नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर मचे भगदड़ में 18 मौतें हुईं, उनमें 13 महिलाएं, 3 बच्चे और 2 पुरुष थे, जो भगदड़ में कुचले गए, घायल भी 25 से अधिक बताए गए हैं, अस्पताल के सूत्रों और कुछ प्रत्यक्षदर्शियों के अनुमान हैं कि मौतों का आंकड़ा बहुत ज्यादा हो सकता है, बीते शनिवार रात को यह हादसा हुआ, जिसे सामान्य घटना नहीं माना जा सकता..!!
प्रयागराज में हुए महाकुंभ और उसके आगे पीछे घटी घटनाओं से यह साबित हो गया है कि ऐसी भगदड़ को रोकने में हमारा प्रशासन अक्षम और लापरवाह है। अब साफ़ हो गया है कि नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर मचे भगदड़ में 18 मौतें हुईं। उनमें 13 महिलाएं, 3 बच्चे और 2 पुरुष थे, जो भगदड़ में कुचले गए। घायल भी 25 से अधिक बताए गए हैं। अस्पताल के सूत्रों और कुछ प्रत्यक्षदर्शियों के अनुमान हैं कि मौतों का आंकड़ा बहुत ज्यादा हो सकता है। बीते शनिवार रात को यह हादसा हुआ, जिसे सामान्य घटना नहीं माना जा सकता। दरअसल यह प्रशासनिक त्रासदी है। अब यह साबित हो गया है कि ऐसी भगदड़ को रोकने में हमारा प्रशासन अक्षम और लापरवाह है। आस्था और अध्यात्म किसी को भी उत्तेजित उन्माद और हुड़दंगबाजी को विवश नहीं करते। महाकुंभ में जाने और त्रिवेणी संगम में पवित्र स्नान कर पुण्य कमाने की इच्छा सनातनी और स्वाभाविक है, लेकिन रेलवे स्टेशन की भगदड़ ही अकेली दुर्भाग्यपूर्ण घटना नहीं है।
बीते दिनों बिहार के पटना और अन्य रेलवे स्टेशनों पर भीड़ के हिंसक चेहरे भी दिखाई दिए। वह भीड़ भी महाकुंभ जाने को आमादा थी। यह संस्कृति ही अराजकता और भगदड़ को जन्म देती है। बिहार में बेलगाम भीड़ ने टे्रन के वातानुकूलित डिब्बों के दरवाजे और शीशे ही तोड़ दिए। शीशों पर अलग-अलग चीजों से प्रहार किए गए और वे टूट कर बिखर गए।अंदर बैठे कुछ यात्री चोटिल भी हुए होंगे! भीड़ के विध्वंसक चेहरे सीसीटीवी में कैद हो गए होंगे, यदि वे कैमरे ऑन या कार्यरत होंगे! केंद्रीय रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने उन चेहरों के खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई करने का आश्वासन दिया है। वे आम आदमी और विपन्न घरों के होंगे, तो उनसे आर्थिक जुर्माना कैसे वसूल किया जा सकता है? आप जेल में डाल सकते हैं, लेकिन उनके संस्कार ही हमलावर हैं, तो उन्हें कैसे बदला जा सकता है? सार्वजनिक संपत्तियां तो बर्बाद होती रही हैं। ये संपत्तियां कुछ मायनों में महाकुंभ में स्नान करने से भी पवित्र और महत्वपूर्ण हैं। ऐसे तोड़-फोड़ करने और भगदड़ मचाने वाले तत्त्व आध्यात्मिक और आस्थामय नहीं हो सकते।
रेल मंत्री अक्सर गिनाते रहते हैं कि कितनी हजार रेलगाडिय़ां महाकुंभ के लिए चलाई जा रही हैं। वह अक्सर तसल्ली देते रहते हैं कि समूची व्यवस्था ठीक है। लेकिन हम भीड़-नियंत्रण में अज्ञानी, लापरवाह और अक्षम हैं, नतीजतन बार-बार और वह भी धार्मिक आयोजनों के संदर्भ में ज्यादा भगदड़ें होती रही हैं। महाकुंभ को लेकर शुरुआत में भीड़-नियंत्रण के खूब दावे किए जा रहे थे, लेकिन मेला-क्षेत्र में ही जो भगदड़ मची थी, उसमें अंतिम तौर पर मृतकों की संख्या कितनी रही, उसका डाटा उप्र सरकार ने आज तक साझा नहीं किया है।