नेताओं की बोली कई बार विवादों को जन्म देती है. ताजा विवाद कमलनाथ द्वारा विधानसभा कार्यवाही के संबंध में दिए गए बयान पर पैदा हुआ है. विधानसभा कार्यवाही में कम समय देने से जुड़े एक प्रश्न के उत्तर में उन्होंने कहा कि वहां क्या बीजेपी बकवास सुनने के लिए रहूंगा..!
सदन जनहित के मुद्दों पर चर्चा के उसे पक्ष और विपक्ष की नज़र से देखना शायद उचित नहीं होगा| उद्योगपति परिवार में जन्मे कमलनाथ डेमोक्रेसी में संसदीय जीवन का रास्ता पकड़ा तो क्या इसीलिए कि यह फील्ड बकवास के लिए है? भाजपा ने इस बयान पर विशेषाधिकार हनन का मामला उठाया है|
राजनीतिक विवाद हमेशा लाभ हानि के गणित से बढ़ाए या घटाए जाते हैं| कमलनाथ वर्तमान में पार्टी अध्यक्ष हैं, नेता प्रतिपक्ष हैं और भविष्य में कांग्रेस के मुख्यमंत्री चेहरा भी हैं| नेता प्रतिपक्ष के रूप में उन्होंने कभी भी विधानसभा में बहुत लंबे समय तक बैठ कर कार्यवाही में हिस्सा नहीं लिया| वैसे तो मुख्यमंत्री के रूप में भी उन्होंने विधानसभा की कार्यवाहियों को चलते चलते ही काम पूरा करने की शैली में लिया था|
जिस विधानसभा में जनता के हित के लिए निर्णय लिए जाते हैं, उस विधानसभा की कार्यवाही को बकवास कहना लोकतंत्र का घोर अपमान है। pic.twitter.com/g1grsHvc9Z
— VD Sharma (@vdsharmabjp) April 26, 2022
जो व्यक्ति संसदीय जीवन में लोकसभा या विधानसभा का सदस्य नहीं है उसका अनुभव अगर इन संस्थाओं के प्रति कमलनाथ जैसा हो तो उसे जायज माना जा सकता है| लेकिन जिसने संसदीय जीवन की नेतागिरी से ही सब कुछ हासिल किया हो उसके द्वारा इस तरह का वक्तव्य अक्षम्य माना जाएगा|
कमलनाथ संभवतः देश के सबसे सीनियर संसदविद होंगे, वह पहली बार 1980 में सांसद बने थे, विधानसभा सदस्य मुख्यमंत्री के रूप में हाल ही में बने हैं| संसद की उनकी सीनियरिटी को देखते हुए मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में, लोकसभा चुनाव के बाद संसद सदस्यों को शपथ दिलाने के लिए कमलनाथ को प्रोटेम स्पीकर बनाया गया था| वह पहले ऐसा नेता हैं जिन्होंने कांग्रेस की चार पीढ़ियों के साथ काम किया है|
कमलनाथ जी ने कहा कि मैं भाजपा की बकवास क्यों सुनूँ….
— Narendra Saluja (@NarendraSaluja) April 26, 2022
अब इसमें सदन , संसदीय परंपरा व मान-अपमान कहाँ से आ गया…?
भाजपा की बकवास यानि झूठ सुनना क्या संसदीय परंपरा व मान की बात है…?
इंदिरा गांधी का तो उन्हें तीसरा बेटा माना जाता था| राजीव और संजय गांधी के वह खास दोस्त रहे| सोनिया गांधी और राहुल गांधी के साथ वे अभी भी काम कर रहे हैं| कमलनाथ नरसिंह राव और मनमोहन सिंह के मंत्रिमंडल में शामिल रहे थे| पार्टी में आज उनकी इतनी बड़ी हैसियत है कि मध्य प्रदेश कांग्रेस एक तरीके से उनके नेतृत्व में स्वायत्त रूप से काम कर रही है| उनके लिए हाईकमान का कोई खास मतलब नहीं है| सूत्र तो यहां तक बताते हैं कि केंद्रीय नेतृत्व कमलनाथ को कोई निर्देश नहीं देता|
नेतृत्व को सलाह मशविरा के साथ काम को अंजाम देना पड़ता है| सूत्र यह भी कहते हैं कि केंद्रीय नेतृत्व चाहता है कि कमलनाथ एक पद छोड़ दें लेकिन कोई भी उन्हें ऐसा निर्देश देने की स्थिति में नहीं है| वह जब तक चाहेंगे तब तक दोनों पदों पर रहेंगे| आलाकमान को दरकिनार करते हुए मध्य प्रदेश के कांग्रेस नेताओं ने बैठक कर कमलनाथ को मुख्यमंत्री का फेस घोषित कर दिया| ऐसा कभी भी नहीं होता रहा है| लेकिन कमलनाथ की वरिष्ठता के आगे आलाकमान बौना साबित हो रहा है|
जो नेता संसदीय जीवन में इतना वरिष्ठ रहा हो वह कैसे विधानसभा की कार्यवाही को बकवास कह सकता है? जो नेता अपनी भावी पीढ़ी को भी राजनीति की लाइन में ही डालता है वह तो संसदीय व्यवस्था को निश्चित ही लाभकारी मानता होगा| कमलनाथ की 15 महीने की सरकार ज्योतिरादित्य सिंधिया की टूट के बाद गिरी थी| जो नेता विधानसभा की कार्यवाही को बकवास कह सकता है वह विधानसभा के अपनी पार्टी के सदस्यों के प्रति भी बकवास जैसा ही दृष्टिकोण रख सकता है|
शायद ऐसे ही दृष्टिकोण के कारण विधायक टूटे और कांग्रेस की सरकार गिर गई| कमलनाथ की इस बात के लिए प्रशंसा की जानी चाहिए कि देश के बड़े-बड़े उद्योगपतियों से उनके सीधे संबंध है| वह राज्य के लिए निवेश कराने में सक्षम है| लेकिन उनके मुख्यमंत्री कार्यकाल में उसका कोई लाभ राज्य को मिला हो ऐसा तो नहीं लगता| हो सकता है उनके वक्तव्य की मंशा कुछ और रही हो लेकिन विधानसभा तो लोकतंत्र का मंदिर होती है|
उसकी कार्यवाही कल्याणकारी सरकार की भावना को पूरा करती है| वरिष्ठ नेताओं की इसी प्रकार की सोच के कारण विधानसभा साल में मुश्किल से 30 दिन ही चल पाती हैं| हरियाणा और पंजाब जैसे कुछ राज्यों में तो यह अवसर 15 दिन का ही है| पिछले एक दशक में 1 साल में सबसे अधिक विधानसभा बैठक वाले राज्य उड़ीसा में 46 दिन, केरल में 43 दिन विधानसभा बैठकें हुई हैं|
मध्यप्रदेश में तो पिछले एक दशक में विधानसभाओं का 1 साल में सिटिंग का औसत 36 है| वर्ष 2021 में मध्यप्रदेश में विधानसभा की 33 बैठकें हुई| वर्ष 22 का पहला बजट सत्र की बैठकें 1 सप्ताह ही चल सकी| लोकसभा और विधानसभा में पहुंचने के लिए जो नेता अपना सब कुछ दांव पर लगा देते हैं| कम से कम उन्हें तो लोकतंत्र के मंदिर की न केवल इज्जत करना चाहिए, बल्कि करते हुए दिखाई भी पढ़ना चाहिए| कमलनाथ इतने वरिष्ठ नेता है कि उनको कुछ भी कहना या सुझाव देना शायद ज्यादती होगी|
वरिष्ठ नेताओं को ऐसी मिसाल पेश करना चाहिए जिससे युवा पीढ़ी संसदीय जीवन, लोकसभा, विधानसभा, संसदीय शासन प्रणाली, में ना केवल विश्वास रखें, बल्कि भविष्य में इसको और मजबूत बनाने के लिए काम करें| संसदीय प्रणाली में सदन संचालन की जिम्मेदारी पक्ष विपक्ष दोनों की समान रूप से होती है| यदि कमलनाथ के ताज़ा वक्तव्य को वर्तमान परिस्थियों में उनके मन में आई किसी खटास से जोड़कर देखा जाए तो पक्ष का भी दायित्व है कि सदन में चर्चा का अनुकूल और निष्पक्ष वातावरण कायम रहे|