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कांग्रेस को परिवारवाद के साथ उधार के विचारवाद से भी मुक्त होना होगा, संघ की तरह कांग्रेस को भी विचार परिवार की ज़रूरत- सरयूसुत मिश्र 

सार

मौजूदा हालात में कांग्रेस में गाँधी परिवार की  रणनीति पर देश की निगाहें हैं| सवाल ये है कि क्या गाँधी परिवार के बिना कांग्रेस चल सकती है? क्या ये परिवार पार्टी को आत्मनिर्भर बनाने का साहस करेगा? यदि हाँ तो गाँधी परिवार का विकल्प कौन होगा? नई पौध कैसे तैयार होगी और आरएसएस की तर्ज पर कोई विचार परिवार कांग्रेस के लिए तैयार होने के क्या सम्भावनाएं हैं? 

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विस्तार

कांग्रेस के अधोपतन के लिए परिवारवाद को दोषी ठहराया जा रहा है| कांग्रेस का प्रथम परिवार भी कुछ हद तक इस निष्कर्ष से सहमत होने लगा है| यह परिवार पार्टी पर अपना कब्जा छोड़ने की रणनीति पर काम कर रहा है| पार्टी  के लिए किसी मनमोहन सिंह की तलाश जारी है| असंतुष्ट कांग्रेस नेताओं से भी बातचीत के रास्ते खोले गए हैं|

कांग्रेस के पतन के लिए परिवारवाद जिम्मेदारी से बच नहीं सकता, लेकिन सवाल यह है कि कांग्रेस का उत्थान भी इसी परिवारवाद के कारण हो सका था|  बूढ़ी हो चुकी कांग्रेस के नेता जिन्होंने इसी परिवार की चौखट पर माथा टेक टेक कर पद प्रतिष्ठा और धन कमाया है, उन्हें तो अभी भी परिवार से ही कल्याण की उम्मीद दिखाई पड़ रही है| कांग्रेस आजादी के बाद से ही इसी परिवार के कब्जे में रही है| इंदिरा गांधी का तो कांग्रेस का ऐसा दौर था जब कांग्रेसी नेता “इंदिरा इज इंडिया एंड इंडिया इज इंदिरा” कहने लगे थे| इसी कांग्रेसी परिवार का देश पर एकछत्र राज चलता था, राजीव गांधी यहां तक कि सोनिया गांधी ने भी कांग्रेस पर अपनी मजबूत पकड़ बनाए रखी| कांग्रेस का खुला पतन सोनिया गांधी के बाद पीढी परिवर्तन की समस्या से शुरू होता है|

प्रथम परिवार का कब्जा पार्टी पर नहीं होता तो शायद पार्टी अभी तक और अधिक दुरावस्था को पहुंच चुकी होती| कांग्रेस के अधो-पतन का कारण उसकी ऐतिहासिक भूलों में छिपा हुआ है| पार्टी में एकाधिकार की प्रवृत्ति, भ्रष्टाचारोन्मुखी नेताओं को संरक्षण, भाई भतीजावाद को बढ़ावा, युवाओं की उपेक्षा की बुराइयों के साथ, मुस्लिम तुष्टीकरण के रावण ने पार्टी को डुबोया है| किसी भी राज्य में आज कांग्रेस के पास ऐसा कोई चेहरा नहीं है जो एक्सपोज ना हो चुका हो| पार्टी में फ्रेश चेहरों का अकाल है| समाज में कांग्रेस नेताओं की चीखती भौतिक समृद्धि, ठाठ-बाट,  रहन-सहन और जीवनशैली ने पार्टी को आम लोगों से दूर कर दिया है| पार्टी में कोई विश्वसनीय चेहरा नहीं है जिस पर लोगों को भरोसा हो सके| देश में केवल 2 राज्य छत्तीसगढ़ और राजस्थान में कांग्रेस की सरकार है, वह भी अंतर्द्वंद से अपनी विश्वसनीयता खो रही हैं|

वैसे तो ऐसी बुराइयां किसी भी राजनीतिक दल को नहीं छोड़ती, लेकिन कांग्रेस ने भारतीय संस्कृति, संस्कार और स्वाभिमान को रोंदने का महापाप किया है| कांग्रेस का आज देश के साथ इमोशनल कनेक्ट खत्म हो गया है| स्वतंत्रता के बाद शुरुआत में कांग्रेस ने भारत राष्ट्र और भारतीयता को अपने एजेंडे में रखा था| पार्टी में विविधता पूर्ण विचारधाराओं को स्थान दिया गया था| हिंदू, मुस्लिम, सिख, इसाई सभी मजहब के सह अस्तित्व को राजनीति में साधने की कोशिश की जाती रही| लेकिन कालांतर में कांग्रेस में मुस्लिम-लीग के अधूरे कामों को पूरा करने की सोच हावी होती गई| इंदिरा गांधी के बाद तो कांग्रेस की विविधता पूर्ण विचारधारा लुप्त होती गई| पार्टी पर धीरे-धीरे वामपंथी विचारधारा हावी होती गयी|

कांग्रेस की आज जो हालात हैं वह देश में हिंदू मुस्लिम राजनीतिक विभाजन के कारण हैं| यह विभाजन करने के लिए भी कांग्रेस ही जिम्मेदार है| कांग्रेस आज वही काट रही है जो उसने  बोया है| आज स्थिति ऐसी हो गई है कि कांग्रेस को ना तो हिंदुओं को समर्थन मिल रहा है और ना ही मुसलमानों का| बीच बीच में जनेऊ पहनकर या  मंदिरों में जाकर हिन्दुओं को रिझाने की कोशिश हुयी लेकिन वो बहुसंख्यक समाज के गले नहीं उतरी|  जिस कांग्रेस पार्टी ने उत्तर प्रदेश में लंबे समय तक राज किया, 4 प्रधानमंत्री दिए उसी कांग्रेस को उत्तर प्रदेश के हाल के चुनाव में 2% वोट मिलना क्या दर्शाता है? कांग्रेस का यह दौर पतन का नहीं बल्कि समाप्ति की शुरुआत जैसा है| ऐसे हालात इसलिए बने हैं क्योंकि कांग्रेस ने मुस्लिम परस्ती की राजनीति का रास्ता पकड़ लिया|

हिंदू मुस्लिम मजहबी सह-अस्तित्व को दरकिनार करते हुए कांग्रेस ने मुस्लिमों पर दांव लगाया| इसके कारण हिंदू तो कांग्रेस से अलग हो गये, लेकिन मुस्लिम भी रीजनल पार्टीज के साथ हो लिए| सिखों के नरसंहार का पाप कांग्रेस पर लगा हुआ है|

भारतीय राजनीति राम जन्मभूमि मुक्ति आंदोलन के साथ बदलनी शुरू हुई थी| राम मंदिर आंदोलन में हिंदू और मुसलमान के पक्ष लेने की दुविधा पूर्ण नीति के चलते कांग्रेस ने ताला खुलवाया और  कारसेवकों पर गोली चलवाई| इसके बाद भी कांग्रेस ना हिंदुओं का विश्वास और ना ही मुसलमानों का विश्वास जीत पायी| बाबरी मस्जिद विध्वंस के दौर में कांग्रेस के मुस्लिम हितैषी चेहरे ने बहुसंख्यक समाज को कांग्रेस से अलग थलग कर दिया| भगवान राम को काल्पनिक बताने का पाप भी कांग्रेसियों ने ही किया था|

कांग्रेस ने जहां एक ओर बहुसंख्यक धर्म और संस्कृति को नजरअंदाज किया| वहीं मुस्लिम तुष्टीकरण के लिए, सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ जाकर, शाहबानो केस में संविधान संशोधन करने की महाभूल की| फिर उसके बाद तो कांग्रेस ने हिंदू और सनातन धर्म के प्रतीकों और आस्थाओं को नकारने का अभियान जैसा चालू कर दिया|

अभी हाल के दौर में भी कांग्रेस मुस्लिम प्रतीकों के साथ पूरी ताकत से खड़ी दिखाई पड़ रही है| हिजाब मामले में कांग्रेस मुस्लिम समाज के पक्ष खड़ी दिखाई पड़ी| मुस्लिम समाज में सुधार के  किसी भी प्रयास का कांग्रेस विरोध करती नजर आती है| तीन तलाक का भी विरोध किया, कश्मीरी पंडितों के नरसंहार के मामले में कश्मीर फाइल्स फिल्म ने भी कांग्रेस को एक्सपोज कर दिया है|  

कश्मीरी पंडितों के दर्द से आज हिंदुस्तान का बहुसंख्यक समुदाय द्रवित और उनके साथ है| लेकिन कांग्रेस फिल्म के भी खिलाफ है| कन्हैया कुमार को पार्टी में शामिल कर कांग्रेस अपनी पुरानी वामपंथी नीति पर ही आगे बढ़ रही है| बहुसंख्यकों की भावनाओं को ठेस पहुंचाना कांग्रेस का एजेंडा बन गया है| कांग्रेस भारतीय नागरिकों की समानता के प्रयासों के भी खिलाफ खड़ी हुई है| कई बार तो ऐसा लगता है कि कांग्रेस के कई कद्दावर नेता अपने बयानों और एक्शन से कांग्रेस के नुक्सान और भाजपा के “डेवलपमेंट एंबेसडर” के रूप में काम कर रहे हैं|

कांग्रेस का कुछ राज्यों में जो थोड़ा बहुत जनाधार बचा हुआ है वह पॉजिटिव नहीं बल्कि नकारात्मक है| द्विदलीय शासन वाले राज्यों में सत्ताधारी दल से असंतुष्ट वोटर कांग्रेस के साथ चले जाते हैं| ऐसे राज्यों में तीसरे दल के लिए मजबूत संभावनाएं विद्यमान हैं| थर्ड फ़ोर्स जैसे ही इन राज्यों में आकार लेगी वहाँ भी कांग्रेस सता से कोसों दूर हो जाएगी|  

कांग्रेस का कायाकल्प केवल परिवारवाद से मुक्ति से संभव नहीं होगा| कांग्रेस को भारतीय समाज के मनोभावों से जुड़ना होगा| मुस्लिम लीग और वामपंथ का रास्ता कांग्रेस को पतन के अंतिम मुकाम तक पहुंचा देगा| बहुसंख्यक समाज को अपमानित करने की कोशिशों को रोकना होगा| सनातन धर्म समाज के आस्था स्थलों और विश्वास को मनसा वाचा कर्मणा सम्मान देना होगा| हिंदुत्व अगर भारत की जीवन पद्धति है तो कांग्रेस को भी अपनी राजनीति में इस पद्धति को अपनाना ही होगा| अगर कांग्रेस ईमानदारी से बदलना चाहेगी तब भी दशकों के बाद उसके परिणाम मिलना संभव हो सकते हैं, अभी तो लगता है गांधी से शुरू हुई कांग्रेस गांधी परिवार पर ही खत्म होने की ओर अग्रसर है| 

वैसे तो विपक्ष की मजबूती प्रजातंत्र का आधार है, क्षेत्रीय दल क्षेत्रीयता को ज्यादा तवज्जो देते हैं, किसी राष्ट्रिय पार्टी का विपक्ष के रूप में मजबूत होना प्रजातंत्र के हित में होगा लेकिन अभी तो  यह स्तंभ एक पक्षीय विचारधारा और संगठन की अंदरूनी आंधियों से गांधियों को ही हिलाए हुए है|

इंटरनेट सोशल मीडिया से आई सूचनाओं की बाढ़ भी शायद अकबर रोड की कांग्रेस की दीवारों को बहा ले गई है| कांग्रेस का एक्सपोजर हर दिन नई कहानियों के साथ सामने आ रहा है| अब तो शायद भारत के इतिहास की हर भूल के लिए तथ्यों और दस्तावेजों के साथ कांग्रेस को जिम्मेदार ठहराया जाने लगा है| गंभीर बात यह है कि लोग भी उनका विश्वास कर रहे हैं|

कांग्रेस को सुधार के लिए 80-20 का फार्मूला संगठन में लागू करना होगा| 80% नए चेहरों को मौका देना होगा पुराने लोगों का 20% से अधिक स्थान नहीं होना कांग्रेस के सर्वाइवल के लिए ज़रूरी है| कांग्रेस को एक पक्षीय विचारधारा छोड़नी होगी| कांग्रेस को भारत की भावनाओं की पार्टी बनना होगा| सबको समान सम्मान और अवसर देने के लिए ईमानदारी के साथ काम करने के लिए नए चेहरों को उतारना ही कांग्रेस के सामने एकमात्र विकल्प है| कांग्रेस को अपने बैकग्राउंड में एक ऐसे संगठन को तैयार करना होगा जो आरएसएस की तरह उसके लिए उसकी विचारधारा को पोषित करते हुए नयी पौध तैयार करती रहे|