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देश: सुरक्षा का सरोकार 

राकेश दुबे राकेश दुबे
Updated Mon , 08 Sep

सार

यह सिलसिला आज से नहीं चला है,2014 मई से चला हुआ है। तब लोकसभा चुनाव के प्रचार में 10-12 दिन शेष थे, तब न तो जनादेश सार्वजनिक हुआ था और न ही नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने थे..!!

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विस्तार

राजनीति में यह हिंसक प्रवृत्ति बीते एक दशक के दौरान ज्यादा बढ़ी है। सहिष्णुता और सद्भाव नगण्य-से होते जा रहे हैं। देश के एक वरिष्ठतम आईपीएस अधिकारी ने अख़बार में लिखकर सलाह दी है कि प्रधानमंत्री को निशाना बनाकर हिंसा, हत्या, मौत सरीखे शब्दों का इस्तेमाल न किया जाए, क्योंकि ये किसी भी नागरिक को उकसा, भड़का सकते हैं।

यह सिलसिला आज से नहीं चला है,2014 मई से चला हुआ है। तब लोकसभा चुनाव के प्रचार में 10-12 दिन शेष थे। तब न तो जनादेश सार्वजनिक हुआ था और न ही नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने थे। अलबत्ता मीडिया से संवाद और साक्षात्कार के दौरान उन्होंने यह जरूर कहा था कि यदि हमारी सरकार बनी, तो 1993 के मुंबई सांप्रदायिक दंगों के आरोपियों को भारत लाएंगे। भाजपा के तत्कालीन प्रधानमंत्री उम्मीदवार मोदी ने अंडरवल्र्ड डॉन दाऊद इब्राहीम का भी जिक्र किया था कि उसे भी भारत लाएंगे और कानूनी कार्रवाई करेंगे। ऐसे बयान सुनकर एक अन्य डॉन ने मीडिया के जरिए मोदी को मारने की धमकी दी थी। यह भी कहा था कि दाऊद को तब भारत ला पाएंगे, जब जिंदा बचेंगे। 

मीडिया के जिन चेहरों के जरिए वह धमकी दी गई थी, उन्होंने भारत सरकार में संबद्ध अधिकारियों को खुलासा कर दिया था। उसके बाद मोदी बीते 10 साल से देश के प्रधानमंत्री हैं और दाऊद को अभी तक भारत नहीं लाया जा सका है। यह विश्लेषण अंडरवल्र्ड डॉन को लेकर नहीं है, बल्कि प्रधानमंत्री मोदी की सुरक्षा का सरोकार है। प्रधानमंत्री की सुरक्षा का मुद्दा तो सार्वकालिक है, लेकिन अब यह अमरीका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प  पर किए गए हमले के संदर्भ में ज्यादा प्रासंगिक है। एक पूर्व पुलिस महानिदेशक एक अखबार में लेख लिखकर इस बाबत चिंता जताई है। वे इसके लिए मौजूदा नफरती राजनीति को ही बुनियादी कारण मानते  हैं। राजनीति में यह हिंसक प्रवृत्ति बीते एक दशक के दौरान ज्यादा बढ़ी है।

इन दिनों सहिष्णुता और सद्भाव नगण्य-से होते जा रहे हैं। विपक्ष भाजपा-एनडीए की नीतियों का विरोध करने के बजाय प्रधानमंत्री मोदी को निजी तौर पर निशाना बना रहा है। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि आम चुनाव के दौरान जून में, वाराणसी में, प्रधानमंत्री के काफिले पर किसी ने चप्पल फेंकने का दुस्साहस किया। वह बम या ग्रेनेड भी हो सकता था। इस संदर्भ में राहुल गांधी की टिप्पणी थी कि अब लोग मोदी से डरते नहीं हैं। जब राहुल गांधी लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष बन गए, तो उन्होंने अपने पहले भाषण में ही हिंसा और हत्या सरीखे शब्दों का कई बार इस्तेमाल किया। चप्पल फेंकना भी प्रधानमंत्री की चाक-चौबंद और अति प्रशिक्षित सुरक्षा-व्यवस्था पर गंभीर सवाल है। पंजाब के फिरोजपुर इलाके में प्रधानमंत्री के काफिले को एक हाईवे पर अटक जाना पड़ा, तो उस स्थान पर पाकिस्तान की तरफ से हमला किया जा सकता था! इन कथनों और घटनाओं के अलावा, पूर्व केंद्रीय मंत्री सुबोध कांत सहाय ने बयान दिया था कि मोदी हिटलर की मौत मरेगा। मोदी की बोटी-बोटी करने का बयान देने वाला शख्स आज लोकसभा में कांग्रेस सांसद है। किसी ने यहां तक बयान दिया कि मोदी के सिर पर डंडे मारने चाहिए। प्रधानमंत्री के लिए अपशब्दों का इस्तेमाल किया गया है, उसकी एक लंबी सूची है।

राजनीति में आजकल निजी प्रहार खूब किए जा रहे  हैं। नरेंद्र मोदी ने भी राजनेता की हैसियत से कुछ आपत्तिजनक शब्द कहे थे, लेकिन उनके भाव मारने-काटने, हत्या कर देने या बेरोजगार युवा डंडे से पीटेंगे आदि नहीं थे। गौरतलब है कि मोदी देश के निर्वाचित प्रधानमंत्री हैं। देश पहले भी दो प्रधानमंत्रियों की हत्या देख और झेल चुका है। दरअसल ये शब्द किसी को भी भडक़ा और उत्तेजित कर सकते हैं। उस मनोस्थिति में वह प्रधानमंत्री पर हमला कर सकता है। कई धमकीपूर्ण बयान किसान आंदोलन के दौरान भी प्रधानमंत्री मोदी के लिए कहे गए। कई राजनीतिक दल उन धमकीवालों के साथ खड़े रहे। 26 जनवरी, 2021 को तो दिल्ली में ऐसा उपद्रव मचाया गया, माना दिल्ली पर ही किसी बाहरी शक्ति ने आक्रमण किया हो! 

प्रधानमंत्री की सुरक्षा जन सरोकार है, लेकिन हमारी राजनीति की गरिमा, सभ्यता और शालीन व्यवहार भी दांव पर हैं कि हमारी राजनीति कितना नीचे तक गिर सकती है। इसे रोका जाना चाहिए और राजनीति मुद्दों, तथ्यों के आधार पर की जानी चाहिए। वही लोकतंत्र का सौंदर्य है। प्रधानमंत्री को धमकी भरे बयानों पर रोक लगनी चाहिए, क्योंकि यह देश के एक बड़े पद का मामला है। अगर प्रधानमंत्री ही सुरक्षित नहीं होंगे, तो आम नागरिकों का क्या होगा?