होता तो इस तरह के कटुतापूर्ण वातावरण निर्मित ही नहीं होता|