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मोदी मंत्र से बदलता भाजपा का पॉलिटिकल डीएनए

सार

राष्ट्रीय चुनाव में उत्तर भारत में कांग्रेस को शिकस्त देने वाली भारतीय जनता पार्टी अगले लोकसभा चुनाव में क्षेत्रीय छत्रपों के लिए खतरा बन सकती है। राष्ट्रपति चुनाव में भाजपा और मोदी विरोधी क्षेत्रीय दलों में बिखराव विकराल रूप ले चुका है। गैर भाजपावाद के नाम पर विपक्षी एकजुटता अब दूर की कौड़ी लगने लगी है..!

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विस्तार

पिछले लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने स्पष्ट बहुमत से सरकार बनाने में सफलता हासिल की थी लेकिन देश के केवल 37.36 प्रतिशत मतदाताओं का ही समर्थन हासिल कर सकी थी। इसका मतलब है देश के एक तिहाई मतदाता बीजेपी के साथ थे तो दो तिहाई मतदाताओं ने बीजेपी विरोधी दलों में अपना भरोसा जताया था। इसी चुनावी गणित को देखते हुए मोदी विरोधी दल विपक्षी एकता को बीजेपी को हराने का अचूक अस्त्र मानते हैं।  

अक्सर ऐसा कहा जाता है कि मोदी और बीजेपी विरोधी सभी दल अगर एक हो जाएं तो बीजेपी को सत्ता से उतारना मुश्किल नहीं है। विपक्षी एकता की कोशिशें राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के चुनाव में न केवल धराशाई हो गई हैं बल्कि क्षेत्रीय दलों में टकराव भी शुरू हो गया है। भ्रष्टाचार के आरोपों में घिरने के कारण विपक्षी एकता कमजोर पड़ी है। कांग्रेस के कमजोर होने के साथ ही कई राज्यों में क्षेत्रीय छत्रप मजबूत हुए।

कांग्रेस और क्षेत्रीय दल जहां भाजपा विरोध पर फोकस कर रहे हैं वहीं भाजपा अपने पॉलिटिकल डीएनए में लगातार बदलाव करते हुए हाशिये के सामाजिक समूहों को जोड़ने में सफल हो रही है। उत्तर भारत में तो भाजपा का विजय रथ काफी आगे पहुंच गया है। अगले लोकसभा चुनाव में दक्षिण भारत सहित क्षेत्रीय छत्रपों के इलाकों में बीजेपी कदम बढ़ा सकती है। पिछले चुनाव में जितनी लोकसभा सीटें बीजेपी ने हारी थीं। उन सभी पर फोकस किया जा रहा है। 

प्रधानमंत्री ने पिछले दिनों बीजेपी शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों की बैठक में पार्टी के विस्तार अभियान की रणनीति निर्धारित की है। ब्राह्मण और व्यापारी वर्ग की हिंदुत्व वादी मानी जाने वाली बीजेपी ने आज शोषित-पीड़ित और वंचित समाज में अपना स्थान बना लिया है। देश के विभिन्न राज्यों में अलग-अलग रणनीति के साथ बीजेपी आगे बढ़ रही है। 

कई राज्यों में अभी भी द्विदलीय स्थिति है। मुख्य मुकाबला कांग्रेस और भाजपा के बीच में ही है। गुजरात, हिमाचल प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, उत्तराखंड, कर्नाटक और तो और मणिपुर और त्रिपुरा में भी मुख्य रूप से बीजेपी और कांग्रेस के बीच में ही सत्ता बदलती रहती है। मोदी के नेतृत्व में 2014 के बाद देश में बीजेपी के उभरने के बाद राष्ट्रीय चुनाव के संदर्भ में यह स्थितियां बदल गई हैं। अब इन राज्यों में लोकसभा की अधिकांश सीटें बीजेपी के पास हैं और उसका वोट प्रतिशत भी अप्रत्याशित ढंग से बढ़ा है। 

जिन राज्यों में कांग्रेस तेजी से कमजोर हुई है, वहां अब कांग्रेस के साथ राष्ट्रीय स्तर पर किसी गठबंधन की संभावना नहीं दिखती है। आम आदमी पार्टी के उभरने के साथ दिल्ली और पंजाब में कांग्रेस को सरकार गंवाना पड़ी। अब कई अन्य राज्यों में भी कांग्रेस के जनाधार को आप अपनी ओर खींच रही है। 

कई राज्यों में मुकाबला भाजपा और क्षेत्रीय राजनीतिक दलों के बीच है। यह वह राज्य हैं, जहां बीजेपी, कांग्रेस या किसी अन्य दल के स्थान पर प्रमुख विपक्ष के रूप में स्थापित हुई है। इन राज्यों में आंध्रप्रदेश, तेलंगाना, बंगाल और उड़ीसा शामिल हैं। उड़ीसा में भाजपा पिछले लोकसभा चुनाव मे 21.5% वोट शेयर से बढ़कर 38.4% वोट शेयर तक पहुंची है। बीजेपी यहां 8 लोकसभा सीटें जीतने में सफल रही है। राज्य के चुनाव में बीजू जनता दल ने भारी बहुमत प्राप्त किया था। 

इसी प्रकार की स्थिति बंगाल में भी देखी जा सकती है। विधानसभा चुनाव में टीएमसी को बहुमत मिला लेकिन लोकसभा चुनाव में भाजपा ने अच्छी खासी सीटें हासिल की थीं। तेलंगाना में बीजेपी कांग्रेस को छोड़कर मुख्य विपक्ष की भूमिका में पहुंच गई है। इसके साथ ही भाजपा राज्य में 4 लोकसभा सीटें जीतने में सफल रही। हैदराबाद निकाय चुनाव में बीजेपी दूसरे सबसे बड़े दल के रूप में जा पहुंची है।

अब इन राज्यों में क्षेत्रीय दल बीजेपी से खतरा महसूस कर रहे हैं। उन्हें अपना जनाधार बचाने के लिए बीजेपी से जूझना पड़ रहा है। देश में कई राज्य ऐसे हैं जहां भाजपा और कांग्रेस दोनों की स्थिति कमजोर है। वहां राजनीति क्षेत्रीय दलों तक सीमित है। इन राज्यों में तमिलनाडु और केरल को माना जा सकता है। यहां भाजपा मुख्य दल के रूप में नहीं है। यहां लेफ्ट और कांग्रेस रीजनल पार्टी के रूप में हैं। बीजेपी इन राज्यों में अपना वोट प्रतिशत बढ़ाने में जुटी हुई है। तमिलनाडु में एआईडीएमके के साथ जुड़कर बीजेपी स्थानीय स्तर पर अपने समीकरण साधने की दिशा में काम कर रही है। 
 
देश के कई राज्यों में आज राजनीतिक हालात भाजपा के पूरी तरह से पक्ष में हैं। मल्टीपोलर मुकाबले में भाजपा कई राज्यों में डोमिनेंट करने की स्थिति में है। उत्तर प्रदेश, असम और नार्थ ईस्ट के राज्यों के अलावा झारखंड और महाराष्ट्र को ऐसे राज्यों के रूप में माना जा सकता है।  

बीजेपी के कारण इन राज्यों में क्षेत्रीय दलों को अपने जनाधार बचाने में मुश्किल हो रही है। देश के राजनीतिक हालात को देखते हुए ऐसा माना जा रहा है कि बीजेपी की जो हिंदुत्ववादी विचारधारा पार्टी के विस्तार में सबसे बड़ी बाधा थी, वही विचारधारा आज पार्टी के विस्तार को नया आयाम दे रही है। यहां तक कि दक्षिण भारत में भी बीजेपी की हिंदुत्ववादी विचारधारा अब उसके विस्तार में बाधक नहीं रही है। जिन राज्यों में बीजेपी मुख्य विपक्ष की भूमिका में है, वहां सरकार विरोधी राजनीति को इस तरीके से अंजाम दिया जा रहा है कि जनमानस में पार्टी का जनाधार मजबूत होता जा रहा है। तेलंगाना में ऐसी स्थिति दिख रही है। यहाँ अगले चुनाव में भाजपा मजबूत स्थिति में पहुंच सकती है। 

कांग्रेस और क्षेत्रीय दलों का संगठनात्मक ढांचा भी कमजोर हुआ है। इसके विपरीत बीजेपी ने अपने संगठनात्मक ढांचे को मजबूत करने पर अधिक ध्यान दिया है। हिंदुत्ववादी विचारधारा अब हाशिये के सामाजिक समूहों को साथ जोड़ने में सफल हो रही है। धर्मनिरपेक्षता के नाम पर विपक्षी राजनीति लगातार जहां कमजोर हुई है वहीं हिंदुत्ववादी विचारधारा को अधिक महत्व मिल रहा है।

बीजेपी जो मुस्लिम विरोधी पार्टी के रूप में देखी जाती थी, अब मुस्लिम समाज में भी अपनी पैठ जमा रही है। इस समाज के शोषित और वंचित समूह को अपने साथ जोड़ने की कोशिश भाजपा द्वारा की जा रही है। पसमांदा मुसलमानों को जोड़ने के लिए स्नेह यात्रा इसी लक्ष्य को पूरा करने के लिए की जा रही है। मध्यप्रदेश में हाल ही में संपन्न हुए नगरीय निकाय चुनाव में भाजपा के टिकट पर 92 मुस्लिम पार्षदों ने विजय प्राप्त की है। 

भाजपा के मजबूत नेतृत्व और बिखरे विपक्ष से बन रहे राजनीतिक हालात लोकसभा चुनाव में क्षेत्रीय दलों को और पीछे धकेल सकते हैं। बीजेपी उन राज्यों में जहां कांग्रेस के साथ उसका सीधा मुकाबला है, कांग्रेस को काफी पीछे छोड़ चुकी है। अब क्षेत्रीय दलों को अगले लोकसभा चुनाव में बीजेपी की राजनीति से मुकाबले के लिए तैयार होना पड़ेगा। थोड़ी सी भी चूक राष्ट्रीय चुनावों के संदर्भ में क्षेत्रीय दलों को महंगी पड़ सकती है।