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सीएम हाउस बने, आधुनिक ‘राजा निवास’ 

सार

दिल्ली चुनाव में बीजेपी और आम आदमी पार्टी ‘शीश महल’ और ‘राजमहल’ के आरोपों में उलझी है. सीएम निवासऔर पीएम निवास को शीश महल और राजमहल कहना ही लोकतंत्र की भावनाओं के विरुद्ध है. महल राजाओं के होते हैं. लोक सेवकों के तो निवास होते हैं. यह भी जनता के लिए खुले होते हैं..!!

janmat

विस्तार

    अरविंद केजरीवाल के शीश महल को खोल, पब्लिक को दिखाने की मांग हो रही है. जब केजरीवाल इसमें रहते थे, तभी अगर इसे जनता के लिए खोल दिया गया होता तो ना फिर आज आंदोलन की जरूरत पड़ती और ना ही यह चुनावी मुद्दा ही बनता.

    मापदंड बनाने और फिर उन्हीं को तोड़ने पर सवाल उठते हैं. केजरीवाल का शीश महल इसीलिए भ्रष्टाचार के स्मारक के रूप में प्रसिद्ध हो रहा है, क्योंकि उन्होंने कट्टर ईमानदारी और सादगी भरे राजनीतिक जीवन का मापदंड स्वयं निर्धारित किया था.

    दिल्ली के सीएम हाउस को शीश महल, बीजेपी और कांग्रेस दोनों बता रही हैं. सीएम हाउस में विलासिता पूर्ण कार्यों और उन में भ्रष्टाचार का मुद्दा सबसे पहले कांग्रेस ने ही उठाया था. अब बीजेपी इसे आप के भ्रष्टाचार के स्मारक के रूप में चुनाव में पेश कर रही है. दोनों राष्ट्रीय दल संसदीय व्यवस्था के सिरमौर हैं. बीजेपी की अधिक राज्यों में तो कांग्रेस की भी तीन राज्यों में सरकारें चल रही हैं. दोनों दलों के राज्यों में मुख्यमंत्री हैं. राज्यों के सीएम निवास, लग्जरी निवास बने हुए हैं. हर साल सीएम बंगलो पर बेतहाशा जनधन खर्च किया जाता है. 

    सरकारी बंगलो को सरकारी संपत्ति तो महसूस ही नहीं किया जाता. इसे अपनी परमानेंट संपत्ति मानते हुए ही जनता का धन खर्च कर विलासिता पूर्ण काम कराए जाते हैं. ऐसा नहीं है कि, एक मुख्यमंत्री ने कर लिया तो वह दूसरे मुख्यमंत्री द्वारा भी उपयोग कर लिया जाएगा? मुख्यमंत्री के बदलते ही फिर नए सिरे से कार्य होता है.

    मध्य प्रदेश में तो घोषित सीएम निवास के अलावा एनेक्सी भी सीएम के ही कब्जे में रहती है. यह प्रवृत्ति हर दल के नेता में समान रूप से देखी जाती है. मुख्यमंत्री रहते हुए शिवराज सिंह चौहान ने सीएम हाउस के अलावा एनेक्सी पर भी काबिज थे. सीएम रहते उन्होंने एनेक्सी से सटा सरकारी बंगला भी दूसरे स्वरूप में अपने कब्जे में ले लिया. अब दोनों बंगले एक ही मालिक के दिखाई पड़ते हैं. उनमें अंतर करना नामुमकिन है.

    कमलनाथ जब मुख्यमंत्री बने, तब वह भी सीएम हाउस के अलावा अपने पुराने बंगले को एनेक्सी के रूप में उपयोग करते रहे. बाबूलाल गौर ने भी वही किया था. वर्तमान मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव भी इसी लाइन पर चल रहे हैं. सीएम हाउस तो उनके पास है ही, उनका पुराना बँगला विंध्य कोठी भी सीएम एनेक्सी के रूप में काम कर रही है. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक उज्जैन में भी एक सीएम हाउस बनाया गया है. इंदौर के प्रभारी मंत्री के रूप में सीएम के ठहरने के लिए इंदौर में अगर व्यवस्था बनाई जाएगी तो फिर वह भी एनेक्सी ही कहलाएगी.

    मध्य प्रदेश के केंद्रीय मंत्री भी राजधानी में बंगला हासिल कर लेते हैं. केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के पास भी भोपाल में सरकारी बँगला है. वहीं केंद्रीय मंत्री राज्य की राजधानी में सरकारी बंगला हासिल करने में असफल होते हैं, जो सत्ता साकेत में समीकरण के कारण मंत्री तो बन जाते हैं, लेकिन उनकी सियासी ताकत बहुत प्रभावी नहीं होती.

    केंद्रीय मंत्रियों को राष्ट्रीय राजधानी में भी सरकारी बंगला उपलब्ध होता है. केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान के पास बंगला होगा और भोपाल में भी है. केंद्रीय मंत्रियों को राज्य की राजधानियों में सरकारी बंगलो की उपलब्धता का औचित्य जनसेवा की दृष्टि से तो साबित नहीं होता अगर आवश्यक है, तो संसदीय क्षेत्रों में आवास व्यवस्था पर विचार संभव है.

    सरकारी बंगलो की बंदर वांट तो राजनीतिक गणित साधने का साधन बन गया है. केंद्रीय मंत्रियों के अलावा राज्य की राजधानी में सांसदों को भी सरकारी बंगले उपलब्ध कराने की वृत्ति, संसदीय व्यवस्था के दुरुपयोग की श्रेणी में आएगी. सांसदों को दिल्ली में तो आवास उपलब्ध कराया जाता है. मध्य प्रदेश में बीजेपी का अध्यक्ष बनने के बाद  वी.डी. शर्मा को सरकारी बंगला उपलब्ध कराया गया है, इसे सुसज्जित भी कराया गया है.

    हाई कोर्ट की आपत्ति के बाद पूर्व मुख्यमंत्री को सरकारी बंगला उपलब्ध कराने की एमपी सरकार की नीति पर सवाल खड़े हुए थे. शिवराज सरकार के समय न्यायालय के निर्देश पर पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह को आवंटित बंगले का आवंटन निरस्त कर दिया गया था. कमलनाथ की सरकार आते ही फिर से वही बँगला आवंटित कर दिया गया. उसके बाद तो बंगले में साज सज्जा और रिकार्ड निर्माण कर शायद सत्ता में ताकत के अहंकार की पुष्टि की गई.

    पूर्व मुख्यमंत्री को सरकारी बंगला देने का औचित्य सरकार कैसे साबित करेगी? एक लोक सेवक जो जनधन से वेतन ग्रहण करता है, वह सेवानिवृत होने के बाद जनधन से सुविधा बँगला कैसे हासिल कर सकता है. वह भी तब जब उसे पेंशन भी मिलती है. 

    ऐसा लगता है कि, शीश महल और राजमहल का विवाद जनता को भ्रमित करने के लिए ही पैदा किए जाते हैं. सियासत की मानसिकता ‘राज और महल’ पर ही टिकी होती है. मौका मिलने के बाद हर नेता शीश महल और राजमहल बनाने की सोच पर ही आगे बढ़ता है. 

    नरेंद्र मोदी जैसे बिरले नेता होंगे जो यह सीना ठोंक कर कहते हैंकि, हमने जीवन में अपने लिए एक मकान नहीं बनाया और लोग सरकारी धन से शीश महल बना लेते हैं.

    राजशाही रही नहीं लेकिन उसके बीज, लोकशाही में बिखरे हुए दिखाई पड़ते हैं. राज्यों के सीएम आधुनिक राजा स्वीकार किए जाते हैं. जब आज राजशाही परिवार अपनी विरासत राजमहलों को लग्जरी होटल रिसोर्ट में बदल रहे हैं तो आधुनिक राजा सीएम निवास को लग्जरियस बनाने में कर्तव्य निष्ठ हैं. जनधन को प्रोटेक्ट करना जिनकी जिम्मेदारी है वही लग्जरी के लिए अपव्यय करते हैं. मितव्यतिता का विचार र तो शायद सरकारी व्यवस्था से मिट गया है. 

    कर्ज लेकर घी पीने की ‘चारवाक संस्कृति’ सरकारों का स्वभाव बन गया है. सरकारी बंगले का दुरुपयोग राजनीतिक बंदरबाँट  का हिस्सा है. स्वयं की लग्जरी के लिए जनधन के दुरपयोग को तो अब बेईमानी भी नहीं कहा जाता, इसे तो ईमानदारी ही स्वीकार कर लिया गया है. 

    किसी एक को शीश महल और राजमहल के लिए जिम्मेदार बताने से काम नहीं बनेगा. लोकशाही से उस मानसिकता को हटाना पड़ेगा जो राजशाही के प्रतीक शीश महल और राज महल बनाने की प्रेरणा देती है. यह तभी होगा जब नेता या व्यक्ति के भीतर की ज्योति जलेगी. राजनीतिक वाद विवाद से इसका समाधान होने के बदले, वक्त के साथ यह बढ़ता ही जाएगा. हर सीएम हाउस में शीशे की वाल  है फिर भी दूसरों पर  पत्थर फेंकने से कोई पीछे नहीं रहता.