राहुल गांधी का भाग्य, प्रारब्ध, नियति देखकर किसी को भी ईश्वर से शिकायत हो सकती है. पूरे जगत में ऐसा कोई नहीं होगा जिसका लोकतांत्रिक सम्राटों की चार पीढ़ियों से सीधा संबंध हो. भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के नवासे, प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के पोते, प्रधानमंत्री राजीव गांधी के बेटे राहुल गांधी उस मां सोनिया गांधी के पुत्र हैं जो मनमोहन सरकार में प्रधानमंत्री से ज्यादा ताकत वाले यूपीए की चेयरपर्सन रही हैं.
राहुल गांधी की संसद सदस्यता से अयोग्यता के बाद उनसे सरकारी घर खाली कराने के नोटिस पर कांग्रेस ने अधिकृत रूप से एक अभियान ‘मेरा घर आपका घर’ शुरू किया है. कांग्रेस के बड़े-बड़े नेता अपना घर राहुल गांधी को देने का प्रस्ताव कर रहे हैं. एक महिला ने तो अपना चार मंजिला मकान एकपक्षीय ढंग से राहुल गांधी के पक्ष में रजिस्टर्ड कर दिया है. कांग्रेसजनों के राहुल गांधी और गांधी परिवार के प्रति इस प्यार को निश्चित मान और सम्मान मिलना चाहिए. राहुल गांधी के पास खुद का मकान नहीं होने को कांग्रेस राष्ट्रीय मुद्दा बना रही है. इसे इमोशनल कार्ड के रूप में जनता के सामने पेश कर यह साबित करने की कोशिश कर रही है कि उसके नेता इतने महान और राष्ट्र के लिए समर्पित हैं कि उनके द्वारा अपने लिए कोई घर तक नहीं बनाया गया.
राहुल गांधी देश की पॉवर पॉलिटिक्स में तो किसी से कम नहीं है लेकिन आर्थिक रूप से भी उन्हें कमजोर नहीं कहा जा सकता. 2019 के लोकसभा चुनाव में अपने शपथ पत्र में राहुल गांधी ने बताया है कि उनके पास 15 करोड़ 88 लाख की संपत्ति है. इसके अलावा उनकी मां सोनिया गांधी ने अपने शपथ पत्र में अपनी संपत्ति ₹11 करोड़ 82 लाख रुपए दिखाई है. दोनों को मिला दिया जाए तो परिवार की संपत्ति लगभग ₹28करोड़ होती है. ₹28करोड़ का मालिक अगर एक घर नहीं बनाता है तो उसे आवासहीन या बेघर बार कहना इमोशनल अत्याचार के अलावा कुछ नहीं होगा.
जितने भी बड़े-बड़े उद्योगपति हैं चाहे अंबानी हों या अडानी हों, समय-समय पर अपनी उपलब्धियों पर बात करते हुए यह बताते रहे हैं कि वह कभी भी नगद राशि लेकर नहीं चलते हैं. जेब में नगद नहीं होने का मतलब यह तो नहीं कहा जा सकता कि वह गरीब हैं. उनके इशारे उनकी आर्थिक ताकत जाहिर करते हैं. ऐसी ही स्थिति राहुल गांधी की है. वे जब चाहते घर उनके सामने हाजिर हो जाता. वे कभी भी घर खरीद सकते हैं. यह बात अलग है कि उन्हें जरूरत नहीं थी. इसलिए अब तक घर नहीं खरीदा. जब जरूरत होगी तो घर राहुल गांधी के लिए ना कभी समस्या था ना कभी समस्या हो सकती है. ऐसे में बेघर बार होने का कांग्रेस का इमोशनल कार्ड भारतीय लोकतंत्र के साथ अत्याचार ही कहा जाएगा.
कोई भी इंसान चाहे वह छोटा हो या बड़ा हो, यही प्रयास करता है कि रोटी कपड़ा और मकान की व्यवस्था करने में वह आत्मनिर्भर बने. परिवार के साथ वह आनंदपूर्वक जीवन व्यतीत करे. यही हर व्यक्ति का सपना होता है. कोई आदमी स्वेच्छा से अगर यह आत्मनिर्भरता नहीं पाना चाहता तो कम से कम करोड़पति व्यक्ति तो बेघर बार होने का इमोशनल कार्ड नहीं खेल सकता. इतनी आर्थिक क्षमता वाले राहुल गांधी अगर मकान नहीं बना सकते तो फिर मकान बनाने के लिए कितनी आर्थिक ताकत की जरूरत मानी जाएगी?
सांसद-विधायक सरकारी मकान की पात्रता रखते हैं. सरकारी मकान उनके लिए घर से ज्यादा पॉवर का प्रतीक माने जाते हैं. दिल्ली में जितने भी देश के सांसद रहते हैं उनमें से अधिकांश के मकान वहां नहीं होते हैं. वह सभी सरकारी मकानों पर ही निर्भर करते हैं. राहुल गांधी से सरकारी मकान नहीं खाली कराना चाहिए यह अलग बात है लेकिन इसके सहारे बेघर बार होने का दावा और दंभ कांग्रेस जनों को शोभा नहीं देता है. कांग्रेस के जो नेता राहुल गांधी की झलक पाने के लिए सब कुछ कुर्बान करने को तैयार रहते हैं अगर उनकी तरफ ही नजर घुमाकर देखा जाए तो वे कई मकानों के मालिक मिल जाएंगे.
राजनीति आज झूठ इमोशन और सिंपैथी पर टिक गई लगती है. चारों तरफ इसी तरीके का माहौल दिखाई पड़ता है. मानहानि के मामले में अदालती कार्यवाही पर जिस तरह के सिंपैथी की राजनीति खेली जा रही है उसे भी सच की राजनीति कहना थोड़ा मुश्किल होगा. राहुल गांधी सूरत की अदालत में अपनी सजा के खिलाफ अपील करने के लिए जिस तामझाम और मुख्यमंत्रियों के काफिले के साथ पहुंचे हैं वह सब भारतीय राजनीति में राहुल गांधी की ताकत और अनिवार्यता को साबित कर रहे हैं.
राजनीति में सफलता असफलता आती जाती रहती है लेकिन विचारधारा व्यक्तित्व और सच के साथ खड़े होने की ताकत हमेशा सफलता का मार्ग प्रशस्त करती है.आज कल पॉलिटिकल डायलॉग, फिल्मी डायलॉग से ज्यादा कीमती और मूल्यवान माने जा रहे हैं. पॉलिटिकल स्क्रिप्ट राइटर सांसद और विधायक आसानी से बनने लगे हैं. जनसेवा में भले ही उनकी कोई भूमिका ना हो लेकिन पॉलिटिकल स्क्रिप्ट राइटिंग में विशेषज्ञता उनकी राजनीतिक प्रगति के लिए जरिया बन जाती है.
गांधी परिवार का सम्मान और बलिदान भुलाया नहीं जा सकता है. मान सम्मान और बलिदान के इतिहास पर गर्व तो किया जा सकता है लेकिन उस पर खड़े होकर वर्तमान की नीव को मजबूत करना मुश्किल होता है. आत्मा के स्तर पर तो ईश्वर ने राहुल की नियति को पूरे जगत में सबसे आगे निर्धारित किया है. अब आत्मवान बनकर भविष्य के लिए गौरव और गरिमा उनकी मेहनत ईमानदारी और सच्चाई पर ही खड़ी हो सकती है.