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शिक्षा : बहुत काम बाक़ी है 

राकेश दुबे राकेश दुबे
Updated Thu , 16 Sep

सार

स्कूली शिक्षा में कई जगह निजी क्षेत्र ने अच्छा काम किया है, मगर उच्च शिक्षा में अभी बहुत काम होना बाकी है।

janmat

विस्तार

आजादी के 77 साल बाद शिक्षा, खास तौर पर उच्च शिक्षा को लेकर हम कहां खड़े हैं, यह विचार करना जरूरी है। आजादी के समय देश में सिर्फ डेढ़ लाख स्कूल थे, आज देश में स्कूलों की संख्या बढक़र बीस लाख से ज्यादा हो गई है। इन स्कूलों में करीब 24 करोड़ छात्र पढ़ते हैं। शिक्षा राष्ट्र की समृद्धि का एकमात्र जरिया है। शिक्षा वो सूत्र है, जिसे देश के आजाद होते ही लीडरशिप ने समझ लिया और इस पर काम किया। 

आजादी के समय देश की आबादी 36 करोड़ थी, मगर साक्षरता सिर्फ 18 प्रतिशत थी । वहीं, महिलाओं के मामले में हालात और खराब थे। देश की आजादी के समय 9 प्रतिशत से भी कम महिलाएं पढ़ी-लिखी थीं। यानी 11 में से सिर्फ एक महिला पढ़-लिख सकती थी। स्कूली शिक्षा में सरकार और निजी क्षेत्र ने भी बहुत निवेश किया है। हालांकि इन दिनों कई कारणों से देश के अनेक सरकारी स्कूलों में पढ़ाई की स्थिति बहुत अच्छी नहीं है, और हर व्यक्ति अपने सामर्थ्य के हिसाब से अपने बच्चों को पब्लिक यानी निजी स्कूलों में पढ़ाना चाहता है। 

चिंता की बात यह है कि नई शिक्षा नीति में खास तौर से स्कूली शिक्षा की गुणवत्ता में व्यापक सुधार के प्रावधान की बातें हुई , लुभावनी योजनाएं बन रही हैं, लेकिन इसको लागू करने में आ रही अड़चनों को दूर किया जाना जरूरी है । यह अलग बात है कि साधनों के अभाव एवं दक्ष-प्रशिक्षित शिक्षकों की कमी के कारण हम नई शिक्षा नीति को प्रभावी ढंग से लागू नहीं कर पा रहे हैं।

 जहां तक उच्च शिक्षा का सवाल है, तो उच्च शिक्षा हर क्षेत्र में रिसर्च और डेवलपमेंट के रास्ते खोलती है। आजादी के बाद अब तक बनी सरकारें जानती थी कि उच्च शिक्षा पर फोकस किए बिना ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्र में झंडे नहीं गाड़े जा सकते।इस पर भी बहुत काम हुआ है। आजादी के वक्त देश में सिर्फ 20 यूनिवर्सिटी और 404 कॉलेज थे। आज इनकी संख्या में कई गुना इजाफा हो चुका है। अतीत में हायर एजुकेशन में क्वांटिटी पर ज्यादा और क्वालिटी पर फोकस कम रहा है।

आज भी थोक के भाव से यूनिवर्सिटीज खुली हैं, मगर पढ़ाई अच्छी नहीं हो रही है। कुछ इंजीनियरिंग कॉलेजों की स्थिति और भी बुरी है। निजी संस्थाओं और उद्यमियों ने कॉलेज तो खोल दिए हैं, मगर कई जगह फैकल्टी अच्छी नहीं रखी जा रही है। कई संस्थानों में अच्छी लैब्स भी नहीं हैं। आज हमारे सामने सैकड़ों निजी इंजीनियरिंग कॉलेज ऐसे भी हैं जहां फीस निजी स्कूलों से कम है। 

स्कूली शिक्षा में कई जगह निजी क्षेत्र ने अच्छा काम किया है, मगर उच्च शिक्षा में अभी बहुत काम होना बाकी है। वर्तमान में हम एक ऐसी दुनिया में रह रहे हैं, जो धीरे-धीरे ग्लोबल हो  रही है। 

शिक्षण संस्थाओं के प्रसार की दिशा में भले ही हम प्रगति कर रहे हों, लेकिन यह साफ है कि शिक्षा डिजिटल तकनीक माध्यम से देने में हम असफल रहे हैं। आने वाले समय में विकसित भारत को निर्मित करने का मुख्य आधार शिक्षा ही है। इसके लिए हमें आधुनिक शिक्षा एवं शिक्षकों को समग्र दृष्टि से परिपक्व बनाना होगा, तभी शिक्षा की कमियां दूर हो सकेगी। 

हमें शिक्षकों को अध्यापन से इतर कार्यों से विमुक्त करना होगा। अभी तक अध्यापकों की ड्यूटी चुनावी कार्यक्रमों के निपटान, मिड डे मील का प्रबंधन, सर्वेक्षण कार्यों तथा कई और सरकारी कार्यों के निपटान में लगाई जा रही हैं। इससे अध्यापकों के समक्ष यह संकट उत्पन्न हो जाता है कि सिलेबस का अध्यापन पूरी तरह कैसे करवाया जाए ?

शिक्षा का लक्ष्य छात्र को एक परिपक्व मानव बनाना होता है। छात्र का नैतिक कल्याण और उसमें मानवीय सद्गुणों का प्रत्यारोपण भी शिक्षा का लक्ष्य है।इस काम को छात्रों, अभिभावकों तथा अध्यापकों के आपसी सहयोग से पूरा किया जा सकता है। सद्गुण संपन्न नागरिक बनाना ही शिक्षा का लक्ष्य होना चाहिए।, बस, प्रयासों की जरूरत है।