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सांस्कृतिक विरासत का उद्घोष

राकेश दुबे राकेश दुबे
Updated Tue , 07 Nov

सार

जिन प्रभु श्री राम के सम्मान में हम दिवाली मनाते रहे हैं, उनकी जन्मभूमि, कर्मभूमि अयोध्या ऐसी जगमगाई, जो अकल्पनीय थी..!!

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विस्तार

500 साल की सांस्कृतिक पीड़ा के बाद यह पहली और अद्भुत दीपावली थी। वैसे भी दीपावली  श्री राम के पराक्रम के उत्सव वाली ही होती है, इस बार की दिवाली कई मायनों में अद्भुत, अनुपम, अभूतपूर्व रही। जिन प्रभु श्री राम के सम्मान में हम दिवाली मनाते रहे हैं, उनकी जन्मभूमि, कर्मभूमि अयोध्या ऐसी जगमगाई, जो अकल्पनीय थी । 

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भव्य मंदिर निर्माण और उसमें श्री राम विराजमान होने के बाद यह प्रथम दीपावली थी। रामभक्त और भगवान श्री राम तक अपमानित होते रहे, आस्था और सांस्कृतिक विरासत के लिए न जाने कितने संघर्ष करने पड़े, प्राणों की आहुति तक देनी पड़ी। किसी भी देश की सांस्कृतिक स्वतंत्रता उसकी राजनीतिक, भौगोलिक आजादी से कहीं अधिक महत्वपूर्ण होती है। यह देश ने अयोध्या राम मंदिर के संदर्भ में महसूस किया! 

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इस साल दीपोत्सव के दिन अयोध्या की सरयू नदी के घाटों पर 25 लाख से अधिक दीये प्रज्वलित किए गए। राम मंदिर परिसर में भी एक लाख दीये रोशन किए गए। सरयू के तट पर ही 1121 आस्थावान चेहरों ने, एक साथ महाआरती गाई और प्रभु राम के प्रति भक्ति-श्रद्धा की भावाभिव्यक्ति की। बेशक एक बार फिर अयोध्या ने ‘गिनीज बुक का विश्व-कीर्तिमान’ स्थापित किया, लेकिन अयोध्या के जरिए यह सांस्कृतिक जागरण की एक उजालामयी भोर उगी। अंधेरे, निराशा, दुष्प्रचार और सांप्रदायिक विरोध गायक हुए। इस बार अयोध्या के जरिए दीपावली आपसी समभाव, सौहार्द और सकारात्मकता का पर्व साबित हुई, क्योंकि हिंदुओं से भी इतर कइयों ने ‘राम की दिवाली’ मनाई। कुछ सनातन-विरोधी शैतान भी हैं, जिनका जिक्र उप्र के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अपने संबोधन में किया।

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अयोध्या और राम के भक्त उन्हें दंडित जरूर करेंगे। अलबत्ता अयोध्या को कुछ और साबित नहीं करना है। राम मंदिर महज वोट या चुनाव जीतने की खातिर नहीं बनवाया गया। यह हिंदुओं की आस्था का संकल्प था और गुलामी से आजाद कराया जाना था। उसमें निर्णायक भूमिका सर्वोच्च अदालत के पांच न्यायाधीशों ने निभाई। बहरहाल हम सनातन-विरोधी शैतानों को भी माफ करने के पक्षधर हैं, क्योंकि यह पूरी तरह ‘श्री राम की दिवाली’ थी और प्रभु की सीख भी यही है। 

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अयोध्या और ‘जय श्रीराम’ के उद्घोष सरहद पर मौजूद सैनिकों ने भी किए और दीप-पर्व मनाया। यह खबर भी दीपोत्सव के मौके पर ही आई कि पूर्वी लद्दाख की वास्तविक नियंत्रण रेखा पर भारत-चीन की सेनाएं पीछे हट चुकी हैं। अस्थायी निर्माण और तंबू वगैरह ध्वस्त किए जा चुके हैं। साझा गश्त की संभावनाएं बन रही हैं। अप्रैल, 2020 की स्थिति बहाल होने को है। पूर्वाग्रही विपक्षी अब भी सवाल और संदेह करेंगे, यह उनकी फितरत है। अतीत बड़ा सवालिया है। उसे फिलहाल भूलना ही बेहतर है। दोनों पक्षों के सैनिकों ने, ‘राम वाली दिवाली’ के उपलक्ष्य में, मिठाई के डिब्बों का आदान-प्रदान किया। एक द्विपक्षीय समझौता सार्थक और साकार होता लग रहा है। यह धोखेबाजी वाली दोस्ती या संबंध नहीं है। सैन्य कमांडर और राजनयिक अब भी साझा वार्तालाप करते रहेंगे। विवादों की गुत्थियां सुलझाएंगे, लेकिन हमारे सैनिकों की पैनी निगाहें चीनी सैनिकों की सक्रियता पर चिपकी रहेंगी। दीप-पर्व के दिन प्रधानमंत्री मोदी गुजरात के कच्छ बॉर्डर पर गए और सैनिकों को लड्डू खिला कर दीपावली मनाई। यह भारत की संचित ताकत और क्षमता का ही परिणाम है कि दुनिया उसकी सांस्कृतिक विरासत में भी भागीदार बनना चाहती है।