भारतीय वायुसेना प्रमुख एयर चीफ मार्शल एपी सिंह वायुसेना में लड़ाकू विमानों के बेड़े की घटती ताकत को लेकर अपनी चिंताएं जगजाहिर कर चुके हैं..!!
यह एक चिंता का विषय है कि वायुसेना के लड़ाकू विमान लगातार दुर्घटनाग्रस्त हो रहे हैं, लड़ाकू विमानों की आपूर्ति से जुड़ी दिक्कतें बढ़ रही हैं और इंजनों के लिए जनरल इलेक्ट्रिक पर निर्भरता कायम है, उसने भी भारतीय वायु सेना की ताकत और युद्ध के लिए तैयार रहने की कोशिशों को प्रभावित किया है। भारतीय वायुसेना प्रमुख एयर चीफ मार्शल एपी सिंह वायुसेना में लड़ाकू विमानों के बेड़े की घटती ताकत को लेकर अपनी चिंताएं जगजाहिर कर चुके हैं।
गत दिनों चाणक्य डायलॉग्स सम्मेलन में बोलते हुए वायुसेना प्रमुख ने यह भी कहा कि भारत में हर साल कम से कम 35 से 40 सैन्य विमानों का निर्माण किए जाने की जरूरत है और यह क्षमता रातोंरात नहीं बनाई जा सकती है। ‘भारत 2047 : युद्ध में आत्मनिर्भर’ नामक विषय पर उन्होंने जोर देकर कहा कि इस लक्ष्य को पूरा करना असंभव भी नहीं है।
एयर चीफ मार्शल एपी सिंह के अनुसार भारतीय वायुसेना 2047 तक अपनी सभी जरूरतों के सामान का उत्पादन भारत में ही करने की दिशा में काम कर रही है। अभी भारतीय वायुसेना के पास 600 के करीब लड़ाकू विमान हैं, जिनमें 248 सुखोई 30 एमकेआई, 45 मिराज 2000, 130 जगुआर, 40 मिग 21 बाइसन, 32 तेजस एलसीए एमके 1, 65 मिग 29 और 36 राफेल शामिल हैं। चीन से तुलना की बात की जाए तो हमारे पास उसके विमानों के करीब आधी संख्या ही है।
भारतीय वायुसेना को अभी तक 40 स्वदेशी तेजस विमान भी नहीं मिले हैं जबकि चीन ने छठी पीढ़ी का लड़ाकू विमान भी तैयार कर लिया है। 2008 में चीन का रक्षा बजट 78.78 अरब डॉलर का था, जो 2025 में भारत का रक्षा बजट है। यानी रक्षा बजट के मामले में हम आज भी चीन से 17 साल पीछे हैं। इसलिए यह आवश्यक है कि इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए एक दशक तक रक्षा बजट को तुरंत जीडीपी के 4 प्रतिशत के बराबर किए जाने की जरूरत है।
इतना ही नहीं, भारतीय वायुसेना के पास हर हाल में देश की सुरक्षा के लिए 42 स्क्वाड्रन का होना जरूरी है। लेकिन इस वक्त भारत के पास करीब 32 स्क्वाड्रन हैं और यदि स्क्वाड्रनों की संख्या नहीं बढ़ाई गई तो साल 2035 तक भारत के पास सिर्फ 25 से 27 स्क्वाड्रन ही बचेंगे। इसलिए समझा जा सकता है कि आने वाले वर्षों में हालात किस कदर भयावह हो सकते हैं। एक स्क्वाड्रन में करीब 18 लड़ाकू विमान होते हैं। इस साल के अंत तक आखिरी मिग-21 को भी सर्विस से बाहर कर दिया जाएगा। एचएएल को भारतीय वायुसेना के लिए 83 तेजस एमआई1ए लड़ाकू विमान बनाने हैं और सभी 83 तेजस एमआई1ए की डिलीवरी साल 2029 तक देनी है, लेकिन इसमें भी देरी हो रही है।
भारतीय वायु सेना की आधिकारिक स्थापना 8 अक्टूबर 1932 को हुई थी। भारतीय वायु सेना का आदर्श वाक्य ‘नभ: स्पृशं दीप्तम्’ है।
भारतीय वायुसेना आसमान में भारत की ताकत को और बढ़ाना चाहती है और इसके लिए भारतीय वायुसेना को 114 नए लड़ाकू विमान चाहिए। मल्टी रोल फाइटर जेट प्रोग्राम के तहत ये विमान खरीदे जाने हैं। वायुसेना चाहती है कि 5 साल के भीतर पहला लड़ाकू विमान भारत में आ जाए।खरीद प्रक्रिया में 7 विमान दौड़ में शामिल हैं। ज्यादातर विमानों का पहले ही परीक्षण हो चुका है, इसलिए उम्मीद है कि लड़ाकू विमानों की खरीद प्रक्रिया तेज होगी। यह प्रसन्नता की बात है कि भारत दुनिया की चौथी सबसे बड़ी सैन्य ताकत बन चुका है। ग्लोबल फायरपावर की तरफ से वर्ष 2025 की सैन्य ताकतों की रैंकिंग में पहले स्थान पर अमरीका है। दूसरे स्थान पर रूस का नंबर आता है, जबकि चीन तीसरे स्थान पर है। पांचवें स्थान पर दक्षिण कोरिया है। अपनी सैन्य व एटमी ताकत का धौंस देने वाला पाकिस्तान इस बार तीन अंक खिसक कर 12वें स्थान पर पहुंच चुका है। इसमें सेनाओं की संख्या, हथियारों की ताकत, लॉजिस्टिक्स लाने-ले जाने की क्षमता, भौगोलिक स्थिति शामिल हैं।
आज तक लड़ी गईं सभी मुख्य लड़ाइयों में भले ही वायुसेना के पास उन्नत श्रेणी के युद्धक विमान न रहे हों, लेकिन उनको संचालित करने वाले भारतीय वायुसेना के जांबाज पायलेट अपने हौसलों से हर बार नया इतिहास रचते रहे हैं। भारत सरकार को कुछ अन्य सुरक्षा उपायों पर भी ध्यान केंद्रित करने की जरूरत है, जिसमें हमारी हवाई रक्षा कवच (एयर डिफेंस) के साथ-साथ हमें ड्रोन और मिसाइल के एक एकीकृत बल के निर्माण को मजबूत बनाना होगा।