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आतिशी को दिल्ली में जलवा दिखाना होगा 

राकेश दुबे राकेश दुबे
Updated Fri , 21 Dec

सार

अब जब तक दिल्ली विधानसभा के चुनाव नहीं होते, आतिशी मुख्यमंत्री बनी रहेंगी..हालांकि, उन्हें अरविंद केजरीवाल के निर्देशों का पालन करना होगा..!!

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विस्तार

और 43 साल की आतिशी दिल्ली के तख़्त पर क़ाबिज़ कर दी गई ।सुषमा स्वराज और शीला दीक्षित के बाद, दिल्ली को फिर महिला मुख्यमंत्री मिल गई है। अब जब तक दिल्ली विधानसभा के चुनाव नहीं होते, आतिशी मुख्यमंत्री बनी रहेंगी। हालांकि, उन्हें अरविंद केजरीवाल के निर्देशों का पालन करना होगा। उन्हें यह भी पता है कि विधायक, मंत्री और मुख्यमंत्री बनने का श्रेय मुख्य रूप से अरविंद केजरीवाल को जाता है, जो आम आदमी पार्टी (आप) की धुरी हैं।

दिल्ली के इतिहास को देखें तो पता चलेगा कि दिल्ली की पहली महिला शासक रजिया सुल्तान थीं। उन्होंने 1236-1240 के बीच दिल्ली पर राज किया। रजिया सुल्तान, दिल्ली सल्तनत के ग़ुलाम वंश के प्रमुख शासक इल्तुतमिश की बेटी थीं। इल्तुतमिश ने अपनी मृत्यु से पहले ही उन्हें अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया था, क्योंकि उन्हें अपने किसी भी पुत्र में दिल्ली पर राज करने की क्षमता नहीं दिखी।रजिया सुल्तान के शासन के सात सौ साल से भी अधिक समय बाद, शीला दीक्षित 1998 में दिल्ली की मुख्यमंत्री बनीं। 

शीला दीक्षित ने लगातार 15 वर्षों तक दिल्ली पर राज किया, जो कि किसी भी शासक के लिए एक लंबा कार्यकाल माना जाता है। उनका कार्यकाल दिल्ली के चौतरफा विकास का उदाहरण है । इसी दौर में दिल्ली में मेट्रो रेल की शुरुआत हुई और बिजली संकट का समाधान किया गया।

अगर शीला दीक्षित का कार्यकाल सबसे लंबा रहा, तो सुषमा स्वराज का कार्यकाल मात्र दो महीने का था। वे 12 अक्तूबर, 1998 से लेकर 3 दिसंबर, 1998 तक दिल्ली की मुख्यमंत्री रहीं। इस छोटे से कार्यकाल में वे कोई अहम कदम जनता के हित में नहीं ले सकीं। भाजपा आलाकमान को साहिब सिंह वर्मा की जगह किसी को मुख्यमंत्री बनाना था, और सुषमा स्वराज के नाम पर सर्वानुमति बनी।

इसी तरह , डॉ. सुशीला नैयर को अज्ञात कारणों से 1952 में दिल्ली के मुख्यमंत्री पद से दूर रखा गया था। उस समय देश के पहले लोकसभा चुनाव के साथ ही दिल्ली विधानसभा का चुनाव भी हुआ, जिसमें कांग्रेस को अभूतपूर्व विजय मिली। सियासत और सार्वजनिक जीवन में कामकाज के लिहाज से डॉ. सुशीला नैयर के मुख्यमंत्री बनने की पूरी उम्मीद थी, लेकिन दिल्ली के पहले मुख्यमंत्री नांगलोई के विधायक चौधरी ब्रह्म प्रकाश बने। उन्होंने डॉ. सुशीला नैयर को स्वास्थ्य मंत्री बनाया। डॉ. सुशीला नैयर देव नगर से विधायक चुनी गई थीं और वे महात्मा गांधी की शिष्य तथा उनकी निजी चिकित्सक थीं। वे गांधी जी के निजी सचिव प्यारे नैयर की छोटी बहन भी थीं। जब गांधी जी ने 12 से 18 जनवरी, 1948 तक उपवास रखा, तब डॉ. सुशीला नैयर उनके स्वास्थ्य का ध्यान रख रही थीं। उन्होंने फरीदाबाद में ट्यूबरक्लोसिस सेनेटोरियम की स्थापना की और देशभर में डॉक्टरों को ग्रामीण क्षेत्रों में जाने के लिए प्रेरित किया।अब  देखना होगा कि आतिशी का मुख्यमंत्री के रूप में सफर कितना यादगार रहता है।

वर्ष 1996 में मदन लाल खुराना ने भी मुख्यमंत्री पद से त्यागपत्र दिया था, जब उनका नाम जैन हवाला कांड में आया था। तब उन्होंने भी लगभग वही कहा था जो अब केजरीवाल कह रहे हैं। खुराना ने कहा था कि एक बार वे कोर्ट से आरोपमुक्त होने के बाद फिर से मुख्यमंत्री बन जाएंगे।

हालांकि, जैन हवाला केस से बरी होने के बाद भी खुराना मुख्यमंत्री नहीं बन सके। भाजपा आलाकमान ने उन्हें मुख्यमंत्री की कुर्सी से दूर रखा, जिसके कारण खुराना अपने नेताओं के खिलाफ बयानबाजी करने लगे। इसके चलते उनकी सियासी पारी का अंत हो गया। अब देखना होगा कि केजरीवाल के भविष्य में क्या होता है।

वैसे अभी अरविंद केजरीवाल को राजनीतिक रूप से खारिज करना समझदारी नहीं होगी। वे हर कदम बहुत सोच-समझकर उठाते हैं। यदि सब कुछ सही रहा, तो आगामी दिल्ली विधानसभा चुनाव में भाजपा या कांग्रेस के लिए उनकी आम आदमी पार्टी (आप) को चुनौती देना आसान नहीं होगा। आप के पास समर्पित कार्यकर्ताओं की एक मजबूत टीम है।

हालांकि, इस बार के दिल्ली विधानसभा चुनाव कांटे के होंगे। दिल्ली की सत्ता पर काबिज होने के लिए कांग्रेस और भाजपा अपनी पूरी ताकत झोंक देंगी। भाजपा नेतृत्व इस बात को लेकर बेचैन है कि जिस शहर में जनसंघ और फिर भाजपा की स्थापना हुई, वहां की सत्ता से पार्टी 1998 से बाहर है। भाजपा को लगता है कि पिछले लोकसभा चुनाव में आप और कांग्रेस के मिलकर लड़ने के बावजूद उसने दिल्ली की सातों सीटों पर जीत हासिल की। दूसरी ओर, कांग्रेस अगला विधानसभा चुनाव अकेले ही लड़ने का फैसला कर रही है, और उसका दिल्ली में एक आधार भी है। कुल मिलाकर, आने वाले कुछ महीने दिल्ली की सियासत के लिए महत्वपूर्ण साबित होने वाले हैं।

यह देखना भी दिलचस्प होगा कि मुख्यमंत्री की कुर्सी पर रहते हुए 43 साल की आतिशी अपनी छाप कैसे छोड़ती हैं। उनके सामने रजिया सुल्तान और शीला दीक्षित के रूप में दो महिला शासकों के उदाहरण हैं, जिनका कार्यकाल अपनी न्यायप्रियता के लिए याद किया जाता है।