पता नहीं देश में, बैंक घोटालेबाजों को कौन संरक्षण दे रहा है | हर कभी उजागर होते घोटाले और उसके बाद राजनीतिक आरोप श्रंखला, और अपनी जवाबदारी ठीक से न निबाहने वाले बैंक अफसरों के नाम, भारत की पहचान घोटालेबाजों के देश के रूप में बना रहा है | यह कुख्याति बदलना होगी, कुछ करना होगा देश में बड़ी तादाद में आम नागरिक बड़ी मुश्किल से रोटी- रोजी जुटा रहा है |
17/02/2022
-राकेश दुबे
थोड़े-थोड़े अन्तराल के बाद ये घोटाले उजागर होते आ रहे हैं | चौदह हजार करोड़ के पीएनबी घोटाले की कुख्याति से देश उबरा नहीं है और इस नये घोटाले ने वित्तीय क्षेत्र में सनसनी मचा दीहै । यह देश के बैंकिंग इतिहास का सबसे बड़ा घोटाला है। स्टेट बैंक की शिकायत के बाद केंद्रीय जांच ब्यूरो ने गुजरात स्थित एबीजी शिपयार्ड लिमिटेड तथा उसके निदेशकों के विरुद्ध बैंकों के एक समूह के साथ २२,८४२ करोड़ रुपये से अधिक की धोखाधड़ी करने का मामला दर्ज किया है। जैसा कि हमेशा होता है , इस मुद्दे पर देश में राजनीतिक हमले मुखर हो गये हैं, आरोप-प्रत्यारोपों का सिलसिला भी तेज दिख रहा है |
कांग्रेस आरोप लगा रही है कि कंपनी के खिलाफ कार्रवाई करने में देरी की गई। जबकि भारतीय स्टेट बैंक तथा नियंत्रक और महालेखा परीक्षक ने वर्षों पूर्व इन अनियमितताओं को उजागर कर दिया था। वहीं सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी का आरोप है कि कांग्रेस नेतृत्व वाले संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन की केंद्र सरकार के दौरान ही यह फर्म सार्वजनिक क्षेत्र के कई बैंकों से हजारों करोड़ रुपये के ऋण लेने में सफल हुई थी।
Congress should clarify its involvement in ABG Shipyard scam: BJP
— ANI Digital (@ani_digital) February 16, 2022
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केंद्र तथा गुजरात में एक के बाद एक आने वाली विभिन्न सरकारें एबीजी को इतने लंबे समय तक खुली छूट देने की जवाबदेही से खुद को बचा नहीं सकतीं, इनके खिलाफ कार्यवाही होना चाहिए । जुलाई, 2014 में गुजरात राज्य विधानसभा में प्रस्तुत की गई एक रिपोर्ट में नियंत्रक और महालेखा परीक्षक ने राज्य सरकार द्वारा संचालित गुजरात मैरीटाइम बोर्ड को एबीजी की जहाज निर्माण सुविधा के संचालन को निलंबित करने के लिये कोई कार्रवाई न करने के लिये फटकार लगाई थी। तब कंपनी को आवंटित पट्टे के किराये का भुगतान वसूलने में राज्य सरकार विफल रही थी। कंपनी को बार-बार चेताने के बावजूद अपेक्षाकृत छोटी राशि महज २.१ करोड़ रुपये का भुगतान नहीं किया गया था। दरअसल, गुजरात मैरीटाइम बोर्ड ने वर्ष २००६ में भरूच जिले में वाटरफ्रंट और निकटवर्ती जमीन का कब्जा एबीजी को दिया था।
दूसरी राजनीतिक मुख्य धारा यूपीए कार्यकाल के दौरान एबीजी को जहाजों और इंटरसेप्टर नौकाओं के निर्माण के लिये तटरक्षक बल और नौ सेना से आर्डर प्रदान किये गये थे। इतनी बड़ी सरकारी परियोजनाओं में एबीजी को मौका मिलने से उसे बाजार में बड़ी पहचान बनाने में मदद मिली, जिसके चलते कंपनी बड़े सार्वजनिक व निजी बैंकों से मोटी रकम उधार लेने में कामयाब हुई। जांच का विषय होना चाहिए कि क्या एबीजी ने बड़े अनुबंध हासिल करने के लिये बड़ी रिश्वत का सहारा लिया था? ऐसे में इन सौदों को अमलीजामा पहनाने में तत्कालीन मंत्रियों और सरकारी अधिकारियों की जवाबदेही तय करने की भी सख्त जरूरत है। जांच का अनिवार्य विषय यह भी होना चाहिए कि जब कंपनी बैंकों का पहला कर्ज नहीं चुका रही थी तो उसके बावजूद उसे नये ऋण क्यों मिलते रहे? और यह सब किसके इशारों पर हुआ ?
ऐसे हर मामले में बैंक अधिकारियों के खिलाफ भी जांच और कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए। इन मामलों में पारदर्शी जांच और ठोस कार्रवाई नहीं होती तो देश को बड़े भ्रष्टाचार से मुक्त करना तो जुमलेबाज़ी ही कही जाएगी ।
आज जरूरी है कि देश की जनता के साथ धोखाधड़ी करने वाले आर्थिक अपराधियों और इस कृत्य में मदद करने वाले अधिकारियों व नेताओं को दंडित किया जाये। धोखाधड़ी करने वाली कंपनी की संपत्ति हासिल करके बैंकों के कंसोर्टियम के कर्ज की ज्यादा से ज्यादा रिकवरी की जाये। वैसे इतना तो कम है, नागरिक हित और देश हित में इससे आगे भी कुछ और भी होना चाहिए |