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उदार प्रभु श्रीराम के लिए अनुदार सियासी श्रम

सार

प्रभु श्रीराम के राज्याभिषेक की दीपावली कार्तिक मास में हो चुकी है. रामलला के भव्य-दिव्य मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा की दीपावली पौष मास की 22 जनवरी को मनाई जाएगी. एक दीपावली त्रेता युग की घटना से जुड़ी है तो दूसरी दीपावली त्रेता के राम की उनके गर्भगृह में स्थापना से जुड़ने जा रही है.

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विस्तार

प्राण-प्रतिष्ठा दीपावली पर ‘श्रीराम ज्योति’ घर-घर  में जलाए जाने की तैयारी चल रही है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ‘श्रीराम ज्योति’ जलाने की अपील कर रहे हैं. बीजेपी अपना पूरा जोर लगा रही है. हर कार्यकर्ता को घर-घर पहुंचाकर प्राण प्रतिष्ठा दीपावली पर ‘श्रीराम ज्योति’ स्थापना में सहयोग के लिए घंटे घड़ियाल बजाने का दायित्व दिया गया है.

प्रभु श्रीराम की उदारता ऐसी कि युद्ध के पहले शरण में आने पर रावण को अयोध्या का राज देने के लिए भी तैयार हो गए थे. ऐसे उदारप्रभु श्री राम के लिए अनुदार सियासी श्रम भारतीय राजनीति की संकीर्णता चिंतित भी कर रही है. जनादेश ‘श्रीराम ज्योति’ जलाकर आस्था की संस्कृति का गौरवगान करने में लगा है वहीं दिल जलाने की संकीर्णता भी देखी जा रही है.

अयोध्या आज दुनिया में सबसे चर्चित स्थान बन गया है. अयोध्या में राम ही स्वभाव हैं और राम ही का प्रभाव दिखाई पड़ रहा है. अयोध्या का सेवाभाव प्रभु श्रीराम की मर्यादा को पुनर्स्थापित कर रहा है. श्रीराम का अनुपम गुण है उदारता. उनके समान कोई उदार न हुआ है ना हो सकता है. 

रामायण में वर्णन आता है कि श्रीराम रावण को अयोध्या का राज्य देने को तैयार हो गए थे. लंका में रावण से अपमानित होकर विभीषण जब श्रीराम की शरण में आए थे और प्रभु ने समुद्र के किनारे विभीषण का राज्याभिषेक कर दिया था. तब उनके सेनापति सुग्रीव ने ऐतराज जताया था. सुग्रीव ने सवाल किया था कि युद्ध के पहले ही लंका में नए राजा का राज्याभिषेक कहां तक सही है? अगर रावण शरण में आ जाए तो फिर क्या विभीषण का राज्याभिषेक समाप्त कर रावण को राज्य दिया जाएगा? 

तब प्रभु श्रीराम ने सुग्रीव से कहा कि अब तो जो हो गया सो हो गया. विभीषण को लंका का राज्य दे दिया है. अब रावण अगर शरण में आएगा तो रावण को अयोध्या की गद्दी पर बिठाकर अपने हाथ से उनका राजतिलक करूंगा और मैं सम्पूर्ण जीवन वन में व्यतीत करूंगा.

प्रभु श्रीराम जैसी यह उदारता जगत में अब क्यों नहीं दिखाई पड़ रही है? नई अयोध्या आकार ले रही है. दिव्य मंदिर भी बन रहा है. प्राण प्रतिष्ठा हो रही है. भारत में राम की उदारता जीवन का स्वभाव रहा है. इस स्वभाव की फिर से प्राण प्रतिष्ठा की जरूरत है.

प्रभुश्री राम के मंदिर की प्राण-प्रतिष्ठा को लेकर चल रही राजनीति लौकिक पैमाने पर अपनी-अपनी रेखाएं खींचने का प्रयास हो सकता है. जीवन में सदाचार और संयम प्रभु श्रीराम की मर्यादा का वह आभूषण है जो भारत को दिव्यता और श्रेष्ठता के शिखर पर पहुंचा सकता है. राम मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा पर राजनीति उस मर्यादा के विरुद्ध हो रही है जो भारत की आत्मा है.

प्रभु राम को कहा गया था कि कल राज्याभिषेक होगा और राज्याभिषेक के मुहूर्त में वे वन चले गए लेकिन सदाचार और संयम पर आंच नहीं आने दी. अभी तो सारी राजनीति इस पर ही टिकी हुई है कि राममंदिर से किसको लाभ होगा और किसको नुकसान? राम पर लाभ-हानि का गणित राजनीति की नहीं बल्कि जीवन की सबसे बड़ी हानि है.

अयोध्या का पुरातन वैभव और इतिहास फिर से आधुनिकता के साथ दोहराया जा रहा है. क्षित जल पावक गगन समीरा पांच तत्व तो त्रेता युग में भी वही रहे होंगे जो आज हैं. सरजू के जल की  शीतलता में तो कोई बदलाव नहीं आया है. नई अयोध्या यही संदेश देने की कोशिश कर रही है कि प्रभु श्रीराम का स्वभाव और प्रभाव हर जीवन में पुनर्स्थापित हो. 

ॐ और राम का उच्चारण जीवन के ऊर्जा केंद्र को उद्वेलित कर देता है. लंबे संघर्ष और पीढ़ियों  की शहादत के बाद राममंदिर की स्थापना लौकिक जगत में अलौकिक और आध्यात्मिक वैभव को स्थापित करने की कोशिश के रूप में ही मानी जाना चाहिए. ऐसे हजारों कारसेवक हैं जिन्होंने अपना बलिदान दे दिया और ऐसी करोड़ों आंखें हैं जिन्होंने कारसेवकों का बलिदान भी देखा था और आज राममंदिर का शिखर भी अपने आंखों से देख रहे हैं. यह सौभाग्य उन कारसेवकों को नहीं मिल सका जिन्होंने अपना सर्वोच्च बलिदान दे दिया है.

अयोध्या पर 500 वर्षों से विवादों का साया बना हुआ है. देश की तो ऐसी इच्छा थी कि दिव्य और भव्य मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा तो कम से कम विवादों से दूर रहे. जब त्रेतायुग में भगवान राम ही नकारात्मक शक्तियों से लड़ते हुए जीवन जिए तो फिर कलयुग में उनके मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा को विवादों से दूर रखना नामुमकिन नहीं तो मुश्किल जरूर है. राजनीति एक ऐसा जगत है जिसकी भाषा सत्ता और शासन के लिए रची जाती है. रामसत्ता के लिए नहीं हैं राम आत्मा और मन की सत्ता के लिए हैं. जितनी जल्दी इस बात को समझ लिया जायेगा उतनी जल्दी ही नई अयोध्या की सार्थकता साबित होगी.

अयोध्या में शांति है, सांप्रदायिक सौहार्द है. अयोध्या में उल्लास है, अयोध्या में प्रफुल्लता है. देश के दूसरे कोनों में अयोध्या और प्रभु श्रीराम को राजनीतिक नजरिये से तोलने का प्रयास किया जा रहा है. पटना में पोस्टर लगाकर समर्थकों को संदेश दिए जा रहे हैं. हिंदू-मुस्लिम में विभाजन की कोशिश की जा रही है. सनातन और हिंदुओं को एकजुट होने में राममंदिर और अयोध्या के योगदान को मिटाने के सभी जतन किए जा रहे हैं. नाम सीताराम लेकिन सीता और राम के विरोध की राजनीति. जिनके पूर्वजों ने जीवन में उनका नाम देने के लिए प्रभु राम का ही नाम दे दिया उनमें भी पूरा जीवन जीते हुए राम के भाव के दर्शन नहीं हो सके, यह उनका ही दुर्भाग्य कहा जाएगा. 

एक बहुत ही सफल व्यक्ति मृत्यु के बाद जब कर्मों के हिसाब-किताब के लिए पहुंचा तब उसको ऐसा कहा गया कि तुमने जीवन में वह सब कुछ पाया जिसकी कोई मनुष्य कल्पना करता है. इस उपलब्धि के लिए तुमने बहुत सारे पाप किये और लोगों को कष्ट भी दिए. ऐसी जीवात्मा से सवाल करते हुए धर्मराज ने कहा कि तुम्हें कुछ कहना है तो कहो नहीं तो तुम्हारे कर्मों को लेकर तुम्हें नरक लोक में भेज दिया जाएगा. 

तब उस जीवात्मा ने कहा कि आप हमें नरक लोक नहीं भेज सकते. धर्मराज घबराते हुए बोले… क्यों? तो उस जीवात्मा ने कहा कि मैं तो नरक लोक में ही रह रहा था, अब दूसरा नरक लोग कहां होगा? फिर धर्मराज ने कहा कि फिर तुम्हें स्वर्गलोक में भेज दें? तो उस जीवात्मा ने उत्तर दिया कि आप वह भी नहीं कर सकते क्योंकि हम जहां भी रहते हैं उसे नर्क में परिवर्तित करने में सिद्धहस्त हैं. 

यह कहानी है लेकिन वर्तमान हालातों में जिस तरह के परिवेश में प्रभु श्रीराम को लेकर राजनीति दिखाई पड़ रही हैं उससे तो यही लग रहा है कि कुछ लोग हर हालत में अपने लिए राजनीतिक नरक की रचना में ही लगे हैं.

अयोध्या का सेवाभाव और प्रभु राम की मर्यादा अगर भारत का सेवाभाव और मर्यादा बन सके तो नई अयोध्या भारत को नया जीवन देने में सफल होगी. प्राण प्रतिष्ठा दीपावली पर श्रीराम ज्योति जरूर चलाएं लेकिन इसे अंतर्मन में जीवन ज्योति का हिस्सा भी बनाएं तो आत्मकल्याण निश्चित है.