परिवहन घोटाले ने सियासी लय भी पकड़ ली है. पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने घोटाले की जांच उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की निगरानी में कराने के लिए पीएम नरेंद्र मोदी को पत्र लिखा है. उन्होंने पत्र मीडिया को दिया और प्रेस कॉन्फ्रेंस भी की..!!
पत्र से कई बुनियादी सवाल खड़े हो रहे हैं. सबसे पहला सवाल कि, राज्य के विषय पर प्रधानमंत्री को क्यों पत्र लिखा गया. कांग्रेस हमेशा संघीय ढांचे पर सवाल उठाती है. राज्य की स्वायत्तता पर हमले का आरोप लगाती है, फिर राज्य के विषय पर पीएम को पत्र लिखकर क्या राज्य की स्वायत्ता को कमजोर करने का प्रयास नहीं किया गया है?
हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस की निगरानी में जांच की मांग क्या लोकायुक्त की संवैधानिकता और उनके इंटेंशन पर प्रश्न चिन्ह नहीं माना जाएगा? लोकायुक्त संवैधानिक संस्था है. हाई कोर्ट के जस्टिस ही लोकायुक्त के पद पर हैं. उनकी निगरानी में ही छापा पड़ा है. लोकायुक्त की सक्रियता के परिणाम स्वरुप ही परिवहन का इतना बड़ा घोटाला उजागर हुआ है.
दिग्विजय सिंह जब मुख्यमंत्री थे, तब जब भी उनकी सरकार पर भ्रष्टाचार के कोई आरोप लगाते थे, तब सीना ठोंक कर यही बयान आता था कि, जिसके पास भी प्रमाण है, वह लोकायुक्त में जाकर शिकायत दर्ज करा सकता है.
परिवहन घोटाले के संबंध में अगर किसी के पास कोई तथ्य, दस्तावेज उपलब्ध हैं, तो यह उसकी कॉन्स्टीट्यूशनल जिम्मेदारी है कि, लोकायुक्त में जाकर उसकी शिकायत करे और प्रमाण दे.
एक सवाल यह भी उठता है कि, जो जनप्रतिनिधि लगातार प्रदेश में पब्लिक से कनेक्ट रहते हैं, जिनके राजनीतिक चातुर्य पर कोई सवाल नहीं उठाया जा सकता, ऐसे जागरूक जनप्रतिनिधियों को इतने बड़े घोटाले की जानकारी छापों के बाद मिली.
मीडिया रिपोर्ट में इस बात को भी एक्सपोज़ किया गया है कि, कमलनाथ की सरकार ने दबाव में परिवहन विभाग, मंत्री को दिए थे. पत्र में दबाव देने वाले नेता के नाम का तो उल्लेख नहीं है, लेकिन प्रेस कॉन्फ्रेंस की खबरों में मीडिया के द्वारा स्पष्टता के साथ लिखा गया है कि, ज्योतिरादित्य सिंधिया ने गोविंद सिंह राजपूत को परिवहन मंत्री बनाने के लिए दबाव बनाया था.
मुख्यमंत्री या मंत्री जब भी शपथ ग्रहण करते हैं तो वह शपथ इसी बात की होती है कि, बिना किसी भय, पक्षपात के निष्पक्षता के साथ कार्य किया जाएगा. अब जब यह बात मीडिया में इतने बड़े जिम्मेदार नेता की ओर से उजागर हुई है कि, कमलनाथ ने दबाव में डिपार्टमेंट दिया है तो फिर पहली नजर में ही यह स्पष्ट हो गया कि, कमलनाथ ने मुख्यमंत्री के पद की शपथ का उल्लंघन किया है, जो कानूनी अपराध है. ऐसे अपराध के लिए उनको क्षमा नहीं किया जा सकता.
एक प्रश्न यह भी उत्पन्न हो रहा है कि, जब सरकार बनने के समय ही दबाव शुरू हो गए थे, तो फिर जितने समय तक सरकार चली, वह दबाव में ही चलती रही. कमलनाथ की सरकार जब प्रेशर नहीं झेल पाई. सरकार के प्रेशर कुकर की क्षमता जब समाप्त हो गई, तो फिर कुकर ही फट गया और सरकार का पतन हो गया. यह भी साबित हो गया कि, परिवहन घोटाले की जड़े कमलनाथ सरकार से जुड़ी हैं.
कमलनाथ को सार्वजनिक रूप से यह स्पष्ट करना चाहिए कि, उनसे जुड़े जो तथ्य सार्वजनिक किए गए हैं, उनमें कितनी सत्यता है? यह मौजूदा सरकार का भी दायित्व बनता है कि, कमलनाथ सरकार में दबाव की राजनीति से हुये कार्यों का सच सामने लाए.
पूर्व मुख्यमंत्री के पत्र में तत्कालीन मंत्री के निवास से जुड़े और परिवहन विभाग से संबंधित कुछ नामों का भी जिक्र किया गया है. यह तो सोचा ही नहीं जा सकता कि, सारे तथ्यों से अवेयर जनप्रतिनिधि इस बात से अनभिज्ञ होगा कि, इतना बड़ा रैकेट सरकार के एक विभाग में चल रहा है. उनको चलाने वालों का नाम आज जब सार्वजनिक हो रहा है तो फिर यह नाम पहले सार्वजनिक क्यों नहीं हो सकते थे?
किसी भी लीडर का स्टाफ हार्डवेयर जैसा है. उसे जो निर्देश दिए जाएंगे, उसका ही वह पालन करेगा. स्टाफ से यह अपेक्षा करना कि, वह गैर कानूनी आदेशों को अस्वीकार कर देगा, केवल खुशफहमी हो सकती है. पूरा सरकारी तंत्र बड़े से बड़े स्तर का अफसर भी ऐसी हिम्मत नहीं दिखाता कि, वह सच को सच कहे. अगर किसी ने ऐसी हिम्मत दिखाई तो फिर उसको इसका दुष्परिणाम भी भोगना पड़ता है.
पूर्व मुख्यमंत्री ने अपने पत्र एवं मीडिया में जो भी बातें लिखी है, निश्चित रूप से महत्वपूर्ण हैं, लेकिन उनका प्रधानमंत्री के लिए जानना उतना महत्वपूर्ण नहीं है, जितना कानूनी प्रक्रिया का पालन करते हुए लोकायुक्त के सामने शिकायत दर्ज करना. दिग्विजय सिंह पहले कई बार लोकायुक्त में शिकायत दर्ज कर चुके हैं. उनका व्यक्तित्व लड़ने वाला है. उनको झुकते हुए कभी देखा नहीं गया.
दिग्विजय सिंह की राजनीति पर कमांड उनकी पार्टी ही नहीं, विरोधी भी स्वीकार करते हैं. उनकी शिष्टता, सदाचार, स्पष्टवादिता और मुद्दों के प्रति गहरी समझ लोगों को प्रभावित करती है. विश्वास करना उनका स्वभाव है. कई बार इसी स्वभाव में मिस फीडिंग पर भी विश्वास कर लेते हैं. मिस फीडिंग का कार्य कई बार पर्सनल स्टाफ और कई बार आसपास के जुड़े लोग भी करने लगते हैं.
स्टाफ और आसपास के लोगों पर विश्वास तो ज़रूरी है, लेकिन अतिविश्वास नुकसान दायक है. ऐसा भी लगता है कि, दिग्विजय सिंह का पुराना विश्वासी निजी तंत्र तितर-बितर हो गया है. कोई जिम्मेदारी और जवाबदेही के साथ काम करें, यह किसी भी वीआईपी के लिए बहुत बड़ी ताकत होती है.
दिग्विजय सिंह दृढ निश्चयी व्यक्ति हैं. उन्होंने परिवहन घोटाले के मामले को पीएम को पत्र लिखकर अपने हाथ में लिया है, तो निश्चित रूप से इसकी लड़ाई अंतिम तक लड़ेंगे. अगर केवल सियासी नज़रिये से ज्योतिरादित्य सिंधिया या शिवराज सिंह चौहान को कटघरे में खड़ा करने के लिए सियासी आरोप ही टारगेट हैं, तो फिर यह, युवा दिग्विजय के पुराने फैन्स को निराश करेगा.
सियासत में उतार चढ़ाव सामान्य बात है, लेकिन क्रेडिबिलिटी में तो उतार चढ़ाव स्वीकार नहीं है. क्रेडिबिलिटी तो हमेशा चढ़ाव पर ही होना चाहिए. दिग्विजय में वह क्षमता है कि, कांग्रेस के राष्ट्रीय नेतृत्व का उन्हें मौका मिलना चाहिए.
पूर्व मुख्यमंत्री के पत्र, कमलनाथ सरकार में भी विवाद का विषय बने थे. सियासी तूफान भी खड़े हुए थे. जिन्होंने दिग्विजय की दृढ़ता और सियासी चातुर्य को देखा है, वह वर्तमान परिस्थितियों से अचंभित हैं.
दिग्विजय सिंह के यशस्वी और स्वस्थ जीवन की मंगल कामनाओं के साथ यही उम्मीद है कि, उनकी सियासी चमक का मध्य प्रदेश को लाभ मिलेगा. जनता की घूमती नज़रें इतनी सजग होती हैं, कि उनका नजरिया घुमाना अब इतना आसान नहीं है.