राम जन्मभूमि आंदोलन पर चार सरकारें गंवाने वाली बीजेपी की आज जिन राज्यों में सरकारें हैं, वहां त्रेता युग की ग्लोरी सरकार की सक्सेस स्टोरी बन गई है. धनतेरस के साथ ही दीपावली महापर्व शुरु हो गया है..!!
त्रेता युग में दीपावली की परंपरा भगवान राम के लंका विजय के बाद, अयोध्या लौटने के साथ प्रारंभ हुई थी. भारत आज त्रेता युग में दीपावली की महिमा का जश्न अयोध्या में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के बाद पहली बार मना रही है.
अयोध्या सज गई है. सरकार रामलला की पालकी उठाए हुए है. दीपमालिकाओं का विश्व रिकॉर्ड बनाया जा रहा है. इस सब में सरकार न केवल भागीदार है, बल्कि सबसे आगे खड़ी दिखाई पड़ रही है. यही बदलाव भारतीय राजनीति में आया है. दिव्यता और विकास साथ-साथ अपना प्रकाश बिखेर रहे हैं. देव से देश और राम से राष्ट्र का मार्ग प्रशस्त हुआ है.
बहुत लंबे समय के बाद सरकार की संकीर्णता से निकलकर राममय सरकारों का दौर शुरु हुआ है. यह दौर पहले विचारों और कागज़ों पर दिखता था. लेकिन अब सरकारी कामकाज और एक्शन में ज़मीन पर दिखाई पड़ता है. यूपी सरकार के अयोध्या में भव्य और दिव्य दीपोत्सव का आयोजन भारतीय संस्कृति परंपरा और संस्कारों का महिमा मंडन ही कहा जाएगा.
प्रदूषण के नाम पर दीपोत्सव पर पटाखों से बचने के सियासी प्रदूषण भी दिखाई पड़ रहे हैं. दीपोत्सव की आस्था हर तबके में दिखाई पड़ रही है. बाजार में खरीददारी में भी, खरीदने और बेचने वाले की दीपोत्सव की आस्था पर नज़र है.
इसी दीपोत्सव के दौरान दो राज्यों महाराष्ट्र और झारखंड में आम चुनाव तथा दूसरे राज्यों में उपचुनाव हो रहे हैं. यूपी में भी उपचुनाव की सरगर्मी चरम पर है. दीपोत्सव में सरकार की सहभागिता और एकजुटता बांटने वालों को अखर रही होगी. दीपोत्सव हिंदुओं का पर्व है. जातियों की सियासत ऐसे त्योहारों और पर्वों के कारण ही परवान नहीं चढ़ पाती है.
पहले यह सोचा भी नहीं जा सकता था, कि राज्य सरकार राम और कृष्ण पर कोई सरकारी आयोजन कर सकती है. कोई सरकारी योजना बना सकती है.
अब तो ऐसा परिवर्तन आया है, कि सभी सरकारें चाहे वह बीजेपी की हों चाहे किसी दूसरे दल की हों सभी सरकारें हिंदू त्योहारों और पर्वों को सरकारी स्तर पर मानने से पीछे नहीं दिखतीं. यूपी सरकार की ओर से अयोध्या की भव्य दीपावली को लेकर समाचार पत्रों और चैनलों में धुआंधार विज्ञापन चल रहे हैं. इन विज्ञापनों में दीपावली की त्रेता युग की परंपरा के साथ ही अयोध्या में पौराणिक संदर्भों में आधुनिकता के साथ हुए विकास को प्रकट किया जा रहा है.
अयोध्या में पवित्र सरयू के किनारे दीपोत्सव के आयोजन का विश्व रिकॉर्ड बनाया जा रहा है. यह दीपावली इसलिए भी अविस्मरणीय रहेगी, क्योंकि रामलला की प्राण-प्रतिष्ठा के बाद यह पहली दीपावली है. यह ऐसा आभास दे रहा है, जैसे त्रेता युग में भगवन राम लंका विजय के बाद अयोध्या पहुंचे थे. भव्य राम मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा ऐसा ही फील दे रही है.
प्राण-प्रतिष्ठा को भले ही विवादास्पद बनाने के सियासी प्रयास किए गए हों, लेकिन दीपावली के महापर्व को यह सारे सियासी वीर उछल-उछलकर मनाने का प्रदर्शन करने से नहीं चूकेंगे. यह शायद इसलिए भी होगा क्योंकि कुछ राज्यों में चुनाव जो सामने हैं. प्राण-प्रतिष्ठा के समय भले ही इसका विरोध किया गया हो, राम मंदिर प्राण-प्रतिष्ठा समारोह के आमंत्रण को भले ही अस्वीकार किया गया हो, लेकिन अब सियासी राम भक्तों की कोई कमी नहीं रहेगी.
भारत का स्वरूप धर्म के आधार पर विभाजन के बाद ही बना था. स्वतंत्रता के बाद राम मंदिर का सांस्कृतिक आंदोलन खड़ा हुआ. हिंदुत्व की राजनीति और बीजेपी का उदय इस आंदोलन से ही जुड़ा हुआ है. बीजेपी को इसका लाभ हुआ है, तो उसने इसके लिए बहुत बड़े नुकसान भी उठाए थे.
जन आंदोलन के बाद बावरी ढ़ांचे का विध्वंश हुआ तो बीजेपी को यूपी, राजस्थान, हिमाचल और मध्य प्रदेश की अपनी चार सरकारों को गंवाना पड़ा. कांग्रेस की नरसिंहराव सरकार ने इनको बर्खास्त कर दिया. हजारों लोगों ने इस आंदोलन में अपना बलिदान दिया. खुशी की बात यह है, कि उस बलिदान का प्रतिफल आज सरकारों के एक्शन में दिखाई पड़ रहा है. राम का नाम सरकारों के काम का, हिस्सा बन गया है.
जो लोग दूसरे धर्म की सियासत को प्राथमिकता देते हैं, उनमें भी अब यह साहस नहीं बचा है, कि वह राम के नाम का सियासी जाप नहीं करें. राम मंदिर आंदोलन जन आंदोलन था. इसमें जनता ने भी बहुत बलिदान दिया.
हिंदुओं की आस्था त्यौहार और हिंदुओं के धर्मस्थलों के प्रति सरकारों की सोच में जो बदलाव आया है, वह जन दबाव का ही प्रतिफल है. सनातन धर्म के तीर्थ स्थलों पर विकास की जो गंगा बह रही है, इसमें सरकारों की जो भूमिका है, इसका कारण यही है, कि जनादेश में इसका बड़ा निर्णायक रोल है.
पहले तो एक ही धर्म के अनुयायियों को धार्मिक यात्राओं के लिए सब्सिडी मिला करती थी. अब यह सारा दौर बदल चुका है. हिंदू धर्म तीर्थ स्थल अपनी दिव्यता-भव्यता के साथ चमक रहे हैं. यह चमक लगातार बढ़ती जा रही है. अगले साल प्रयागराज में होने वाले महाकुंभ की तैयारी भव्यता के साथ आगे बढ़ रही है.
सनातन धर्मियों के आस्था के प्रमुख केंद्र काशी, मथुरा और अयोध्या यूपी में ही है. यूपी की सरकार सनातन आस्था स्थलों को आगे बढ़ाने के प्रतीक के रूप में दूसरे राज्य की सरकारों को भी प्रेरित कर रही है.
भगवान राम से जुड़े स्थलों को विकसित किया जा रहा है. राम वनगमन पथ का विकास हो रहा है. मध्य प्रदेश में राम वनगमन पथ के साथ ही कृष्ण पाथेय के विकास की परियोजना भी आगे बढ़ रही है. गोवर्धन पूजा पर अवकाश और मध्य प्रदेश में भव्य आयोजन इसी सांस्कृतिक सोच का परिणाम है. जिसके जनादेश से यह सरकारें अस्तित्व में आई हैं.
सनातन धर्म और हिंदू त्यौहारों के प्रति सरकारों की मानसिकता में आया बदलाव जनादेश चाहने वालों की मजबूरी बन गया है. जो राजनीतिक दल तुष्टिकरण की राजनीति करते थे वह भी अपनी सरकारों में, राम वनगमन पथ और गौशालाओं के निर्माण में अपनी भूमिका का ढिढौंरा पीटते हैं. वामपंथी विचारधारा त्यौहारों के आयोजन में सरकारों की भूमिका पर सवाल खड़े करती है. जनादेश की जागरुकता ऐसे सारे सवालों का सटीक जवाब बन जाती है.
जनादेश के दबाव के कारण ही ऐसा बदलाव संभव हुआ है, कि राज्य सरकारें हिंदुओं के त्यौहार और पर्वों पर कार्यक्रमों में पूरी हिस्सेदारी कर रही हैं. सरकार का धन इस पर खर्च किया जा रहा है. हिंदुत्व की गरिमा और गौरव को पुर्नस्थापित करने के दावे किए जा रहे हैं.
दीपोत्सव की यह एकजुटता भविष्य का भारत तय करेगी. राम मंदिर में रामलला की प्राण-प्रतिष्ठा के बाद दिव्यता और विकास का प्रकाश चहुंओर फैलेगा. सनातन धर्म की ग्लोरी सरकारों की सक्सेस स्टोरी का मॉडल बना रहे, इसके लिए सनातन जनादेश ही आधार और शिल्पकार है. इन बदलावों की शिल्पी सरकारों से ज्यादा जनभावनाओं की अनिवार्यता और दबाव है.