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क्रिप्टोकरेंसी: डॉलर का दबदबा कमजोर होगा 

राकेश दुबे राकेश दुबे
Updated Thu , 11 Mar

सार

भारत और अमेरिका के पास पेट्रोलियम के ऐसे ही रणनीतिक भंडार हैं, जो इसलिए तैयार किए जाते हैं ताकि बाजार में मांग और आपूर्ति का असंतुलन बनने पर हालात संभाले जा सकें, ऐसी स्थिति की कल्पना करना भी मुश्किल है, जहां बाजार को सहारा देने के लिए क्रिप्टोकरेंसी भंडार का इस्तेमाल करना पड़े, दुनिया की आरक्षित मुद्रा जारी करने वाला अमेरिका अगर ऐसा भंडार बना रहा है तो इसका साफ मतलब है कि वह डॉलर में भरोसे की कमी को मान रहा है..!!

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विस्तार

सावधान हो जाएँ,दुनिया अब क्रिप्टोकरेंसी की ओर दौड़ने जा रही है। कारण अमेरिकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप की घोषणा है ‘अमेरिका क्रिप्टोकरेंसी का अहम भंडार तैयार करेगा तभी से क्रिप्टो बाजार दौड़ने लगा है।‘ इससे व्यापक आर्थिक हलकों में उलझन और चिंता पसर गई है। ट्रंप का कहना है कि इस भंडार में पांच अलग-अलग क्रिप्टोकरेंसी बिटकॉइन, इथिरियम, रिपल, सॉल और एडा रहेंगी। 

भारत और अमेरिका के पास पेट्रोलियम के ऐसे ही रणनीतिक भंडार हैं, जो इसलिए तैयार किए जाते हैं ताकि बाजार में मांग और आपूर्ति का असंतुलन बनने पर हालात संभाले जा सकें। ऐसी स्थिति की कल्पना करना भी मुश्किल है, जहां बाजार को सहारा देने के लिए क्रिप्टोकरेंसी भंडार का इस्तेमाल करना पड़े। दुनिया की आरक्षित मुद्रा जारी करने वाला अमेरिका अगर ऐसा भंडार बना रहा है तो इसका साफ मतलब है कि वह डॉलर में भरोसे की कमी को मान रहा है।

कुछ सरकारों को क्रिप्टोकरेंसी से कोई दिक्कत नहीं है और कुछ के पास बड़ी मात्रा में क्रिप्टोकरेंसी हैं। उदाहरण के लिए अमेरिका के ही पास करीब 17 अरब डॉलर के बराबर ऐसी क्रिप्टोकरेंसी है, जो उसने अपराधियों से जब्त की है। चीन के पास करीब 19 अरब डॉलर मूल्य की क्रिप्टोकरेंसी है। ऐसे में भंडार तैयार करने की घोषणा से दुनिया भर के केंद्रीय बैंकों और सरकारी वेल्थ फंडों को इसमें दिलचस्पी हो सकती है। उस लिहाज से देखें तो इन डिजिटल मुद्राओं को खुद ही स्वीकार्यता मिल रही है, जिससे ये लंबे समय तक दौड़ सकती हैं। 

चूंकि सोना हटाने पर अमेरिका के पास ज्यादा विदेशी मुद्रा भंडार नहीं है, इसलिए उसके पास क्रिप्टोकरेंसी का बड़ा जखीरा है, जिसे इस भंडार में रखा जा सकता है। परंतु भंडार तैयार होने के साथ ही कुछ असहज करने वाले सवाल पैदा हो जाएंगे।

अमेरिका में कमोडिटी का ‘रणनीतिक भंडार’ कांग्रेस के एक अधिनियम के जरिये बनाया जाता है और उस पर कार्यपालिका का नियंत्रण रहता है, जबकि मुद्रा पर फेडरल रिजर्व जैसे स्वतंत्र संस्थानों का नियंत्रण होता है। अगर विधायी प्रक्रिया अपनाई गई तो राष्ट्रपति बाजार संचालन का आदेश दे सकेंगे। अमेरिका सरकार चाहेगी तो क्रिप्टोकरेंसी बाजार पर आसानी से दबदबा कायम कर सकती है। बिटकॉइन, इथिरियम और अन्य सभी क्रिप्टोकरेंसी के अल्गोरिद्म अलग-अलग हैं मगर उन सभी को कंप्यूटर पर गणित के जरिये तैयार किया जाता है। चूंकि ये सीमित मात्रा में ही तैयार हो पाती हैं, इसलिए पता रहता है कि कितनी करेंसी आएगी। मांग में तेज इजाफा हुआ तो कीमतें चढ़ सकती हैं। बड़ी मात्रा में इन्हें बेचा गया तो कीमत धड़ाम हो जाएंगी क्योंकि बाजार में मांग से ज्यादा क्रिप्टोकरेंसी उपलब्ध होगी। ट्रंप संपत्तियों की सूची (या अपने कर विवरण) जारी करने की मांग को लगातार खारिज करते रहे हैं मगर सब जानते हैं कि क्रिप्टोकरेंसी में उनका निवेश है। उनके करीबी सलाहकार ईलॉन मस्क का भी क्रिप्टोकरेंसी में निवेश है। अमेरिकी सरकार के संसाधनों के जरिये क्रिप्टोकरेंसी बाजार को प्रभावित करने की क्षमता हितों का भारी टकराव पैदा कर सकती है। सीधे शब्दों में कहें तो ट्रंप और उनके सहयोगी इसके जरिये और भी अमीर बन सकते हैं।

बिटकॉइन तो पूरी तरह विकेंद्रीकृत है और उसकी ब्लॉकचेन का कोई मालिक नहीं है मगर रिपल, सॉल और एडा की ब्लॉकचेन को निजी संस्थाएं चलाती हैं। इन निची कंपनियों का अमेरिकी सरकार से कोई रिश्ता हुआ तो मामला और भी पेचीदा हो सकता है। इन खतरों के अलावा बुनियादी सवाल वही है: ऐसे रणनीतिक भंडार बनाने का आर्थिक औचित्य अब तक सामने नहीं आया है। अमेरिका के लिए खास तौर पर यह सच है क्योंकि वह दुनिया की आरक्षित मुद्रा जारी करता है और किसी भी विदेशी कर्ज को डॉलर छापकर निपटा सकता है। क्रिप्टो भंडार रखने की एक ही वजह हो सकती है – भविष्य में डॉलर का दबदबा कमजोर होने की आशंका। यही वजह है कि क्रिप्टोकरेंसी भंडार बनने भर से डॉलर में भरोसा कमजोर हो सकता है।