मेजबान फ्रांस,भारत व प्रमुख हितधारक चीन समेत दुनिया के साठ देशों ने डिजिटल विभाजन को कम करने के लिये एआई पहुंच को बढ़ावा देने, इसे खुला,समावेशी, पारदर्शी, नैतिक, सुरक्षित और भरोसेमंद बनाने के संकल्प लेते हुए एक संयुक्त बयान पर हस्ताक्षर किए, वहीं अमेरिका और ब्रिटेन ने इस पर असहमति जतायी और हस्ताक्षर नहीं किए..!!
सर्व विदित है कि पेरिस में संपन्न एआई एक्शन समिट में कृत्रिम बुद्धिमत्ता के महत्व को स्वीकारते हुए सुरक्षा उपायों पर बल दिया गया है । फ्रांस के तत्वावधान में आयोजित समिट राष्ट्रपति मैक्रों के साथ भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सह-अध्यक्षता में संपन्न हुई। जो भारतीय प्रतिभाओं की वैश्विक साख को भी दर्शाता है। निश्चित रूप से यह समय एआई के क्षेत्र में भारत को अपनी प्राथमिकता तय करने का है। हालांकि, समिट में कृत्रिम बुद्धिमत्ता के संवर्द्धन के रोडमैप पर अंतर्राष्ट्रीय समुदाय में गहरे मतभेद भी उजागर हुए।
मेजबान फ्रांस,भारत व प्रमुख हितधारक चीन समेत दुनिया के साठ देशों ने डिजिटल विभाजन को कम करने के लिये एआई पहुंच को बढ़ावा देने, इसे खुला,समावेशी, पारदर्शी, नैतिक, सुरक्षित और भरोसेमंद बनाने के संकल्प लेते हुए एक संयुक्त बयान पर हस्ताक्षर किए। वहीं अमेरिका और ब्रिटेन ने इस पर असहमति जतायी और हस्ताक्षर नहीं किए। ट्रंप जैसे तेवर अपनाते हए अमेरिकी उपराष्ट्रपति जे.डी. वेंस ने वैश्विक नेताओं व तकनीक उद्योग के अधिकारियों को चेताया कि अत्यधिक विनियमन से तेजी से बढ़ते एआई उद्योग की गति थम सकती है। जो बताता है कि अमेरिका एआई जोखिमों को कम करने के यूरोप के प्रयासों से खुश नहीं है।
दरअसल, एक अधीर राष्ट्रपति के नेतृत्व में अमेरिका एआई की अपार संभावनाओं पर वर्चस्व चाहता है। उसे चीन की चुनौती भी स्वीकार नहीं है। इसी तर्ज पर भारतीय प्रधानमंत्री ने कहा कि एआई इस सदी में मानवता के लिये नया कोड लिख रही है। उन्होंने एआई को वैश्विक भलाई के लिये विकसित करने पर भी बल दिया।
जिसका संदेश यह भी है कि इसका उपयोग देश विशेष अपने निजी हितों तक सीमित न रखे। यानी एआई नवाचार को बढ़ावा तो दिया जाना चाहिए, लेकिन इसके नियमन को भी नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए। बड़े पैमाने पर एआई के दुरुपयोग की आशंका के बीच विश्वास, सुरक्षा और पारदर्शिता बढ़ाने के लिये एक वैश्विक ढांचा स्थापित करना अपरिहार्य ही है।
यही वजह है कि यूरोपीय देशों ने इस दिशा में सतर्क रुख अपनाया है। ताकि जांच और संतुलन बनाने वाले कदमों से दुनिया में डीपफेक व भ्रामक प्रचार पर अंकुश लगाया जा सके। फलत: भविष्य में नियामक मानदंडों को आसान बनाने पर सहमति बनानी जरूरी है। इसके लिये पूरी तरह से दरवाजे खोलना किसी आपदा को आमंत्रण जैसा भी हो सकता है।
पेरिस में एक्शन समिट ऐसे वक्त में हुई है जब एआई में अमेरिकी वर्चस्व को चीनी कंपनी डीपसीक जबर्दस्त चुनौती दे चुकी है। उसने कम लागत में बेहतर एआई टूल पेश करके बताया है कि इस दौड़ में चीन कहीं आगे निकल चुका है। निस्संदेह, इस क्षेत्र में तमाम नई खोजों की संभावनाएं बरकरार हैं। लेकिन सुरक्षा मुद्दों को अनदेखा नहीं किया जा सकता। निस्संदेह, आने वाला समय कृत्रिम बुद्धिमत्ता का है, लेकिन इसका अनियंत्रित विकास मानवता के लिए घातक भी साबित हो सकता है। ऐसे में एआई विकास में पारदर्शिता व नियमन के अंतर्राष्ट्रीय मानक बनाने भी जरूरी हैं।
जरूरी है कि हम एआई की वैश्विक चुनौती के बीच अपने इंजीनियरों व वैज्ञानिकों की मेधा का बेहतर उपयोग करके नयी खोजों का मार्ग प्रशस्त करें। अन्यथा भारत एआई की नई खोजों की दौड़ में पिछड़ सकता है। फिक्र है कि भारत जैसे बड़ी बेरोजगारी वाले देश में कहीं एआई रोजगार संकट का वाहक न बने। कम जनसंख्या वाले विकसित देशों के लिये जहां यह तकनीक उपयोगी साबित होगी, वहीं श्रम प्रधान संस्कृति वाले भारत में यह विसंगति भी पैदा कर सकती है। निश्चित रूप से एआई के इस्तेमाल से बेहतर कार्य संस्कृति पैदा होगी, लेकिन यह प्रयास रोजगार के अवसर कम न करे। कृत्रिम मेधा के नियमन और नवाचार के साथ हम रोजगार के अवसर भी बढ़ाएं।
भारत में एआई को तेजी से अपनाया जा रहा है। नीति आयोग ने भी इसे प्रोत्साहन देने के लिये राष्ट्रीय नीति तैयार की है। आने वाले वर्षों में एआई की देश की सुरक्षा, आर्थिकी, चिकित्सा, कृषि तथा शिक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका होगी। लेकिन जरूरी है कि युवाओं के लिये पर्याप्त रोजगार के अवसर भी सृजित हों। भारतीय युवा भी खुद को इस नई चुनौती के अनुरूप तैयार करें।