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देशव्यापी समस्या है “बाल तस्करी”

राकेश दुबे राकेश दुबे
Updated Fri , 16 Sep

सार

बाल तस्करी को लेकर महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने 1 जनवरी 2018 से 30 जून 2023 तक का जो डॉटा लोकसभा में रखा है, वह चौंकाने वाला भी है और चिंतित करने वाला भी है..!!

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विस्तार

आज का ‘प्रतिदिन’ सारे देश में व्याप्त समस्या “बाल तस्करी” को लेकर है देश के लगभग सभी राज्यों में यह घट रहा है। जैसे यह खबर हिमाचल से है, यहाँ के जिला कांगड़ा की सराह पंचायत में शुक्रवार, 23 अगस्त को दो लड़कियां व एक लडक़ा जब घर से सराह स्कूल को जा रहे थे तो मोटरसाइकिल पर सवार दो नकाबपोश, जिन्होंने बाइक पर कंबल बेचने के लिए रखे हुए थे, ने बच्चों को टॉफियां-चॉकलेट लेने का लालच दिया, लेकिन बच्चों ने टॉफी-चॉकलेट लेने से इनकार कर दिया और शोर मचाया, जिससे वे संदिग्ध नकाबपोश व्यक्ति वहां से रफूचक्कर हो गए, लेकिन इलाके में ऐसे व्यक्तियों की गतिविधियों से अभिभावक सकते में हैं। उधर ऊना शहर के वार्ड नंबर दस में तीन नाबालिग बच्चे अचानक घर से लापता हो गए हैं। तीनों बच्चे घर से ट्यूशन पर जाने के लिए निकले थे, लेकिन ट्यूशन सेंटर पर नहीं पहुंंचे। पीडि़त माता-पिता ने पुलिस के पास शिकायत दर्ज करवाई है। 

ऐसी कहानियां अमूमन मीडिया में भारत के प्रत्येक राज्य से पढ़ने-देखने को मिलती रहती हैं। बाल तस्करी को लेकर महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने 1 जनवरी 2018 से 30 जून 2023 तक का जो डॉटा लोकसभा में रखा है, वह चौंकाने वाला भी है और चिंतित करने वाला भी है। पिछले पांच सालों में देश भर में 2 लाख 75 हजार से ज्यादा बच्चे गायब हुए हैं। गायब हुए बच्चों में 2 लाख 12 हजार लड़कियां हैं। 

रिपोर्ट के मुताबिक इनमें से 2 लाख 40 हजार बच्चों को ढूंढ निकाला गया, इसमें 173786 लड़कियां हैं। रिपोर्ट के अनुसार सात राज्यों मध्य प्रदेश, पश्चिम बंगाल, ओडिशा, कर्नाटक, गुजरात, दिल्ली और छत्तीसगढ़ में सबसे ज्यादा बच्चे गायब होते हैं। रिपोर्ट के अनुसार गायब हुए बच्चों में से ज्यादातर बंधुआ मजदूरी या फिर व्यावसायिक यौन शोषण के धंधे में लगा दिए जाते हैं। बचपन बचाओ आंदोलन की रिपोर्ट की मानें तो देश भर में हर साल करीब 96000 बच्चे लापता हो रहे हैं। 

इन बच्चों में से 41546 का कभी पता नहीं चलता है। बीबीए के संस्थापक नोबेल पुरस्कार से सम्मानित कैलाश सत्यार्थी इस बारे में कहते हैं, ‘इन लापता बच्चों में से ज्यादातर मामलों को तो पुलिस मानती ही नहीं, उनके मामले दर्ज करना और उनकी जांच करना तो दूर की बात है।’ बीबीए ने एक टोल फ्री शिकायत नंबर 18001027222 शुरू किया है जहां पर लापता बच्चों को लेकर शिकायत दर्ज करवाई जा सकती है। 

बच्चों के लिए काम करने वाले एक अन्य गैर सरकारी संगठन सीआरवाई (क्राई) की रिपोर्ट के मुताबिक लगातार गिर रहे लिंगानुपात के चलते हरियाणा और राजस्थान जैसे राज्यों में लड़कियों को अगवा कर शादी के लिए बेचने का भी धंधा भी चल रहा है। चाइल्ड ट्रैफिकिंग के शिकार ज्यादातर बच्चे शहरी घरों में घरेलू नौकर का काम करते हैं। बाल तस्करी की रोकथाम, बाल श्रम उन्मूलन आदि के लिए प्रयासरत संस्था बचपन बचाओ आंदोलन अब तक 80 हजार से अधिक मासूमों को बाल तस्करी से बचा चुका है। 

आज चाइल्ड ट्रैफिकिंग पर विशेष लगाम लगाने की जरूरत है। बच्चों को मजदूरी के लिए इस्तेमाल किया जाता है क्योंकि बच्चे सस्ते मजदूर साबित होते हैं जिन्हें डरा-धमकाकर ज्यादा से ज्यादा काम लिया जा सकता है। बच्चों का इस्तेमाल शारीरिक शोषण अथवा गलत काम के लिए भी किया जाता है। बाल विवाह भी इसका एक बहुत बड़ा कारण है। बच्चों के बॉडी पार्ट बेचे जाते हैं। बचपन बचाओ आंदोलन और कैपजैमिनी ने एक ऐप्लिकेशन ‘रीयूनाइट’ बनाया है जिसे गूगल प्ले स्टोर और ऐपल स्टोर से डाउनलोड किया जा सकता है। कैलाश सत्यार्थी कहते भी हैं कि, ‘देश में हर आठ मिनट में एक बच्चा लापता होता है। बाल तस्करी के धंधे में संलिप्त लोग उन्हें मजूदरी, चोरी करने अथवा सडक़ों पर भीख मांगने के काम में धकेल देते हैं।’ महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने गुमशुदा बच्चों को ट्रैक करने के लिए ‘ट्रैकचाइल्ड’ और ‘खोया-पाया’ वेब पोर्टल विकसित किए हैं।

ट्रैकचाइल्ड पोर्टल गृह मंत्रालय, रेल मंत्रालय, राज्य सरकारों/संघ राज्य क्षेत्र प्रशासनों, बाल कल्याण समितियों, किशोर न्याय बोर्डों, राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण आदि सहित विभिन्न हितधारकों के सहयोग से कार्यान्वित किया जा रहा है और ‘खोया-पाया’ को ट्रैकचाइल्ड पोर्टल पर नागरिक कॉर्नर के रूप में एकीकृत किया गया है। 

अभिभावकों को चाहिए कि वे अपने बच्चों को समझाएं कि घर से बाहर जाने या घर में भी किसी अजनबी के आने पर उनसे कोई भी चीज नहीं लेनी है। अगर वो उनके अभिभावकों को जानने की बात भी कहते हैं तो भी बच्चे को उनके साथ जाने से इंकार कर देना है। बच्चे को पुलिस स्टेशन या पंचायत/वार्ड जनप्रतिनिधियों के बारे में भी बताकर रखें। 

बच्चों को बताएं कि गुम होने पर उन्हें कब क्या एक्शन लेना है, कहां जाना है और कैसे अपने आपको सुरक्षित करना है।अगर कोई अजनबी उसे परेशान करता है तो उसे चिल्लाना चाहिए। अध्यापकों द्वारा भी स्कूलों में प्रात:कालीन सभा में विद्यार्थियों को समय-समय पर बाजार एवं घर आते-जाते समय अजनबी व्यक्तियों से लिफ्ट अथवा खाने-पीने की सामग्री नहीं लेने की ताकीद की जानी चाहिए। किशोरों को सही दिशा और जीवन जीने का कौशल समझाया जाना चाहिए। 

अभिभावकों को बाल्यावस्था से ही अपने बच्चों को अध्यात्म से जोड़ते हुए उनका ध्यान योग की तरफ उन्मुख करने से विशेष रूप से फायदा मिल सकता है। इससे वे परीक्षा के दौरान होने वाले मानसिक तनाव का मुकाबला भी कर पाएंगे। शारीरिक एवं मानसिक फिटनेस के साथ-साथ उन्हें संतुलित आहार लेना सिखाना भी जरूरी है। इस मामले में पंचायतों की भूमिका बढ़ जाती है और उन्हें फेरी वालों एवं संदिग्ध बाहरी लोगों के आवागमन पर नजर रखनी होगी, पूछताछ करनी होगी। जागरूकता एवं अतिरिक्त सतर्कता से ही हम हमारे बच्चों की सुरक्षा को सुनिश्चित बना सकते हैं।