“शहर के ‘टिकाऊपन’ और ‘स्थायित्व’ के विचार को शहरी योजना के केंद्र में बनाए रखना चाहिए..!!
किसी ने ठीक ही कहा है “शहर का निर्माण और उसका डिजाइन तभी सार्थक होता है जब वह लोगों के जीवन की गुणवत्ता बढ़ाते हुए इसके साथ संवाद, उपयोग और आवागमन के तरीके बेहतर करता है और जिससे शहर रहने योग्य, टिकाऊ और बेहतर सुशासन वाला बनता है। “शहर के ‘टिकाऊपन’ और ‘स्थायित्व’ के विचार को शहरी योजना के केंद्र में बनाए रखना चाहिए।
वस्तुतः शहरों को अक्सर आर्थिक विकास के केंद्र के रूप में देखा जाना चाहिए इस दृष्टिकोण से भूमि और प्राकृतिक संसाधनों के वस्तुकरण या उसे उत्पाद में तब्दील करने की ओर बढ़ता है जिसके पर्यावरण के लिहाज से महत्त्वपूर्ण परिणाम होते हैं। इस अतिरिक्त विकास की लागत की प्रतिक्रिया के लिहाज से शहरों को टिकाऊ तरीके से विकसित करने की उम्मीदें बढ़ रही हैं ताकि दीर्घकालिक समृद्धि सुनिश्चित की जा सके। इस समग्र भावना से भोपाल में मेरे एक वस्तुविद मित्र ने एक योजना तैयार की, सरकारों को उसे समझना चाहिए।
वस्तुतः टिकाऊपन तब प्रभावी होता है जब रणनीतियां कुछ इस मकसद से बनाई जाती हैं कि लोगों की जरूरतें पूरी करते हुए शहरों का निर्माण और इसका संरक्षण किया जाए। टिकाऊपन और स्थायित्व के लिए, योजनाबद्ध शहरी विकास प्रमुख निर्धारक है जिससे लेन-देन और बदलाव वाली दोनों गतिविधियां सुनिश्चित होती हैं।
इसमें शहरों का सुचारु संचालन करने के लिए रोजाना के जरूरी कामों का प्रबंधन शामिल है और इसमें ऐसे निर्णायक कदम भी शामिल हैं जो भविष्य में इनके टिकाऊपन को सुनिश्चित करने के साथ ही परिस्थितियों के अनुकूल सामंजस्य को बढ़ावा देते हैं। यह तालमेल शहरों को अपने निवासियों की बदलती जरूरतों को पूरा करने और भविष्य के लिए संसाधनों की सुरक्षा करने में मदद कर सकता है।
हाल के वक्त में शहरों को तकनीक और इंटरनेट ऑफ थिंग्स (आईओटी) के लिहाज से बड़े बदलावों का अनुभव करना पड़ रहा है। ‘डेटा साइंस’ के चलते शहर अपने परिचालन में सुधार करने और निर्णय लेने के लिए डेटा का उपयोग कर पाते हैं।
बहुत सारी सूचनाएं मिलने से कई तरह का नजरिया बनता है और इसमें कई अस्पष्ट अंर्तसंबंध साबित करने की क्षमता भी होती है जिससे शहर के कामकाज में सुधार आ सकता है। इस डेटा की पूरी क्षमता का उपयोग करने के लिए, विशेष रूप से मशीन लर्निंग (एमएल) मॉडल का इस्तेमाल शहरों की जटिल गतिशीलता को दर्शाते हुए एक विश्लेषणात्मक ढांचा बनाने के लिए किया जा सकता है।
उदाहरण के तौर पर, मशीन लर्निंग एल्गोरिदम की मदद से यातायात के पैटर्न, अपशिष्ट प्रबंधन या पानी की मांग का अनुमान लगाया जा सकता है जिसके चलते संसाधनों को पर्याप्त रूप से आवंटन करने और सेवाओं का कुशलता से प्रबंधन करने की अनुमति मिलेगी। आवास, जल, स्वच्छता-जल निकासी, बुनियादी ढांचे और अन्य सुविधाओं की बेहतर सेवाएं देने के लिए शहरी प्रशासन ही एक ऐसी ताकत है जो स्थानीय स्तर पर सामूहिक कार्रवाई सुनिश्चित करता है।
विकेंद्रीकरण स्थानीय सरकारों को सशक्त बनाने का एक महत्त्वपूर्ण कदम है जिसमें विभिन्न कार्यों, वित्त, संसाधनों, ढांचा और तंत्र का हस्तांतरण शामिल होता है। उदाहरण के तौर पर विकेंद्रीकृत शासन, इथियोपिया, कंबोडिया, युगांडा और दक्षिण अफ्रीका जैसे विभिन्न विकासशील देशों में नीति निर्माण के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण रहा है।
शहरी शासन की चुनौतियों को समझने में यह तथ्य में निहित है कि नगरपालिका की फंडिंग पर्याप्त नहीं है। स्थानीय सरकारों को शक्तियों के हस्तांतरण के बाद भी, सेवा वितरण और लोगों के जीवन की गुणवत्ता में सुधार के लिए संसाधन तैयार करने में यह असमर्थ है।
अधिकांश शहरी स्थानीय निकायों (यूएलबी) के राजस्व पोर्टफोलियो के भीतर संसाधन का प्राथमिक स्रोत संपत्ति कर है जो देश में नगरपालिका कर राजस्व का लगभग 60 प्रतिशत है।
हालांकि, यह शहरी क्षेत्रों में आवश्यक सभी सेवाओं की फंडिंग के लिए पर्याप्त नहीं हैं। नतीजतन, स्थानीय निकाय अपने खर्च को पूरा करने के लिए मुख्य रूप से केंद्र और राज्य सरकारों की सब्सिडी पर निर्भर रहते हैं। बाहरी संसाधनों पर यह निर्भरता, शहरी विकास परियोजनाओं की योजना और क्रियान्वयन में महत्त्वपूर्ण चुनौतियां पैदा करती है।
शहर के बाकी हिस्सों की तरह, शहर के इन बाहरी क्षेत्रों को भी पर्यावरणीय, सामाजिक और पारिस्थितिकी मुद्दों का सामना करना पड़ता है क्योंकि वे शहरी विस्तार के प्रभाव का भार सहने में सक्षम होते हैं। ऐसे में ये शहर के कचरे का निपटान स्थल बन जाते हैं साथ ही शहरी क्षेत्रों की विस्थापित आबादी या फिर वैसी आबादी जो शहर के भीतर रहने का खर्च वहन नहीं कर सकती है, यह क्षेत्र उनके लिए आवास देने में सक्षम होता है।
ये क्षेत्र ‘बफर’ क्षेत्र के रूप में कार्य करते हैं, जो शहर के कूड़े को अवशोषित करता है और ग्रामीण तथा शहरी गतिशीलता का एक जटिल मिश्रण दोनों तरफ से तनाव का सामना करता है। इस संदर्भ में, एक मजबूत शासन ढांचा तैयार करना महत्त्वपूर्ण हो जाता है जो लगातार बदलते और विकसित हो रहे पर्यावरण के अनुकूल हो सके और साथ ही इन क्षेत्रों में सतत शहरी विकास को बढ़ावा दे सके।
शहरों की समग्र क्षमता को मजबूत बनाने और निर्माण करने के लिए शासन, रहने का बेहतर माहौल और स्थायित्व के सावधानीपूर्वक संतुलन की आवश्यकता होती है जो मिलकर शहरी विकास और रहने में सुगमता का महत्त्वपूर्ण स्तंभ बनाते हैं। जब इन सभी को शहरी विकास के क्रियान्वयन में शामिल किया जाता है तब वे तत्काल जरूरतों को पूरा करते हुए लंबी अवधि में शहरों के आर्थिक, सामाजिक और पर्यावरण के लिहाज से वृद्धि करने की नींव रखते हैं। शहरों को सिर्फ काम करने की जगह ही नहीं रहना चाहिए, बल्कि ऐसी जगहें बननी चाहिए जहां लोग आगे बढ़ सकें और अपनी जिंदगी को बेहतर बना सकें।