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शिक्षा: इसे राजनीतिक हथियार न बनाए 

राकेश दुबे राकेश दुबे
Updated Mon , 31 Jan

सार

सत्ता बदलते ही नेता अपनी विचाराधारा के हिसाब से स्कूल-कॉलेजों के पाठ्यक्रमों में बदलाव करके वोट बैंक को पक्का करने की जुगत में कैसे तो भी लगे रहते हैं..?

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विस्तार

गणतंत्र दिवस कमसे कम यह विचार करना चाहिए कि सत्ता पाने के लिए शिक्षा को भी कैसे राजनीतिक हथियार बनाया गया है। सत्ता बदलते ही नेता अपनी विचाराधारा के हिसाब से स्कूल-कॉलेजों के पाठ्यक्रमों में बदलाव करके वोट बैंक को पक्का करने की जुगत में कैसे तो भी लगे रहते हैं? विद्यार्थी इन सबके बीच फुटबाल बने रहते हैं। उन्हें वही पढऩा होता है जोकि सरकारें उन्हें पाठ्यक्रमों के जरिए पढ़ाती हैं। 

हालात यह हैं कि सत्ता में बदलाव के साथ पाठ्यक्रम भी बदलते रहते हैं। देश में शिक्षा में इस तरह के बदलाव पर लंबे अर्से से बहस छिड़ी हुई है। राजनीतिक दल बदलाव को लेकर एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाते रहते हैं। इसी कड़ी में नया विवाद कर्नाटक में हुआ है। कर्नाटक यूनिवर्सिटी की किताब के सिलेबस को लेकर विवाद खड़ा हो गया है। आरोप है कि इसमें गलत शब्दों का इस्तेमाल किया गया। 

कर्नाटक विश्वविद्यालय के अंडरग्रेजुएट विद्यार्थियों के पहले सेमेस्टर की किताब में ऐसा कंटेंट लिखा गया है, जिससे भारत की एकता बाधित होती है। कथित तौर पर सिलेबस में संघ परिवार, राम मंदिर के निर्माण और भारत माता आदि की आलोचना की गई थी और कुछ गलत शब्दों का इस्तेमाल किया गया था। सिलेबस में आरएसएस की आलोचना करने के लिए बार-बार ‘संघ परिवार’ जैसे शब्दों का उपयोग करने का आरोप लगाया गया है। इससे पहले जब कर्नाटक में भाजपा की सरकार थी, तब पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार पर इसी तरह के आरोप लगाए गए थे।  

सरकार ने तब कांग्रेस सरकार द्वारा किए गए संशोधनों को दिखाने के लिए 200 पृष्ठों की किताब भी जारी की थी, जिसमें पाठ्य पुस्तकों में हिंदू देवताओं और ऐतिहासिक आंकड़ों को गलत तरीके से पेश किया गया। भाजपा का आरोप था कि विजयनगर के शासकों, मैसूर राजाओं वडियारों, राष्ट्र कवियों कुवेम्पु, बेंगलुरु के संस्थापक केम्पेगौड़ा और सर एम. विश्वेश्वरैया पर अध्यायों को या तो हटा दिया गया या उन पर सामग्री कम कर दी गई। पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार ने टीपू सुल्तान, मोहम्मद गजनवी, हैदर अली और मुगलों का बखान किया। सत्ता में आने पर भाजपा ने टीपू, हैदर अली, गजनवी और मुगलों पर अध्यायों को अब हटा दिया और स्वतंत्रता सेनानियों तथा मराठा शासक शिवाजी और केम्पेगौड़ा जैसी ऐतिहासिक शख्सियतों को पाठ्य पुस्तकों में प्रमुखता दी गई। राजनीतिक नजरिए से पाठ्यक्रमों में राज्य ही नहीं, केंद्र में जो भी सरकार सत्ता में रही, उसने अपनी दलीलों के साथ बदलाव किए हैं। 

वर्ष 2018 में राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद (एनसीईआरटी) ने कक्षा 12वीं के राजनीति विज्ञान पाठ्य पुस्तक में गुजरात दंगों के बारे में अध्याय जोड़ दिया गया। इस अनुच्छेद में दो परिवर्तन किए गए। अनुच्छेद में शामिल शीर्षक मुस्लिम विरोधी गुजरात दंगे को बदलकर गुजरात दंगे कर दिया गया। इसी अनुच्छेद के पहले वाक्य से मुस्लिम शब्द भी हटा दिया गया। 

अनुच्छेद के शीर्षक के अलावा अनुच्छेद के अंदर के पाठ को नहीं छुआ गया। गुजरात में भाजपा शासन के दौरान 2002 में हुए मुस्लिम विरोधी गुजरात दंगों का संदर्भ पाठ्य पुस्तकों से हटा दिया गया है, जबकि कांग्रेस शासन के दौरान हुए सिख विरोधी दंगों को बरकरार रखा गया। वर्ष 2014 में भाजपा के सत्ता में आने के बाद से यह तीसरी बार है, जब सरकार ने पाठ्य पुस्तक संशोधन की कवायद की। 

एक मुस्लिम राजवंश था, जिसने भारत पर 200 वर्षों तक शासन किया और भारत के संस्थापक मोहनदास करमचंद गांधी द्वारा हिंदू-मुस्लिम एकता की खोज की चर्चा से संबंधित पाठ को हटाया गया। गांधी के हत्यारे नाथूराम गोडसे की ब्राह्मण उत्पत्ति और भाजपा के वैचारिक संरक्षक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) पर लगाए गए संक्षिप्त प्रतिबंधों को सुविधाजनक रूप से हटा दिया गया, जैसा कि 2002 के गुजरात में हुए सांप्रदायिक दंगों को भी हटाया गया। वर्ष 2022 में एनसीईआरटी ने स्कूलों की किताबों में बदलाव किए। इनमें प्राचीन और मध्ययुगीन काल से लेकर आधुनिक काल तक के बारे में अभी तक पढ़ाए जाने वाले कई तथ्यों को हटा दिया गया। 

जाति व्यवस्था से भी जुड़ी काफी जानकारी को हटा दिया गया, जैसे वर्ण प्रथा वंशानुगत होती है, एक श्रेणी के लोगों को अछूत बताना, वर्ण प्रथा के खिलाफ विरोध, 2002 के गुजरात दंगे, आपातकाल, नर्मदा बचाओ आंदोलन जैसे जन आंदोलनों आदि जैसी आधुनिक भारत की कई महत्वपूर्ण घटनाओं के बारे में जानकारी को भी हटा दिया गया। 

इसलिए बेहतर है कि पाठ्यक्रमों में बदलाव के लिए देश के पुराविदों, शिक्षाविदों के साथ न्यायविदों को भी शामिल किया जाए ताकि चुनावी गणित के हिसाब से ऐतिहासिक तथ्यों से छेड़छाड़ का सिलसिला बंद हो सके।