मध्यप्रदेश में भी कॉमन सिविल कोड लागू किया जाएगा। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने इसके लिए समिति गठित करने का ऐलान किया है। उत्तराखंड में चुनाव के समय समान नागरिक संहिता का मुद्दा बीजेपी द्वारा उठाया गया था। इसके बाद गुजरात में भी यह मुद्दा भाजपा के संकल्प पत्र में लाया गया है।
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने चुनाव के एक साल पहले ही कॉमन सिविल कोड का मुद्दा मध्यप्रदेश में गरमा दिया है। समान नागरिक संहिता सतही तौर पर समानता के सिद्धांत के पक्ष में दिखाई पड़ती है लेकिन इसे हिंदुत्व से जोड़ के देखा जाता है। बीजेपी के हिंदुत्व एजेंडे में राम मंदिर और धारा 370 के बाद अब कॉमन सिविल कोड बड़े राजनीतिक हथियार के रूप में उपयोग हो सकता है।
कॉमन सिविल कोड हिंदुत्व का मजबूत जोड़ साबित हो सकता है। धार्मिक रिवाज पर समानता की आवाज के रूप में इसे समाज के सामने स्थापित किया जा रहा है। यूपी चुनाव के समय योगी आदित्यनाथ ने चुनावी एजेंडा सेट करते हुए चुनाव को 80 और 20 के बीच में बताते हुए हिंदू-मुस्लिम ध्रुवीकरण की चुनावी बुनियाद रखी थी। समान नागरिक संहिता इसी बुनियाद को आगे बढ़ा रही है। इससे भले ही बहुसंख्यक हिंदुओं को कोई प्रभाव ना हो लेकिन मुस्लिम समाज के पर्सनल लॉ के प्रावधानों को झटका लगेगा। बहुसंख्यक समाज में इसका सकारात्मक प्रभाव देखा जा सकता है।
भारत की राजनीति आज पूरी तरह से हिंदुत्व की तरफ घूम गई है। आज कोई भी राजनीतिक दल मुस्लिम समाज के पक्ष में सार्वजनिक रूप से सामने आने से कतराता है। हर दल के नेता अपने को हिंदुत्व समर्थक स्थापित करने के प्रयास में लगे रहते हैं। कट्टर हिंदुत्व और सॉफ्ट हिंदुत्व आज राजनीति की वास्तविकता बन गई है। समान नागरिक संहिता से बहुसंख्यक समाज पर कोई असर नहीं पड़ेगा। उनके लिए तो हिंदू सिविल लॉ पहले से प्रभावशील है। केवल मुस्लिम समाज में पर्सनल लॉ के आधार पर आचरण किया जाता है। कॉमन सिविल कोड बनने से देश के सभी नागरिकों के लिए एक समान कानून लागू हो सकेगा।
भारत में आज समाज में जाति धर्म और राजनीतिक आधार पर विभाजन स्पष्ट देखा जा सकता है। विविधता भारत की संस्कृति है लेकिन शासन के स्तर पर विभेद और भेदभाव से नफरत और विभाजन की जो खाई पैदा होती है उससे देश को नुकसान होने की संभावना बनी रहती है। कॉमन सिविल कोड पर जो बहुसंख्यकों के बीच आवाज उठ रही है उसके पीछे भी यही सोच है कि देश में एक विधान हो जो सब पर लागू हो।
अभी देश में रहने वाले सभी नागरिकों के लिए एक समान कानून नहीं है। बहुसंख्यक समाज के लिए शादी और जायदाद का बंटवारा और बच्चों की गोद लेने के लिए हिंदू लॉ कोड बना हुआ है। मुस्लिम, ईसाई और पारसी का पर्सनल लॉ देश में लागू है। इसके परिणाम स्वरूप देश में हर धर्म के शादी तलाक जायदाद बंटवारा, बच्चों को गोद लेने के मामले में पर्सनल लॉ के हिसाब से कार्यवाही होती है। जबकि भारत के संविधान में समान नागरिक संहिता की अवधारणा दी गई है। इसे राज्य का विषय बताया गया है लेकिन अभी तक इसे देश में लागू नहीं किया जा सका है। अब भाजपा शासित कई राज्यों में इसके लिए समितियां बनाई गई हैं। निकट भविष्य में कॉमन सिविल कोड सामने आ सकता है।
हालाँकि यह भारत में एक नए विवाद को जन्म दे सकता है। इसके पहले एनआरसी पर भी इसी तरीके का विवाद पैदा किया गया है। अभी तक देश में एनआरसी कानून बनने के बाद भी लागू नहीं हो सका है। मुस्लिम समाज की ओर से इसका विरोध किया जा रहा है। कॉमन सिविल कोड के मामले में भी ऐसा ही माहौल बनाया जा रहा है। यह मुद्दा राजनीति का विषय बन गया है।
बहुसंख्यक जन भावनाओं में समान नागरिक संहिता का समर्थन, बीजेपी को लाभ देता दिखाई पड़ता है। बाकी राजनीतिक दलों द्वारा इस पर कोई स्पष्ट राय सामने नहीं आ रही है। कांग्रेस की ओर से कॉमन सिविल कोड पर अभी तक अपना पक्ष नहीं रखा गया है। ऐसा माहौल बनाया जा रहा है कि जैसे समान नागरिक संहिता मुस्लिमों के विरोध का प्रयास है। भारत की एकता और सभी धर्म और मजहब के लोगों में एकता के लिए एक समान कानून समय की आवश्यकता है। भारत को जोड़ने के लिए समान कानून की जरूरत है। इसे किसी समुदाय के विरोध में देखना आत्मघाती नजरिया ही हो सकता है।
कॉमन सिविल कोड का मुद्दा भविष्य की राजनीति का सबसे बड़ा मुद्दा हो सकता है। बीजेपी निश्चित रूप से इस दिशा में मजबूती के साथ आगे बढ़ेगी। इस पर कानून बनाया जाएगा। ऐसी संभावना है कि 2024 के लोकसभा चुनाव के पहले केंद्र सरकार द्वारा इस दिशा में कानून पारित किया जाए। उसके पहले कई भाजपा शासित राज्यों में कॉमन सिविल कोड की प्रक्रिया अपनाई जा सकती है।
इस कानून का ड्राफ्ट सामने आने पर कई राजनीतिक दल और मुस्लिम समाज की ओर से इसका विरोध सुनिश्चित सा है। शायद बीजेपी भी यही चाहती है ताकि उनके प्रयासों को भारत के प्रत्येक नागरिक के मन मस्तिष्क तक पहुंचाया जा सके। जब भी किसी सरकारी फैसले का विरोध किया जाता है तब ही उसे लागू करने वाले लोगों को उसका वास्तविक लाभ मिलता है। कानून अलग-अलग होगा तो देश के विभिन्न समुदायों में एकता की भावना को कैसे मजबूत किया जा सकता है? हिंदू और मुस्लिम देश के लगभग हर इलाकों में साथ-साथ रहते हैं। दोनों समुदायों के सह अस्तित्व को नकारा नहीं जा सकता।
सरकार द्वारा बनाए कानूनों के कारण विभेद की परिस्थितियां विभाजन को ही बढ़ाने का काम करती हैं। राम मंदिर के मामले में तो आस्था और विश्वास का विषय था। बहुसंख्यक समाज को कॉमन सिविल कोड से भले ही कोई फर्क ना पड़े लेकिन दूसरे समुदाय को उनके धार्मिक रिवाज और पर्सनल लॉ के कारण जो वरीयता और विशिष्टता मिली हुई है, वह इस कानून से समाप्त हो सकती है।
आजकल सामान्य कहावत है कि इंसान अपने दुख से ज्यादा दूसरे के सुख से दुखी हो जाता है। इस मामले में भी यह कहावत चरितार्थ हो सकती है। मुस्लिम समाज सामान्यतः एक शादी करता है लेकिन चूँकि उनके पर्सनल कानूनों में बहुविवाह की प्रथा प्रचलित है इसलिए ऐसी अवधारणा मान ली जाती है कि अधिकांश मुस्लिम कई विवाह कर रहे हैं।
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान शादी के प्रति जन भावनाओं से कनेक्ट होने के लिए ही कह रहे हैं कि जब एक शादी का ही प्रधान है तो किसी को भी अधिक शादी करने का मौका क्यों मिलना चाहिए? इसीलिए कॉमन सिविल कोड की उनके द्वारा वकालत की जा रही है। भारत की वर्तमान राजनीतिक परिस्थितियां इसी ओर इशारा कर रही हैं कि अब समय दूर नहीं है कि देश में कॉमन सिविल कोड का कानून बन जाएगा। इसके लागू करने के रास्ते में तो अभी बहुत सारी बाधाएं दिखाई पड़ रही हैं लेकिन यही बाधाएं बीजेपी के राजनीतिक भविष्य को बाधारहित बनाने के लिए कारगर साबित हो सकती हैं।