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जनधन से इवेंट पर्यटन जनमन की बड़ी उलझन

सार

सरकारें जनता के नाम पर अजब-गजब काम कर रही हैं. पूरे देश में मां दुर्गा की जैसे झांकियां लगी हुई हैं, वैसे ही मध्य प्रदेश में कैबिनेट की झांकी सिंग्रामपुर में लगाई गई है. कहने के लिए तो यह कहा गया है, कि रानी दुर्गावती के सम्मान में और महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए कैबिनेट आयोजित की गई है. यह बात किस जनता की समझ में आएगी, कि करोड़ों रुपए खर्च कर कैबिनेट को इवेंट बना देने से रानी दुर्गावती का सम्मान कैसे बढ़ेगा?

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विस्तार

इससे महिलाओं का सशक्तिकरण कैसे होगा? यह पहला अवसर नहीं है, जब मध्य प्रदेश में कैबिनेट की बैठक कैपिटल के बाहर रखी गई है. पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के कार्यकाल में भी कई स्थानों पर कैबिनेट आयोजित की गई थी. वर्तमान मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव भी उसी पुराने ढर्रे पर चलते हुए कैबिनेट की बैठक राजधानी के बाहर आयोजित कर रहे हैं. सिंग्रामपुर के पहले जबलपुर में मोहन सरकार की कैबिनेट की बैठक हो चुकी है. इसके पहले शिवराज सिंह चौहान ने महाकाल के नाम पर उज्जैन में अहिल्याबाई के नाम पर ओंकारेश्वर में और पर्यटन के नाम पर हनुमंतिया में कैबिनेट की बैठक कर चुके हैं.

इन बैठकों से जनता को क्या लाभ हुआ है या इन स्थानों के विकास को क्या लाभ हुआ है यह बात तो कभी सार्वजनिक नहीं हुई. राजधानी के बाहर होने वाली हर कैबिनेट की बैठक के इवेंट के दृश्य जरूर सार्वजनिक होते हैं, जो यह बताते हैं, कि करोड़ों रुपए धन बर्बाद हुआ है. बड़ी संख्या में शासन-प्रशासन के लोग पर्यटन का आनंद लेने में सफल हुए हैं. 

कैबिनेट शासन का सबसे बड़ा शक्तिपीठ होता है. इसकी स्थापना और मर्यादा राजधानी में स्थापित की गई है. धार्मिक प्रतीकों को तो पब्लिक विभिन्न अवसरों पर झांकी के रूप में धर्म के प्रचार के लिए लगाती है. जैसे अभी नवदुर्गा के समय में पूरे देश में झांकियों की भरमार है. अगर राजधानी भोपाल की बात की जाए तो कहीं अयोध्या के राम मंदिर की झांकी लगी है, तो कहीं दूसरे धर्मस्थलों की प्रतिकृतियों की झांकी लगी हैं. 

शासन-प्रशासन की पहचान झांकियों से नहीं होती. कैबिनेट प्रस्ताव से नहीं परिणाम से परखी जाती है. बेहतर परिणाम के लिए कैबिनेट को सिस्टम मजबूत करने की ज़रूरत है. बाहर होने वाली कैबिनेट से, सुर्खियां तो मिल सकती हैं, लेकिन इसके वास्तविक परिणाम शायद ही मिल सकेंगे. जन-कल्याण तभी  सार्थक और त्वरित होगा जब सिस्टम सुधरेगा. यह जवाबदेही कैबिनेट की है. सिस्टम की खामियां और पब्लिक पर इसके दुष्प्रभाव आए दिन मीडिया की सुर्खियों में आते हैं और अपने आप ऐसे मुद्दे मर जाते हैं.

यह केवल मध्य प्रदेश का प्रश्न नहीं है, लगभग हर राज्य में ऐसे हीअजब-गजब काम हो रहे हैं. ऐसा लगता है कि सरकारों के पास जन-कल्याण के वास्तविक काम और सिस्टम को मजबूत बनाने के लिए ना कोई विजन है ना कोई विचार है. सारा प्रयास यह दिखाई पड़ता है, कि किसी न किसी रूप में अपने समर्थक मतदाता समूहों को जोड़ के रखा जा सके. भले ही इसके लिए कैबिनेट की मर्यादा को ही, क्यों नहीं खंडित करना पड़े. सरकारें लोगों को खातों में नकद पैसे देकर अपनी जवाबदेही की इति श्री समझने लगी हैं, जो दीर्घकाल में सबके लिए नुक़सानदायक साबित होगी. 

देश की कोई भी सरकार ऐसी नहीं है, जो कर्ज में डूबी ना हो. कई राज्यों में तो कर्जों की यह हालत है, कि राज्यों के बजट का बड़ा हिस्सा कर्जों के भुगतान में चला जाता है. जन कल्याण के लिए धनराशि उपलब्ध नहीं हो पाती. शायद इसी कारण इस तरह के प्रसंग रचे जाते हैं, कि जिससे जनता को लगे कि सरकार सक्रिय है. सरकार कुछ कर रही है. इस तरह के इवेंट पर्यटन से सरकारों की उपस्थिति जनता के बीच में, सरकारों की उपयोगिता ही लगातार सवालों के घेरे में खड़ी हो रही है. 

सरकारों के पास पैसा ना होने के बाद भी मतदाता समूहों के खातों में नगद राशि बांटना एक फैशन बन गया है. यह किसी एक दल की राजनीति नहीं है,  बल्कि सभी राजनीतिक दलों की सरकारें ऐसा ही काम कर रही हैं. आर्थिक संकट के कारण सरकारों के पतन के उदाहरण मौजूद हैं. इसके बावजूद भी कोई भी सरकार सबक लेने को तैयार नहीं है. यहां तक कि श्रीलंका और बांग्लादेश में वहां के सत्ताधारी शासको को देश छोड़ना पड़ा. इन देशों के आर्थिक हालात चिंता का सबब बने हुए हैं, लेकिन इसके बावजूद भारत के विभिन्न राज्यों में सियासी हालात कर्जा लेकर घी पीने के बने हुए हैं. 

जब किसी भी सरकार के इतिहास को याद किया जाएगा, तो यह कभी याद नहीं रखा जाएगा, कि कैबिनेट की बैठक कहां हुई थी. यदि कैबिनेट ने ऐसा कोई काम किया है, जिससे सिस्टम में कोई बदलाव आया है. सिस्टम मजबूत हुआ है. जन समस्याओं का समाधान हुआ है, तो वही इतिहास में दर्ज होगा और उसी की सराहना होगी. 

यह किसी एक मुख्यमंत्री की आलोचना नहीं है, बल्कि सिस्टम में बढ़ रही अराजकता, एकतरफा सोच और  ज़िद का परिणाम है, कि ऐसे-ऐसे काम हो रहे हैं, जिससे तात्कालिक सियासी लाभ तो मिल सकता है, लेकिन इसके दीर्घकालिक प्रभाव राज्य और राष्ट्र को नुकसान ही पहुंचाएंगे. सियासत में हमेशा पाखंड होता था, लेकिन अब तो पाखंड का प्रतिशत इतना बढ़ गया है, कि पूरी सियासत ही पाखंड लगने लगी है. अभी दो राज्यों जम्मू- कश्मीर और हरियाणा में चुनाव हो रहे हैं. ऐसे-ऐसे वायदे सियासी दलों द्वारा किए जा रहे हैं, जो कभी पूरे नहीं हो सकते. वहां की सरकारों के सामने आर्थिक संकट है, फिर भी सत्ता पाने के लिए वायदे किए जा रहे हैं. 

मध्य प्रदेश की जनता कितनी जागरुक है,वह इसी बात से साबित होता है, कि पिछले चुनाव में कर्ज माफी और ना मालूम कितनी घोषणाएं और वायदे किए गए थे, लेकिन जनता ने बेहतर सिस्टम के लिए जनादेश दिया. सियासत या तो पब्लिक को अज्ञानी समझती हैं या अपने आप को ज्यादा ज्ञानवान समझती है. ऐसा कहा जाता है, कि राजनीति लोगों की बुद्धि की कमी पर जीती है. लेकिन लोगों का विवेक सत्ता को उखाड़ने में भी देर नहीं करता. लेकिन फिर भी मतदाताओं की भूलने की नैसर्गिक क्षमता का पूरा लाभ सियासत उठाती है.

मध्य प्रदेश में नए मुख्य सचिव अनुराग जैन ने कार्यभार संभाला है. जैन भारत सरकार में ऐसे विभाग के सचिव थे, जिसके कामकाज की पूरे देश में सराहना हो रही है. राष्ट्रीय राजमार्गों के मामले में भारत ने ऐतिहासिक प्रगति की है. अनुराग जैन इसी विभाग में सचिव रहे हैं. उनके मुख्य सचिव के रूप में पदस्थ होने में मुख्यमंत्री के साथ ही केंद्र के बीजेपी के बिग बॉसेस की भी भूमिका दिखाई पड़ रही है.

अनुराग जैन प्रधानमंत्री सचिवालय में भी लंबे समय तक काम कर चुके हैं. उनका प्रशासनिक अनुभव बहुत लंबा है. उनकी छवि भी बेदाग़ और अच्छे अफसर की रही है. सिंग्रामपुर की कैबिनेट बैठक उनकी पहली कैबिनेट बैठक है. कैबिनेट की मर्यादा को बनाए रखना उनकी सबसे बड़ी चुनौती है.कैबिनेट की मर्यादा का आशय सिस्टम की मजबूती और जन समस्याओं के त्वरित निराकरण में भूमिका से आंका जाता है. 

मध्य प्रदेश में पिछले लंबे समय से मुख्य सचिव के कार्यालय पर सवाल खडे हुए हैं. कुछ ऐसे अधिकारियों को मुख्य सचिव के रूप में बना दिया गया था जिन पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे थे. सिस्टम में जवाबदेही की कमी लगातार महसूस की जा रही है. हर रोज़ समाचार पत्रों और दूसरे मीडिया में जनहित से जुड़े ऐसे मामले सामने आते हैं, जिसमें लगता है, कि सरकार आंख मूंदे बैठी हुई है.

राजधानी भोपाल में दूसरे रिंग रोड के लिए कई महीने पहले निर्णय लिए गए थे, लेकिन कुछ ताकतवर लोगों की ज़मीन आ जाने के कारण प्रोजेक्ट अभी ठंडे बस्ते में चला गया है, इसके लिए क्या रिंग रोड के क्षेत्र में कैबिनेट की बैठक होगी तभी कोई निर्णय हो सकेगा. एक और मामला प्रकाश में आया है, कि भोपाल के मेट्रो प्रोजेक्ट में करोड़ों रुपए देने के बाद काम करने वाले कंसलटेंट ने जो भी परफॉरमेंस दी वह प्रोजेक्ट के लिए कहीं ना कहीं नुक़सानदेह साबित हुआ. 

कैबिनेट ऐसे सिस्टम को सुधारने और स्थापित करने के लिए सजग और सक्रिय रहेगी तो, कैबिनेट को इवेंट पर्यटन बनाने की जरूरत नहीं पड़ेगी. और सत्ताधीशों को भी जन-समर्थन में भी कोई समस्या नहीं आएगी. सवाल सही नीयत और सही सिस्टम का है. मुख्यमंत्री डॉ. मोहन याहव प्रैक्टिकल और ओरिजिनल व्यक्तित्व रखते हैं. पुरानी शैली और पुरानी बातों को ही अपनाने की कोई आवश्यकता नहीं है. किसी भी राजनेता को अपनी इमेज स्थापित करने के लिए अपनी ओरिजिनल शैली ही स्थापित करने की आवश्यकता होती है. 

मध्य प्रदेश को नए नेतृत्व से यही अपेक्षा है. सरकार में कई काम और फैसले सजावटी और इवेंट के लिए होते हैं और कई ज़रूरी,  कमिटेड,  बुनियादी बदलाव और सिस्टम में सुधार के लिए होते हैं. कोशिश यही होना चाहिए, कि ज्यादा फैसले बुनियादी बदलाव और सिस्टम में सुधार के लिए हों. इसका सीधा लाभ पब्लिक को मिले. अगर पब्लिक को लाभ मिलेगा तो सत्ताधीशों को उसका लाभ मिलना सुनिश्चित होता है.

सियासत तो जैसे अंधकार की ओर बढ़ती जा रही है. आए दिन ऐसा दिखाई पड़ता है, कि कोई ना कोई दल किसी न किसी राजनेता के खिलाफ़ मुकदमा दर्ज करवाने पहुंचता है. पुलिस थाने अपराधियों के खिलाफ़ कार्यवाही करेंगे या राजनीतिक पाखंड के अपराध के खिलाफ़ जांच करेंगे. शिकायत करने वाला भी यह जानता है, कि ना FIR होगी और ना कोई कार्रवाई होगी, लेकिन फिर भी सुर्खियों के लिए सब कुछ करना पड़ता है.

सुर्खियां सियासत के लिए ज़रूरी हो सकती हैं, लेकिन सुर्ख़ियों से ना जनता का और ना हीं सियासत का पेट भरता है. कैबिनेट शक्तिपीठ है. उसकी गरिमा और मर्यादा के साथ  शक्तिपीठ से ही चलाया जाना चाहिए. उस शक्तिपीठ में इतनी ताकत है, कि इससे मध्य प्रदेश के कोने-कोने में सिस्टम सुधर जाएगा और फिर सत्ताधीशों को सुर्ख़ियों के लिए इवेंट पर्यटन की ज़रूरत नहीं पड़ेगी.