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भारत में आर्थिक केंद्रीकरण का माहौल ?

राकेश दुबे राकेश दुबे
Updated Sun , 22 Feb

सार

भारतीय कारोबार तेजी से ऐसी स्थिति में पहुंच रहे हैं जहां कुछ प्रभावशाली कारोबारी अधिकांश क्षेत्रों पर दबदबा कायम कर रहे हैं और एक तरह का आर्थिक केंद्रीकरण हो रहा है..!

janmat

विस्तार

देश में यानि भारत में एक तरह के आर्थिक केंद्रीकरण का माहौल दिख रहा है। इसके कारण  भारत में क्या घट रहा है यह समझना कभी भी आसान नहीं रहा है क्योंकि यहां हमेशा विरोधाभासी कथानक मौजूद रहते हैं। एक कहानी यह है कि भारतीय कारोबार तेजी से ऐसी स्थिति में पहुंच रहे हैं जहां कुछ प्रभावशाली कारोबारी अधिकांश क्षेत्रों पर दबदबा कायम कर रहे हैं और एक तरह का आर्थिक केंद्रीकरण हो रहा है।

स्टील हो या सीमेंट, विमानन या वाहन, दूरसंचार या बैंकिंग, संगठित खुदरा कारोबार या मीडिया, बंदरगाह या हवाई अड्‌डे, इन सभी में छोटे कारोबारियों को या तो खरीद लिया गया है या वे बंद हो रहे हैं अथवा एकदम हाशिये पर चले जाते  दिख रहे हैं।

पोर्टफोलियो प्रबंधन कंपनी मार्सेलस के डेटा विश्लेषण के मुताबिक भारतीय कॉर्पोरेट जगत के 46 फीसदी मुनाफे में केवल 20 कंपनियां हिस्सेदार हैं। एक दशक से दूसरे दशक के बीच शीर्ष 20 कंपनियों में कोई खास परिवर्तन नहीं आया।यदि कंपनियां इससे बाहर भी हुईं तो ज्यादातर मामलों में सरकारी कंपनियां थीं। अगर केवल शीर्ष निजी कंपनियों को ही गिना जाए तो करीब 15 कंपनियां सबसे अधिक मुनाफे वाली रही हैं और परिभाषा के मुताबिक बीते दो दशक यानी 2002 से 2022 के बीच उनका दबदबा लगातार बढ़ा है।

पिछले दशकों में शीर्ष स्तर पर ऐसी स्थिरता देखने को नहीं मिली थी। निश्चित तौर पर सन 1992 से 2002 के दशक में कारोबारी जगत में हलचल देखने को मिली क्योंकि आर्थिक सुधारों की वजह से देश में कारोबारों के परिचालन का माहौल बदला था।शीर्ष स्तर पर व्याप्त नई स्थिरता से यही सुझाव मिलता है कि अर्थव्यवस्था में प्रतिस्पर्धा कम हुई या शायद इसमें परिवर्तन का दौर सीमित हुआ और हलचल के दशक में विजेता बनकर उभरी कंपनियां बाद के दौर में भी अव्वल बनी रहीं।

इस निष्कर्ष को इस आंकड़े से भी बल मिलता है कि शीर्ष 20 कंपनियों में केवल सूचीबद्ध कंपनियां शामिल हैं जबकि कई अन्य महत्त्वपूर्ण कारोबार जिनमें अधिकांश विदेशी स्वामित्व वाले हैं वे गैरसूचीबद्ध रहे हैं-ह्युंडै और कोका-कोला, सैमसंग और बॉश आदि ऐसी ही कंपनियां रहीं, हालांकि इनमें से कई अब बाजार में अच्छी पहुंच बना चुकी हैं।चुनिंदा कंपनियों के दबदबे की इस कहानी का विपरीत कथानक यह है कि हाल के वर्षों में शेयर बाजार में सबसे बेहतर प्रतिफल लार्ज कैप शेयरों से नहीं बल्कि मिड कैप और स्मॉल कैप सूचीबद्ध कंपनियों से आया है। इनमें से अधिकांश का नाम भी जाना-पहचाना नहीं है। यह बात समाप्त हो रहे संवत वर्ष और पिछले औसतन पांच संवत वर्षों के लिए भी सही रहा है।

निश्चित तौर पर मार्सेलस के आंकड़े दिखाते हैं कि शीर्ष 20 कंपनियों द्वारा शेयरधारक प्रतिफल बीते दशक में उससे पिछले दशक की तुलना में प्रभावित हुआ है। चक्रवृद्धि वार्षिक औसत के रूप में शेयर धारकों का प्रतिफल 2002-12 के दशक के 26 फीसदी से घटकर अगले दशक में 15 फीसदी रह गया। यह रुझान चुनिंदा कंपनियों के दबदबे की कहानी के साथ तालमेल वाला नहीं है।इसका एक आसान स्पष्टीकरण यह होगा कि 2012-22 के दशक में अर्थव्यवस्था बहुत धीमी गति से विकसित हुई: ऐसे में शेयरधारकों का प्रतिफल प्रभावित हुआ। धीमी वृद्धि के साथ छोटे कारोबारियों के लिए माहौल और कठिन हो गया। परंतु यह बात इस तथ्य के साथ कैसे मेल खाती है कि छोटी कंपनियों ने बड़ी कंपनियों की तुलना में शेयरधारकों को बेहतर प्रतिफल दिया?

छोटे और मझोले क्षेत्रों के लिए चीजें आसान हो गई हैं, क्योंकि कर दरों में बदलाव हुआ है और ढेर सारे अप्रत्यक्ष करों की जगह वस्तु एवं सेवा कर ने ले ली है। इसके अलावा डिजिटल भुगतान में इजाफे, नकदी प्रवाह आधारित ऋण, संगठित खुदरा में वृद्धि की वजह से बेहतर बाजार पहुंच, बेहतर लॉजिस्टिक्स आदि ने भी क्षेत्रीय कारोबारियों की छाप मजबूत करने में मदद की है।एक परिदृश्य यह हो सकता है कि कई बड़ी कंपनियों ने निवेश किया जो सही नहीं साबित हुआ। इसके परिणामस्वरूप उत्पन्न दोहरे बैलेंस शीट के संकट ने उनके परिचालन नतीजों को प्रभावित किया।

कुछ कंपनियां दिवालिया हो गईं तथा बड़े कारोबारियों ने उन्हें सस्ते में खरीद लिया। इससे बाजार सुदृढ़ीकरण हुआ। इस अवधि में जीडीपी की तुलना में कॉर्पोरेट मुनाफा तेजी से गिरा लेकिन उनमें सुधार देखने को मिल रहा है और वे बिक्री में वृद्धि को भी पीछे छोड़ रहे हैं।जीडीपी के हिस्से के रूप में मुनाफा अभी भी 2008 के स्तर पर वापस नहीं आया है। इस बात को समझा जा सकता है क्योंकि उस दौर से अब तक की आर्थिक गति में अंतर रहा है।

बैंकों में नकदी और कर्ज के कम स्तर को देखते हुए बड़े कारोबारी आने वाले दशक का इस्तेमाल बाजार में अपना दबदबा बढ़ाने में कर सकते हैं। बहरहाल, मौजूदा प्रमाणों के मुताबिक तो उसका यह अर्थ नहीं कि छोटी कंपनियों का प्रदर्शन खराब होगा। व्यापक कारोबारी जगत में जीवंतता बरकरार है।

सबको दीपावली मंगलमय हो।