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तमिलनाडु का लंका यात्रा से संतुलन

राकेश दुबे राकेश दुबे
Updated Wed , 15 Apr

सार

नए श्रीलंकाई राष्ट्रपति ने भारत की अपनी पहली राजकीय यात्रा करने के बाद, चीन की यात्रा करने का विकल्प चुनकर शक्ति संतुलन का प्रयास किया था, जनवरी, 2025 में दिसानायके ने चीन की राजकीय यात्रा की, जिस दौरान दोनों पक्षों ने चीन-श्रीलंका रणनीतिक सहकारी साझेदारी को गहरा करने और साझा करने का संकल्प किया था..!!

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विस्तार

नई दिल्ली ने पिछले साल के राष्ट्रपति और संसदीय चुनावों से काफी पहले सही तरीके से अंदाजा लगा लिया था, कि  श्री लंका में राजनीतिक हवाएं किस दिशा में बह रही हैं। पीएम मोदी ने जल्द ही राष्ट्रपति बनने वाले अनुरा कुमार दिसानायके को भारत आने का निमंत्रण दिया, जहां उनका शानदार स्वागत हुआ। राष्ट्रपति चुने जाने के कुछ सप्ताह बाद दिसानायके ने भारत की राजकीय यात्रा की, बाद में वो चीन भी गए।

श्रीलंका, निस्संदेह हिंद महासागर में भारत और चीन के बीच शक्ति प्रतिद्वंद्विता से लाभान्वित हो रहा है, जहां भारत अपनी पड़ोसी प्रथम नीति के माध्यम से लाभ चाहता है, जबकि चीन अपनी ‘बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव’ के माध्यम से लाभ उठाना चाहता है।

नए श्रीलंकाई राष्ट्रपति ने भारत की अपनी पहली राजकीय यात्रा करने के बाद, चीन की यात्रा करने का विकल्प चुनकर शक्ति संतुलन का प्रयास किया था। जनवरी, 2025 में दिसानायके ने चीन की राजकीय यात्रा की, जिस दौरान दोनों पक्षों ने चीन-श्रीलंका रणनीतिक सहकारी साझेदारी को गहरा करने और साझा करने का संकल्प किया था। 

वैसे श्रीलंका की घरेलू राजनीति से भारत का तमिलनाडु सीधा प्रभावित नहीं होता, तो सहयोग का स्वरूप कुछ और होता। श्रीलंका की यात्रा के तुरंत बाद, रविवार को पीएम मोदी का रामेश्वरम पहुंचना, पंबन वर्टिकल रेल पुल का उद्घाटन, आखिर क्या सन्देश देता है? श्रीलंका के बरास्ते पीएम मोदी तमिलनाडु में व्यूह रच रहे हैं, इतनी बात तो किसी राजनीतिक विश्लेषक की समझ में आ जानी चाहिए। श्रीलंका में महो-अनुराधापुरा रेलवे सिग्नलिंग सिस्टम और नव उन्नत महो-ओमानथाई रेलवे लाइन का उद्घाटन, ऊर्जा, डिजिटलीकरण, सुरक्षा और स्वास्थ्य सेवा के साथ-साथ भारत की ऋण पुनर्गठन सहायता से संबंधित समझौते, सामपुर सौर ऊर्जा संयंत्र, दांबुला में 5,000 मीट्रिक टन तापमान और आर्द्रता नियंत्रित कोल्ड स्टोरेज सुविधा, और 5,000 धार्मिक स्थलों पर सौर पैनलों की स्थापना, त्रिंकोमाली को ऊर्जा केंद्र के रूप में विकसित करने, श्रीलंका में बिजली, पेट्रोलियम में कनेक्टिविटी स्थापित करने, चिकित्सा आदि के क्षेत्र में सहयोग, ये सब उस व्यूह रचना का हिस्सा है, जो श्रीलंका से तमिलनाडु तक डैमेज कंट्रोल की तरह है। 

प्रधानमंत्री मोदी अपने साथ कई उपहार भी लेते गए, जिनमें युद्धग्रस्त उत्तरी और पूर्वी प्रांतों में सामाजिक, आर्थिक विकास के लिए लगभग 2.4 बिलियन श्रीलंकाई रुपये के पैकेज के रूप में है। शायद, यही सहयोग भाव तमिलनाडु की राजनीतिक तपोभूमि में बीजेपी का मार्ग प्रशस्त करेगा।

श्रीलंका 2022 में भारत द्वारा प्रदान की गई भारी सहायता को नहीं भूल सकता, जब इस देश ने अपने समकालीन इतिहास में सबसे खराब आर्थिक संकट का सामना किया था। उस समय भारत ने बहु-आयामी सहायता प्रदान की, जिसमें कई क्रेडिट लाइनों और मुद्रा समर्थन के माध्यम से 4 बिलियन डॉलर का वित्तपोषण पैकेज शामिल था, ताकि इस देश को आवश्यक आयातों को बनाए रखने और अपने ऋणों पर चूक से बचने में मदद मिल सके। लेकिन, जो बात चीन-पाकिस्तान-अमेरिका और एशिया-प्रशांत के देश जानना चाहते हैं, वो है रक्षा सहयोग। दोनों शासन प्रमुखों ने अपनी मुट्ठी नहीं खोली। प्रधानमंत्री मोदी ने 16 दिसंबर, 2024 को राष्ट्रपति अनुरा कुमारा दिसानायके के साथ साझा प्रेस सम्मलेन को संबोधित एक संयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस में समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर करने के निर्णय का खुलासा किया था, किन्तु उसका ब्योरा नहीं दिया था।

हालांकि, सेवानिवृत्त एयर वाइस मार्शल संपत थुयाकोंथा, जिन्होंने रक्षा सचिव के रूप में रक्षा सहयोग पर समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए, ने कहा कि वे 2023 में रक्षा वार्ता के दौरान एक समझौता ज्ञापन के हवाले से रक्षा संबंधों को मजबूत करने पर सहमत हुए हैं। फिर भी, 2023 में रक्षा वार्ता में क्या कुछ था? उसे डिकोड करना चुनौती जैसा है। इस बार, पीएम मोदी ने जो कुछ भी रक्षा समझौते में किया, उसे लेकर चीन की भृकुटियां नहीं तनी हैं। हो सकता है, ट्रंप से तनाव की वजह से राष्ट्रपति शी भारत से नरम रुख़ बनाये रखना, वक्त का तकाज़ा समझते हों। चीन इस बार निर्विकार भाव से श्रीलंका-भारत संबंधों को देख रहा है।’

इस बार दोनों देशों के बीच रक्षा सहयोग पर सहमति-पत्र (एमओयू), 29 जुलाई, 1987 को विवादास्पद भारत-श्रीलंका शांति समझौते के लगभग 38 साल बाद आया है, जिस पर श्रीलंका के तत्कालीन राष्ट्रपति जयवर्धने और भारतीय प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने हस्ताक्षर किए थे। उस समय भी समझौते की शर्तों को मंत्रिमंडल से छिपाया गया था। । श्रीलंका, नए नेतृत्व के तहत एक नई राजनीतिक दिशा में आगे बढ़ रहा है, फिर भी, भारतीय मछुआरों द्वारा श्रीलंका के जलक्षेत्र में अवैध शिकार, और समुद्री पर्यावरण को नष्ट करना हर बार मुद्दा बनता है। ।क्या इसका कोई निर्णायक समाधान हो पाएगा?