लाखों घरों में सिर्फ ताले लटके नजर आते हैं, दरअसल, समुद्र तट से लगे इस राज्य में खाड़ी के देशों में जाकर सुनहरा भविष्य तलाशने की होड़ लगी रही है, शिक्षा ने जहां प्रगतिशील सोच दी है, वहीं अंतहीन भौतिक लिप्साओं को भी जगाया है, यह होड़ हाल के वर्षों में पंजाब-हरियाणा में भी नजर आ रही है..!!
जिस केरल की गिनती देश के सबसे शिक्षित राज्यों में होती है, वहाँ आज 94 प्रतिशत साक्षरता वाले राज्य के बुजुर्ग शिक्षित युवाओं के पलायन का संत्रास झेल रहे हैं। राज्य के करीब 21 लाख घरों में युवाओं के पलायन करने के कारण सिर्फ बुजुर्ग बचे हैं। गांव के गांव पलायन का दंश झेलते हुए वीरान हो चुके हैं।
लाखों घरों में सिर्फ ताले लटके नजर आते हैं। दरअसल, समुद्र तट से लगे इस राज्य में खाड़ी के देशों में जाकर सुनहरा भविष्य तलाशने की होड़ लगी रही है। शिक्षा ने जहां प्रगतिशील सोच दी है, वहीं अंतहीन भौतिक लिप्साओं को भी जगाया है। यह होड़ हाल के वर्षों में पंजाब-हरियाणा में भी नजर आ रही है। वैसे तो यह हमारे नीति-नियंताओं की नाकामी का भी परिणाम है कि हम युवाओं को उनकी योग्यता-आकांक्षाओं के अनुरूप रोजगार देश में नहीं दे पाए। उन्हें न अपनी जन्मभूमि का सम्मोहन रोकता है और न ही यह फिक्र कि उनके जाने के बाद बुजुर्ग माता-पिता का क्या होगा?
एकाकीपन का त्रास झेलते केरल के इन गांवों में बुजुर्गों के पास पैसा तो है मगर समाधान नहीं है। सामाजिक सुरक्षा की वह छांव कहां, जिसमें बुजुर्ग खुद को सुरक्षित महसूस कर सकें। केरल के कई गांवों में लोग एक दिन हर बुजुर्ग का हाल पूछते हैं कि क्या वे सुरक्षित हैं। वे चर्च व पंचायतों में बैठकें करते हैं ताकि एक-दूसरे के हाल-चाल जान सकें। निश्चय ही ऐसे वैकल्पिक प्रयासों से सामाजिक सुरक्षा को संबल मिलेगा।
बताते हैं कि मार्च माह के अंत में बुजुर्गों के इस एकाकीपन के संकट को महसूस करते हुए केरल सरकार ने एक वरिष्ठ नागरिक आयोग बनाने की घोषणा की है। यह वक्त बताएगा कि लाल-फीताशाही व घुन लगी व्यवस्था में ये आयोग कब तक कारगर भूमिका निभाना शुरू करेगा। लेकिन फिर भी जिस राज्य में हर पांचवें घर से एक व्यक्ति विदेश चला गया है, वहां ऐसा आयोग एक सीमा तक तो सहायक ही हो सकता है। देखना होगा कि सरकारी अधिकारी कितनी संवेदनशीलता से बुजुर्गों की समस्याओं का समाधान करते हैं।
सरकार का दावा है कि यह आयोग एकाकीपन का त्रास झेल रहे बुजुर्गों के अधिकार, कल्याण और पुनर्वास के लिये काम करेगा। निस्संदेह, बुजुर्गों की आवश्यकताएं सीमित होती हैं। लेकिन उनका मनोबल बढ़ाने की जरूरत है। सबसे ज्यादा जरूरी उनकी स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याएं दूर करना है। बेहतर चिकित्सा सेवा व घर-घर उपचार की सहज उपलब्धता समस्या का समाधान दे सकती है। लेकिन देखना यह होगा कि भ्रष्टाचार के घुन से खोखली होती व्यवस्था में वरिष्ठ नागरिक आयोग ऐसे संकट का कारगर समाधान उपलब्ध कराने में किस हद तक सफल हो पाता है। वैसे अकेले रह रहे बुजुर्गों को भी इस दिशा में पहल करनी होगी। सामाजिक सक्रियता इसमें सहायक बनेगी।
नीति-नियंताओं को सोचना होगा कि अगले दशकों में युवा भारत बुजुर्गों का भारत बनने वाला है। वर्ष 2050 तक भारत में साठ साल से अधिक उम्र के 34.7 करोड़ बुजुर्ग होंगे। क्या इस चुनौती से निपटने को हम तैयार हैं?