बोलने और सुनने वाला, अगर यह जानते हैं कि झूठ बोला जा रहा है और झूठ ही सुना जा रहा है तो फिर झूठ का प्रभाव खत्म हो जाता है. ईमानदार जनसेवक बनने की गारंटी अगर राजनीति दे सके तो फिर किसी और गारंटी का झूठ परोसने की आवश्यकता ही नहीं पड़ेगी. गारंटी का सच जनादेश से बच नहीं सकता. चुनावी वायदे अब गारंटियों के रूप में परोसे जा रहे हैं..!!
सियासत भरोसे के संकट से गुजर रही है. वायदे पूरे होने के बाद भविष्य की गारंटी देने की तो विश्वसनीयता भी हो सकती है लेकिन अतीत की गवर्नेंस की करतूतों के बोझ तले दबी कांग्रेस की गारंटी चिढ़ाने का प्रयास लगती है. जो राजनीति जनता को वारंटी दे रही है उसकी खुद की कोई गारंटी नहीं है. सबसे पहले ऐसे लोगों को जनता की गारंटी प्राप्त करना चाहिए, फिर लोकतंत्र के मालिक को गारंटी का झूठ परोसने का साहस करना चाहिए. गारंटी हमेशा मालिक देता है.सेवक तो सेवाभाव से गारंटी का इजहार करता है.
राहुल गांधी ने युवाओं-महिलाओं, किसानों और आदिवासियों के लिए चुनावी गारंटियों की बौछार लगा दी है. पिछले लोकसभा चुनाव के समय भी ऐसी ही गारंटी दी गई थी. पराजय के बाद यह गारंटियां भुला दी गईं. अब फिर नए सिरे से गारंटियों को सजाकर पेश किया जा रहा है. जो गारंटियां दी जा रही हैं वह इन वर्गों के लिए बुनियादी विषय हैं. इन बुनियादी विषयों पर आजाद भारत में 70 साल तक अगर कोई काम नहीं हुआ तो इसके लिए कांग्रेस के अलावा कौन जिम्मेदार हो सकता है?
अगर मोदी और अटल बिहारी सरकार के कार्यकाल को छोड़ दिया जाए तो इसके पहले अधिकांश समय तक कांग्रेस या उसके गठबंधन की सरकार ही काम करती रही है. राहुल गांधी की गारंटियों में एक गारंटी युवाओं को दी गई है. जिसमें शिक्षित डिप्लोमा धारी युवाओं को अप्रेंटिसशिप का कानून बनाकर संरक्षण देने की गारंटी दी गई है.
अप्रेंटिसशिप एक प्रकार से स्टाइपेंड देकर आवश्यकतानुसार प्रशिक्षित मानव संसाधन तैयार करने की प्रक्रिया है. किसी भी प्रोफेशन में अप्रेंटिसशिप बेहद जरूरी है.राजनीति ऐसा क्षेत्र है जहां अप्रेंटिसशिप की सबसे ज्यादा जरूरत है. अगर राजनीति में अप्रेंटिसशिप की व्यवस्था लागू की गई होती तो फिर देश को परिवारवादी राजनीति की त्रासदी से नहीं गुजरना पड़ता.
अगर जनसेवा की अप्रेंटिसशिप पूरा करने के बाद संसदीय व्यवस्था में राजनीतिक परिवारों के युवा शहजादे आते तो फिर शायद उनके अनुभव और शिक्षा का कुछ लाभ देश को मिलता. जो लोग परिवार के कारण सियासत के सिरमौर बने हुए हैं उनमें अप्रेंटिसशिप का विचार यही इशारा कर रहा है कि हर क्षेत्र में प्रशिक्षण की सबसे पहले आवश्यकता है. भारतीय राजनीति में सुधार के लिए भी जरूरी है कि इस क्षेत्र में अप्रेंटिसशिप की व्यवस्था लागू की जाए. परिवार के कारण अवसर तो मिल सकता है लेकिन यह क्षमता की गारंटी नहीं है.
कांग्रेस को तो कोई भी गारंटी देने का नैतिक अधिकार ही नहीं है. कांग्रेस से चुने गए जनप्रतिनिधि कांग्रेस छोड़कर दूसरे दल में कब शामिल हो जाते हैं, इसका पता ही नहीं चलता. मध्यप्रदेश में कांग्रेस की सरकार जनादेश ने बनाई थी लेकिन कांग्रेस विधायकों में टूट के कारण कांग्रेस की सरकार गिर गई थी. राहुल गांधी इसकी क्या गारंटी देंगे कि उनके सांसद और विधायक पार्टी छोड़कर नहीं जाएंगे? हिमाचल प्रदेश के 6 विधायक कांग्रेस की कौन सी गारंटी का दिग्दर्शन करा रहे हैं?
अनुभव सारे ज्ञान और प्रचार से ऊपर होता है. गारंटियों के जरिए देश के अनुभव को भ्रमित नहीं किया जा सकता. कोई ऐसा दिन नहीं गुजर रहा है जब कांग्रेस से कोई ना कोई नेता टूट कर दूसरे दल में ना जा रहा हो. जिस पार्टी की अपनी कोई गारंटी नहीं है उसकी कोई भी गारंटी कारगर नहीं हो सकती.
सियासत में राजनीति की विश्वसनीयता सर्वाधिक मायने रखती है. विश्वसनीयता बनाने में गारंटियां काम नहीं आती बल्कि व्यक्तित्व की ईमानदारी जनसेवा के प्रति समर्पण, राष्ट्र के प्रति प्रतिबद्धता जनभावनाओं के साथ जुड़ाव, किसी भी राजनीति की विश्वसनीयता का इंडेक्स बताते हैं. कांग्रेस ने राम मंदिर के प्राण-प्रतिष्ठा का आमंत्रण अस्वीकार कर जनभावनाओं को पराजित किया है. CAA पर कांग्रेस का विरोधी रुख शरणार्थियों के सम्मानपूर्ण जीवन की इस कानून के ज़रिये मिल रही गारंटी का अपमान ही कहा जाएगा.
कांग्रेस को अपने पूर्वजों के परंपरागत चुनाव क्षेत्र को क्यों छोड़ना पड़ रहा है? यही लगता है कि इन क्षेत्रों के साथ जनसेवा की दी गई गारंटी पूरी नहीं की गई. अब कांग्रेस के कर्णधारों को उत्तरप्रदेश जैसे परंपरागत जनाधार वाले प्रदेश में चुनाव लड़ने से डर इसीलिए लग रहा है कि गारंटी देने वाली सोच एक्सपोज हो गई है.
गारंटियों की गुलामी जनआनंद के लिए नहीं है. इसके पीछे राजनीतिक सोच और षड्यंत्र ही दिखाई पड़ता है. चुनावी वायदे और गारंटी की ना विश्वसनीयता है और ना ही इनके पूरा होने की कोई गारंटी है. केवल चुनाव तक गारंटियों के सहारे जितना जनादेश बटोरा जा सकता है, वही इनका मोटिव है. अगर बस चले तो राजनेता तो सांसों की भी गारंटी दे दें. सियासत आज सारी समस्याओं और बुराइयों की जननी बनी हुई है. 70 साल बाद कांग्रेस आदिवासियों को जल, जंगल, जमीन की गारंटी देने का मजाक कर रही है. पेसा कानून बनने के बाद इसके नियम कांग्रेस की सरकारों में नहीं बनाए गए.
कांग्रेस जिस दौर का सामना कर रही है, उसके लिए उसकी अतीत की गलतियां ही जिम्मेदार हैं. यह गलतियां इतनी बड़ी हैं कि उनको भूल कर गारंटियों की घोषणाओं से कांग्रेस के प्रोडक्ट की मार्केट वैल्यू बढ़ने की कोई संभावना नहीं है. सेवा-समर्पण के उदाहरण ही उसके भविष्य की संभावनाओं को विश्वसनीय बना सकेंगे.