• India
  • Sat , Dec , 21 , 2024
  • Last Update 09:44:PM
  • 29℃ Bhopal, India

दरकते रिश्ते कुछ कीजिए?

राकेश दुबे राकेश दुबे
Updated Sat , 21 Dec

सार

स्त्री-पुरुष अब सामाजिक, मानसिक पूरक नहीं, बल्कि संबंधों के बाजार की दो वस्तुएं हैं..!!

janmat

विस्तार

यह रिश्तों का कैसा दौर है? संबंध बेचे जा रहे हैं? एक नई पहचान पुरुष उत्पीडऩ के नाम से तैर रही है। पुरुष एटीएम बनता जा रहा है। स्त्री-पुरुष अब सामाजिक, मानसिक पूरक नहीं, बल्कि संबंधों के बाजार की दो वस्तुएं हैं। लैंगिक विभेद की व्याख्याएं अधूरी और आग्रही हैं। यह कैसा समाज बन गया है, जहां सिर्फ स्त्री और पुरुष हैं, कोई सामाजिक रिश्ता नहीं है। रिश्ते दरक रहे हैं, तो परिवार टूट रहे हैं और आपसी सम्मान भी विलुप्त हो रहे हैं। 

ऐसा पश्चिमी देशों के संदर्भ में सुना था, लेकिन अब भारतीय संस्कृति में भी संबंधों और मूल्यों को खरोंचा जा रहा है। यह कोई प्रवचन देने की मुद्रा नहीं हैं और न ही स्त्री-द्वेष वर्ग के चेहरे हैं। नारीवाद, महिला सशक्तिकरण के विरोधी भी नहीं हैं। घरेलू हिंसा, झूठे आरोप और उत्पीडऩ, आर्थिक लूट के शिकार पुरुष भी हो रहे हैं। उनके लिए विशेष कानून क्यों नहीं हैं? बलात्कार, यौन उत्पीडऩ, घरेलू हिंसा, दहेज की मांग के झूठे केस भी दर्ज होते रहे हैं। अदालतों के जरिए ऐसे मामले भी सुर्खियां बनते रहे हैं। 

स्त्री को निर्णायक तौर पर दंडित करने वाले कानून क्यों नहीं हैं। समाज में पुरुष भी उतनी महत्वपूर्ण और अनिवार्य ईकाई है, जितनी महिला है। ये सवाल, ये मुद्दे इसलिए उठे हैं, क्योंकि एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में डीजीएम के पद पर कार्यरत, एआई इंजीनियर, 34 वर्षीय अतुल ने वैवाहिक उत्पीडऩ से तंग आकर आत्महत्या कर ली। मौत से पहले उस नौजवान ने जो वीडियो सार्वजनिक किया और 24 पन्नों का आत्महत्या नोट लिखा, वे थर्राने वाले दस्तावेज हैं।

उस युवक ने अदालती व्यवस्था को भी बेनकाब किया, क्योंकि महिला जज ने 5 लाख रुपए की घूस मांगी थी। जज ने हंसते हुए व्यंग्य किया था, ‘नहीं तो जिंदगी भर तुम और तुम्हारा परिवार अदालत के धक्के खाते रहना। नौबत आत्महत्या की भी आ सकती है, लिहाजा 5 लाख में मैं तुम्हारा केस सेटल कर सकती हूं।’ युवा इंजीनियर अदालत की व्यवस्था से भी उत्पीडि़त था। केस की 58 तारीखें लग चुकी थीं। वह बंगलूरु से जौनपुर, यूपी में हर तारीख पर नहीं आ सकता था। उसे पत्नी की 3 करोड़ रुपए के गुजारा भत्ता की मांग भी सवालिया लगी। अंतत: आत्महत्या का फैसला लिया, ताकि पैसा देने वाली ईकाई ही समाप्त हो जाए। 

आत्महत्या नोट में इंजीनियर ने लिखा- ‘यदि मुझे इंसाफ न मिले, तो मेरी अस्थियां अदालत के पास वाले गटर में बहा दी जाएं।’ कितना मार्मिक और पराजित कथन है यह! दरअसल हम किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंच रहे हैं। आत्महत्या नोट ‘सत्य की पराकाष्ठा’ माना जाता है। मरने से पहले नौजवान इंजीनियर ने जो कुछ लिखा है, उसके आधार पर ही यह विश्लेषण हैं और कुछ सवाल उठाए हैं। अदालत का फैसला आना है। हमारे कानून नारीवादी हैं। 

यदि स्त्री हिंसा या उत्पीडऩ अथवा शोषण की शिकायत दर्ज कराती है, तो पुरुष पक्ष के कई लोगों को जेल में भेजा जा सकता है। बाद में वह शिकायत फर्जी भी साबित हो सकती है। ऐसे कानून में संशोधन किया जाना चाहिए। बेशक हमारा समाज पितृसत्तात्मक है। सभ्यता की बुनियाद यही है। औसत वैश्विक संस्थान पुरुष निर्मित है। अधिकतर भगवान पुरुष हैं, जिनकी पूजा महिलाएं करती हैं। यह दुनिया ही पुरुष की है, लेकिन अब यथार्थ बदल भी रहे हैं। औरत हर क्षेत्र में बढ़ रही है। फिर ऐसे कानून क्यों हैं कि जिनका दुरुपयोग किया जा रहा है।